Book Title: Ratnakar ki Hanskala
Author(s): G Bramhappa
Publisher: Z_Kailashchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012048.pdf

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Page 4
________________ हंसकलोपासनाका अन्तिम लक्ष्य तो परमं परंज्योति बनना है / सुखोज्वल किरण बनना है और निरुपाधिक सुखी बनना है। दूसरोंके हाथोंमें पारिभाषिक पद पुञ्जोंको बहुत बड़ा अरण्य बनानेवाली यह हंसकला कविरत्नाकरके हाथोंमें कला बनी है / जहाँ अन्य लोग ब्रह्मकलाको पाण्डित्यके प्रदर्शनका क्षेत्र बनाते हैं, वहीं रत्नाकर ब्रह्मकलाके इस नीरस विषयको लेकर इसमें अपनी रसीली प्रतिभाका प्रभा-पुंज विकसित किया है, कल्पनाका कल्पवृक्ष संजोया है और रसका मानस सरोवर उद्घाटित किया है। उन्होंने इसमें अपनी कलाके इन्द्रधनुषी रूपको चित्रित किया है। धर्मध्यान (निर्विकल्प समाधि) तो रत्नाकरके हाथोंमें प्रकाशकी नदी बना जिसमें काव्य रस रूपी जल प्रवाहित हुआ है। बारबार सिद्धान्तको लाने पर भी रत्नाकरने कहों काव्यको किनारे पर नहीं हटाया। सिद्ध बननेके पहले जिनेन्द्रके विरचित दण्ड-कवाट-प्रतर-पूरण ध्यान तो रत्नाकरके हाथोंमें प्रचण्ड कला बनकर शन्यके तांडवके रूपमें सशोभित हआ है। यहाँ यदि धर्म ध्यानका वर्णन लास्य हो, तो समुद्र घातोच्चलकलामें कविने गगनचुम्बी होकर दिगंत तक हाथ फैलानेके समान बृहत् दृश्योंको निर्मित कर ब्रह्मलीलाके अद्भुत व्यापारको चित्रित किया है / रत्नाकर कवि चिदम्बरके रहस्यको आत्मसात किये हुए हैं। वे काव्यके नन्दनवनमें सिद्धान्तके स्थानको निर्दिष्ट रूपसे निर्देशित करनेवाले निरंजन कवि हैं। वह योगीकी समाधि स्थितिको साक्षात-सा चित्रित करनेवाला एक मात्र कवि है। रसिकता ही रत्नाकरका जीवन है। यदि उसके भरतेशवैभवका भोग राग रसिकता हो, तो यहाँका योग तो वीतराग रसिकता है। रत्नाकर महाकवियोंमें महायोगी है। उसने योगी बनकर हंसकलाका अनुभव किया है। अपने इस अनुभवको ही इसने कवि बनकर रसीले काव्यके रूप में चित्रित किया है। -224 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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