Book Title: Rashtrabhasha Hindi Samasyaye va Samadhan Author(s): Radhamohan Upadhyay Publisher: Z_Jain_Vidyalay_Hirak_Jayanti_Granth_012029.pdf View full book textPage 3
________________ एकता स्थापना के लिए विभिन्न प्रान्तों में हिन्दी प्रचार समिति गठित की जाय। आपके ही सत्प्रयास से दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा' की स्थापना हो गई जो अब तक काम कर रही है। इसका प्रमुख कार्यालय मद्रास में है। ___ गांधी जी हिन्दी को परिनिष्ठित या मानक हिन्दी से अलग कर उर्दू मिश्रित हिन्दी या हिन्दुस्तानी बनाना चाहते थे। सन् 1933 ई0 में गांधी जी की ही अध्यक्षता में हिन्दी साहित्य सम्मेलन का इन्दौर अधिवेशन हुआ था। इसमें गांधी जी ने ही प्रस्ताव रखवाया था कि हिन्दी में संस्कृत के शब्दों के बदले उर्दू के शब्दों का प्रयोग किया जाय लेकिन दुर्धर्ष वक्ता पं0 रामबालक शास्त्री के तगड़े विरोध के फलस्वरूप वह प्रस्ताव वापस ले लिया गया। स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी । स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अब वह समय आ गया जब आजादी की लड़ाई के समय किये गये भाषा सम्बन्धी वायदों को पूरा करना था। हिन्दी के प्रबल समर्थकों में अब बच गये थे महात्मा गांधी के अलावा सेठ गोविन्द दास एवं टण्डनजी। दुर्भाग्य से गांधी जी का सम्बल भी शीघ्र ही छूट गया। अगस्त 1948 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन, दिल्ली द्वारा भारतीय भाषाओं के साहित्यकारों का सम्मेलन बुलाया गया और अध्यक्ष थे सेठ गोविन्द दास। इस सम्मेलन में सर्वसम्मति से हिन्दी को राष्ट्रभाषा एवं नागरी को लिपि के रूप में स्वीकारा गया। 9 अगस्त, 1948 को कांग्रेस पार्टी की एक बैठक हुई थी। इसमें हिन्दी के साथ अंग्रेजी को भी 15 वर्षों तक चलाने के विषय पर गरमागरम बहस हुई थी। इसमें भाग लेने वालों में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, श्री पट्टाभिसीतारमैया, पं. जवाहर लाल नेहरू, सरदार बल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद, पं. गोविन्द बल्लभ पंत, सुचेता कृपलानी आदि थे। इसी साल 2 सितम्बर से 14 सितम्बर तक गरमागरम बहस के बाद 14 सितम्बर को हिन्दी राजभाषा विधेयक संविधान सभा में पास हो गया। 15 वर्षों तक अंग्रेजी में भी काम करने की छूट थी। हिन्दी पर भीतरघात __ हिन्दी आज हिन्दुस्तान की राष्ट्रभाषा होती, विवाद का सारा मुद्दा ही समाप्त हो गया होता यदि पण्डित नेहरू हिन्दी के प्रति कठोर न होते। पण्डित नेहरू का संस्कार पाश्चात्य था। उनकी दृष्टि में हिन्दी दरिद्र भाषा थी। इसी बात को लेकर एक बार वे डॉ. रघुवीर से उलझ गये थे। डॉ. रघुवीर हिन्दी का शब्दकोश बना रहे थे। नेहरूजी ने उपेक्षा भाव से कहा था- 'इस कंगाल भाषा को कुबेर नहीं बनाया जा सकता।' डॉ. रघुवीर को पं. नेहरू के ज्ञान पर हंसी आ गयी। नेहरू जी झल्ला उठे, बोले- बताओ, हिन्दी में कार्य के लिए कितने शब्द है।' डॉ. रघुवीर कहा- “अनेक हैं। कार्य 'कृ' धातु से बना है। इसी से कृति, करण, कारण कर्म, कारक, करणीय, कर्त्तव्य, कर्त्ता, क्रिया, कृत, कुर्वाण आदि अनेक शब्दों का निर्माण किया जा सकता है।" इसी प्रकार नेहरू जी ने जब 'ला' के अर्थ में हिन्दी