Book Title: Rajasthan ke Shilalekho ka Vargikaran Author(s): Ramvallabh Somani Publisher: Z_Nahta_Bandhu_Abhinandan_Granth_012007.pdf View full book textPage 6
________________ पुत्र अहि शर्माका उल्लेखहै । विजयगढ़का सं० ४२८का यप स्तम्भ मिला है | यह ग्राम बयानाके समीप है। इस लेखमें वारिक विष्णुवर्द्धन जो यशोवर्द्धनका पुत्र और यशोराट्का पौत्र था का उल्लेख है। इसने पुंडरीक यज्ञ किया था। इसके बाद यज्ञोंकी परम्परासे सम्बन्धित लेख अपेक्षाकृत कम मिलते हैं। यज्ञस्तूप तो बादमें नहींके बराबर मिले हैं । एक अपवाद स्वरूप सवाई जयसिंह द्वारा किये गये यज्ञका शिलालेख अवश्य उल्लेखनीय है । कीत्तिस्तम्भ स्थापित कराना गौरवपूर्ण कृत्य माना जाता था। राजस्थानसे अबतक ज्ञात लेखोंमें घटियालाका सं० ९१८का प्रतिहार राजा कक्कुकका लेख प्राचीनतम और उल्लेखनीय है । इस लेखमें प्रतिहार राजा कक्कुककी बड़ी प्रशंसा की गयी है और उसे गुजरता, मरुवल्ल तमणी माड आदि प्रदेशोंके लोगों द्वारा सन्मान दिया जाना भी वर्णित है । वह स्वयं संस्कृतका विद्वान् था। उसने २ कीर्तिस्तम्भ स्थाषित किये थे एक मंदोरमें और दूसरा घटियालामें। चित्तौड़से जैनकीत्तिस्तम्भसे सम्बन्धित कई लेख मिले हैं। जो १३वीं शताब्दीके हैं। लगभग ६ खंडित लेख उदयपुर संग्रहालय में है। एक लेख केन्द्रीय पुरातत्त्व विभागके कार्यालयमें चित्तौड़ में है और एक गुसाईजीकी समाधिपर लग रहा है जिसे अब पूरी तरहसे खोद दिया है। इस लेखकी प्रतिलिपि वीर विनोद लिखते समय स्व० ओझाजी ने ली थी जो महाराणा साहब उदयपुर के संग्रह में विद्यमान है। उसीके अनुसार मैंने इसे अनेकान्त (दिल्ली) पत्रिका में सम्पादित करके प्रकाशित कराया है। लेखोंसे पता चलता है कि इसका निर्माण जैन श्रेष्ठि जीजाने कराया कराया था जो बघेरवाल जातिका था। कोडमदेसर (बीकानेर) में एक कीत्तिस्तम्भ बना है। यह लाल पत्थरका है। इसके पूर्वमें गणेश, दक्षिणमें विष्णु, उत्तरमें ब्रह्मा और पश्चिममें पार्वतीकी मूर्ति बनी हुई है। इसमें अरड़कमलकी मृत्युका उल्लेख है। बीकानेर क्षेत्रसे धांधल राठौरोंके कई लेख पाबूजीसे सम्बन्धित मिले हैं । वि० सं० १५१५ के फलोधी के बाहर लगे एक लेख में "राठड धाँधल सुत महाराउत पाबूप्रसाद मर्ति कीतिस्थम्भ कारावितं" 3 शब्द अंकित है। लगभग इसी समय चित्तौड़का कीर्तिस्तम्भका प्रसिद्ध लेख मिला है। यह कई शिलाओंपर उत्कीर्ण था। अब केवल २ शिलायें विद्यमान हैं। इस लेख में महाराजा कुम्भाके शासनकालकी घटनाओंका विस्तृत उल्लेख किया गया है। राणिकसरके बाहर वि. स. १५८९ का कीर्तिस्तम्भ बना हुआ है। जैन मंदिरोंके बाहर जो लेख खुदे हुए हैं इन्हें “मानस्तम्भ'' भी कहते हैं। इनके अतिरिक्त पट्टावली स्तम्भ भी कई मिलते हैं। इनमें विभिन्न गच्छोंकी पट्टावली स्तम्भोंपर उत्कीर्ण की हुई बतलायी गयी है। ये स्तम्भ कई खण्डोंके होते हैं जो कीर्तिस्तम्भके रूपमें होते हैं । सं० १७०४ के २ स्तम्भ आमेरके राजकीय संग्रहालयमें हैं जो चारसूसे लाये गये थे। आमेरको नसियामें १९ वीं शताब्दीका विस्तृत स्तम्भ बना हुआ है। अन्य स्तम्भ लेखोंमें आंवलेश्वरका शिलालेख उल्लेखनीय है। इसमें कुलोनके पुत्र पौण द्वारा भगवानके निमित शैलग्रह बनानेका उल्लेख है । यह २री शताब्दी ई० पू०का है । प्रशस्तियाँ शिलालेखोंमें सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण होती है। इनमें कुछ प्रशंसात्मक इतिवृत्ता भक एवं १. एपिग्राफिमा इंडिका भाग ९ पृ० २८० । २. जैन लेख संग्रह भाग ५ पृ० ८४ । ३. जर्नल बंगाल ब्रांच रावल एशियाटिक सोसाइटी १९११ पृ० ४. महाराणा कुम्भा पृ० ४०१ से ४११ । १२८ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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