Book Title: Rajasthani Jain Sahityakar Author(s): Rameshkumar Jain Publisher: Z_Ambalalji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012038.pdf View full book textPage 3
________________ राजस्थानी जैन साहित्य ४६५ १३. - सम्वाद - सम्वाद संज्ञक जैन रचनाओं से बहुत सों का सम्बन्ध जैनधर्म नहीं है। इनमें कवियों ने अपनी सूझ एवं कवि प्रतिभा का परिचय अच्छे रूप में दिया है। मोतीकपासिया सम्वाद, जीभ दान्त सम्वाद, आँख कान सम्वाद, उद्यम-कर्म सम्वाद, यौवन-जरा सम्वाद, लोचन - काजल सम्वाद आदि रचनाएँ उल्लेखनीय हैं । १४ - देवता- देवियों के छन्द-यक्ष, शनिचर आदि ग्रह, त्रिपुर आदि देवों की स्तुति रूप छन्द, जैन कवियों द्वारा रचित मिलते हैं । इन देवी-देवताओं का जैन धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं है। रामदेव जी, पाबूजी, सूरजजी और अमरसिंह जी की स्तुतिरूप भी कई रचनाएँ प्राप्त होती है। १५ – स्तुति काव्य-स्तुति-काव्यों में तीर्थकरों जैन महापुरुषों, साधुओं, सतियों, तीयों आदि के गुणों के वर्णन रहते हैं। तीयों की नामावली जिसे 'तीर्थमाला' कहते हैं इसी के अन्तर्गत है। ये रचनाएँ ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं । और स्तुति, स्तवन, सज्झाय, वीनती, गीत, नमस्कार आदि नामों से उपलब्ध है। जैन साहित्य का एक बड़ा भाग स्तुतिपरक है। १६ – लोक कथानक सम्बन्धी ग्रन्थ - लोक-साहित्य के संरक्षण में जैन विद्वानों की सेवा महत्त्वपूर्ण है । सैकड़ों लोकवार्ताओं को उन्होंने अपने ग्रन्थों में संग्रहित की है वहुत-सी लोकवार्ताएं यदि वे न अपनाते तो विस्मृति के गर्भ में कमी की विलीन हो जाती। लोक-कथानकों को लेकर निम्न काव्यों का सृजन हुआ— (१) भोजदेव चरित = मालदेव, सारंग, हेमानन्द । (२) अबंड चरित = विनय समुद्र, मंगल माणिक्य । (३) धनदेव चरित ( सिंहलसी चरित) = मलय चन्द । (४) कर्पूर मंजरी मतिसार । (५) ढोला-मारू कुशल लाभ | (६) पच्याख्यान बच्छराज, रत्नसुन्दर, हीरकलश । (७) नंद बत्तीसी = सिंह कुल । (८) पुरन्दर कुमार चौपाई = मालदेव । (६) श्रीपाल चरित साहित्य मांडण ज्ञान सागर, ईश्वर-सूरि, पथ सुन्दर (१०) विल्हण पंचारीका = ज्ञानाचार्य, सारंग । == = (११) शशिकला सारंग | (१२) माधवानल कामकन्दला = कुशल लाभ । (१३) लीलावती = कक्क सूरि शिष्य । (१४) विद्याविलास = हीरानन्द सूरि, आज्ञा सुन्दर । (१५) सुदयवच्छ वीर चरित = अज्ञात कवि कृत, कीर्तिवर्द्धन । - = (१६) चन्द राजा मलयागिरी चौपाई : - भद्रसेन जिनहर्ष सूरि के शिष्य द्वारा रचित । (१७) गोरा-बादल हेम रत्न, लब्धोदय । (१८) इसी प्रकार मुनि कीर्ति सुन्दर द्वारा संग्रहीत "वाग्विलास लघु-कथा संग्रह' से विभिन्न प्रचलित लोककथाओं का पता चलता है। महाराज विक्रम का चरित्र विभिन्न लोक कथाओं का मुख्य आधार और प्रेरणा स्रोत रहा है । मरु-गुर्जर भाषा में भी ४५ रचनाएँ प्राप्त हो चुकी हैं। उनमें से कुछ प्रसिद्ध रचनाओं के नाम ये हैं (१) विक्रम चरित कुमार रास = साधुकीति । (२) विक्रम सेन रास उदयभानु । (३) विक्रम रास: -धर्मसिंह | (४) विक्रम रास = मंगल माणिक्य । (५) वैताल पच्चीसी – ज्ञानचन्द्र । (६) पंचदण्ड चौपाई = मालदेव । u - 000000000000 000000000000 SCCODIFCEC this B3/Page Navigation
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