Book Title: Ratan Guru Ras
Author(s): Rasila Kadia
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 2
________________ 64 अनुसंधान-२३ श्रीबाई पण दीक्षा ले छे. अने बन्ने शुद्ध निर्मल संयमजीवन आदरे छे. साहा रतनसी नवानगरमा अर्थात् आजना जामनगरमां आव्यानी आ रासमां नोंध छे. 'साहा' शब्द रतनगुरु (स्थानकवासी) लोंकागच्छना होवानुं दर्शावे छे. अति सुंदर संवादोने कारणे कृति रसप्रद बनी छे. रतनगुरुनो रास अथ श्री रतनगरुनो रास लख्यो छे : रतनगरु गुण मीठडा रे, मीठडा मुखना बोल. साभलता रंग वासना रे, आपे जेम तंबोल. रतनगरुगुणमी० ॥१॥ श्रीसोहागदेनो नंदजी रे, सरमाली कुल चंद. नागर रखीजीओ बुझवो रे, रतनसि गुणवंत ॥२॥ रतनगरुगुण मी० आंकणी: सोलमे वरसे रतनसी रे, कीधलो व्रत आचार. देवकना सरखी तजि रे, श्रीबाई सुकमाल. ॥३॥ रतनगः श्रीबाई नार बोलाववा रे, सासरे आवा साम. सासरवासो लई करी रे, साथे म(म)त्री अभीराम ॥४॥ रतनगः वनो करीने सासु वदे रे, तमे केम पधारा आज. रतन कहे तव रंगसु रे, तम तनीआसु काज. ||५॥ रतनगः तेडो तमारी बालका रे, श्रीबाई सुकमाल सासरवासो करु अमे रे, संजम लेसु सुविचार ॥६॥ रतनः पंच सहिरुमां खेलति रे, श्रीबाई परमोद. माता बोलावे मंदरे रे, सुणवा वात वनोद ॥७॥ रतनः रतन कहे सुणो सुदरी रे, अमे आदरसु चारित्र. मानी बेन में तझने रे, ले सासरवासो पवित्र ८॥ रतनः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6