का शब्द पूछा तब डॉ. रघुवीर ने बताया- "विधि, संविधान, विधान, विधायक, विधायिका, विधेयक, विधाता, विधेय, विधिज्ञ आदि।" ___ तात्पर्य यह है कि पं. नेहरू की इसी मानसिकता ने हिन्दी की नैया डुबो दी। हिन्दी की गति रोकने के लिए ही प्रारंभ में हिन्दी, उर्दू और हिन्दुस्तानी का झमेला खड़ा किया गया। यह तो टण्डन जी जैसे तपस्वी का कड़ा विरोध था कि हिन्दी और नागरी को संवैधानिक मान्यता मिली। आपने उर्दू का विरोध करते हुए कहा था- "उर्दू को उत्तर प्रदेश की क्षेत्रीय भाषा घोषित करना साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देना है।" 18 फरवरी, 1953 अलीगढ़। “जो लोग उर्दू को प्रादेशिक भाषा बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं, वे इस देश की संस्कृति के शत्रु हैं।" 15 मार्च, 1953, नेशनल क्लब, नई दिल्ली ___ "उर्दू को अलग भाषा के रूप में या क्षेत्रीय भाषा के रूप में चालू रखने का कार्य अराष्ट्रीय है।" 19 जुलाई, 1953 सिरसा, इलाहाबाद। पं. नेहरू को यदि हिन्दी से एलर्जी न होती तो 15 वर्षों का टेक न लगा होता। उस समय समग्र भारत में राष्ट्रीयता की भावना प्रबल थी। लोग इसे स्वीकार लिए होते। पं. नेहरू का 1950 तक वह व्यक्तित्व था जिसके विरोध में कहीं से स्वर न उठता। स्मरण आता है टर्की का कमाल पाशा। उसने अपने मंत्रियों एवं कर्मचारियों से पूछा- “देश में तुर्की को राजभाषा बनाने में कितना समय लग सकता है?" कर्मचारियों ने बताया कि तुर्की को राजभाषा के पद पर पूर्ण रूप से प्रतिष्ठित करने में दस वर्ष लग सकते हैं। कमाल पाशा ने कहा- “कल सबेरे दस बजे तक यह दस वर्ष बीत जाना चाहिए" और वही हुआ। दूसरे दिन से ही तुर्की टर्की की राजभाषा बन गई। यही काम पण्डित नेहरू भी कर सकते थे लेकिन वे जिस बात को नहीं चाहते थे, उसे उलझाते जाते थे। ___1962 से हिन्दी को अंग्रेजी की गद्दी पर बैठ जाना था। नहीं हुआ। दक्षिण में प्रबल विरोध हुआ, आत्मदाह हुए। फलत: 1963 में पुन: संविधान में संशोधन करना पड़ा। हिन्दी के साथ अंग्रेजी का व्यवहार तब तक के लिए मान लिया गया जब तक भारत के सभी राज्य सहमत न हो जाएं। यह बात समझ में नहीं आती कि जब एक वोट के बहुमत से भी कोई पार्टी पूरे देश पर शासन कर सकती है तब बहुमत की भाषा हिन्दी को एकमात्र प्रशासकीय भाषा होने से क्यों रोका जा रहा है? हिन्दी बनाम अंग्रेजी ___ आज लड़ाई हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के बीच नहीं है, लड़ाई है हिन्दी बनाम अंग्रेजी की। सरकारी नीति के कारण ही प्राथमिक विद्यालयों से ही अंग्रेजी की पढ़ाई शुरू की जा रही है। अंग्रेजी माध्यम के स्कूल रक्तबीज' के समान बढ़ रहे हैं। इन अंग्रेजी स्कूलों में भारतीय संस्कृति का श्राद्ध हो रहा है। राजर्षि टण्डन ने जिस उर्दू का विरोध किया था और कहा था कि इससे साम्प्रदायिकता भड़केगी और राष्ट्रीय एकता पर खतरा आ जायेगा, उसी उर्दू को उत्तर प्रदेश और बिहार के देशभक्त मुख्य मंत्रियों ने द्वितीय भाषा का दर्जा दिया। जो लोग ऐसे कुकृत्य का समर्थन कर रहे हैं, उन्हें 'हिन्दी दिवस' मनाने की भी हीरक जयन्ती स्मारिका विद्वत् खण्ड / ६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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