Book Title: Rajasthani Digambar Jain Gadyakar
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 11
________________ पीछे राणा का उदेपुर विर्ष दौलतराम तेरापंथी, जेपुर के जयत्यंध राजा के उकील सासू धर्म आथि मिले। ताकै संस्कृत का ज्ञान नीकां, बाल अवस्था सू लें वृद्ध अवस्था पर्यन्त सदैव सौ पचास शास्त्र अवलोकन कीया और उहाँ दौलतराम के निमित्त करि दस बीस साधर्मी वा दस बीस बायां सहित सेली का बणाव बणि रहा। ताका अवलोकन करि साहि पूरं पाछा आए ।" इन्हीं राजमलजी की प्रेरणा से दौलतराम जी ने वचनिकाएँ लिखी हैं। जिनकी प्रशस्तियों में इस बात की चर्चा सर्वत्र की है। - जयपुर के प्रसिद्ध दीवान रामचन्द्र जी उनके मित्रों में से थे। उन्होंने इनसे पण्डित टोडरमलजी के अपूर्ण टीकाग्रन्थ पुरुषार्थसिद्ध युपाय भाषाटीका पूर्ण करने का आग्रह किया था और उन्होंने यह ठीका पूर्ण की थी उसकी प्रशस्ति में इस बात की उन्होंने स्पष्ट चर्चा की है एवं पण्डित टोडरमलजी का बहुत ही सम्मान के साथ उल्लेख किया है राजस्थानी दिगम्बर जैन गद्यकार भाषा टीका ताड परि कीनी टोडरमल्ल । मुनिवत वृत्ति ताकी रही वाके मंहि अचल्ल ॥ इन्होंने अपने कवि जीवन के आरम्भ काल में पद्य ग्रन्थ ही अधिक लिखे, किन्तु टोडरमलजी के प्रभाव के कारण वे भी गद्य की ओर झुके फलस्वरूप महान एवं विशालकाय गद्य ग्रन्थों की रचना कर डाली। इनकी गद्य रचनाओं में पद्मपुराण वचनिका', 'आदिपुराण वचनिका' और 'हरिवंशपुराण वचनिका' जैसे महत्वपूर्ण प्रन्थ भी शामिल हैं। जिनका आज भी सारे भारतवर्ष के दिगम्बर जैन मन्दिरों में अनवरत स्वाध्याय होता है । हिन्दी गद्य के विकास की दृष्टि से दौलतरामजी की इन कृतियों का ऐतिहासिक महत्त्व है। इनका समीक्षात्मक अध्ययन आवश्यक है । इनकी भाषा में प्रवाह है। वह परिमार्जित है । युग की धारा को बदल देने में समर्थ है। इनकी रचनाओं का नमूना देखने के लिये जीवन और साहित्य का परिचय प्राप्म करने के लिये डॉ० कस्तूरचंद कासलीवाल द्वारा सम्पादित 'महाकवि दौलतराम कासलीवाल : व्यक्तित्व और कृतित्व" कृति का अध्ययन किया जाना चाहिये। इसकी भाषा का नमूना इस प्रकार है अथानंतर पवनंजयकुमार ने अंजनासुन्दरी को परण कर ऐसी तजी जो कबहूं बात न बूझ, सो वह सुन्दरी पति के असंभाषण ते अर कृपादृष्टि कर न देखवे तें परम दुःख करती भई । (पद्म पुराण भाषा ) अथानन्तर - राजा जरत्कुमार राज्य त्याग करे ताके राज्य में पूजा आनन्द को प्राप्त होती भई राजा महाप्रतापी जिनकी ताके राज को लोग अति चाहें ।। १ ।। सो जरत्कुमार ने राजा कलिंग की पुत्री परनी ताके राजवंश की ध्वजा समान वसुध्वज नामा पुत्र भया ।। २ ।। ताहि राज्य का भार सोंप जरत्कुमार मुनि भये । सत पुरुषन के कुल की यही रीति है । पुत्र को राज्य देय आप चारित्र धारे ॥ ३ ॥ - हरिवंशपुराण चक्रवर्तीनि में आदि प्रथम चक्री अतुल है लक्ष्मी जाके अर नाचते उछलते उत्तुंग तुरंग तिनिके खुरनिकरि चूर्ण कीए है विषस्थल जानै तुरंगनि के खुरनिकरि उठी रेणु ताकरि समुद्र कूं श्यामता उपजावता संता प्रभागदेव कूं जीतिकारि ता की सारभूत वस्तु लीन्ही ।। १२६ ।। आविपुराण ५५५ १. महापंडित टोडरमल व्यक्तित्व एवं कृतित्व पृ० २५५-५६ ३. वही, पृ० २६० पं० जयचंदजी छावड़ा - दिगम्बर जैन समाज में सर्वाधिक सम्माननीय आचार्य कुन्दकुन्द के सर्वोत्कृष्ट ग्रन्थ 'समयसार' एवं उसके मर्म को प्रकट करने वाली आचार्य अमृतचन्द्र की 'आत्मख्याति' तथा 'कलशों' के समर्थ Jain Education International : २. वही, पृ० २५५-५६ ४. वही, पृ० ३०६ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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