Book Title: Ragmala Shantinath Stavan
Author(s): 
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 2
________________ 64 अनुसन्धान ३३ लखायेल छे. ____ अलबत्त, प्रतिना अक्षर खूब सुन्दर होवा छतां, प्रत खूब अशुद्ध छे. अशुद्धिओ सुधारीने नकल करवी ए जरा विकट काम जणायुं छे. आ प्रतनी झे० नकल वर्षों पूर्व उपाध्यायश्री भुवनचन्द्रजी द्वारा मळेली, तेना आधारे आ सम्पादन कर्यु छे. बीजी प्रतोनो आधार लईने पाठशुद्धि करवानो पूरो अवकाश छेज. प्रतनी नकल आपवा बदल ज्ञानभण्डारना कार्यवाहकोनो आभारी छु.. श्रीराग सामेरी ॥ वंछितपूरण मनोहरूं सयलसंघ-मंगलकरू जिनवरू चउवीसि नितुं वंदिइ ए ॥१॥ ब्रह्मवादिनी मनि धरुं निजगुरुचलणे अणसरूं सा मेरी मति एणि परि निरमल करू ए ॥२॥ राग असाउरी ॥ मति निरमल जिननामि कीजइ, लहिइ अति आणंद । अचिरामाता उअरि धरीया, विश्वसेन-कुलचंद ॥३॥ जसु नाम सुणंता सिवसुख लहिइ, सिझइ वंछित काम । सो शांतिनाथ सोलमो, तवीजे असारी अरिभिराम (असाअरी अभिराम ?) ॥४॥ राग रामगिरि ॥ अभिराम गिरिवर मेरुशृंगि जनम महोच्छव सार । चउसठि सुरपती करइ उच्छव जव जनमिया जगादाधार ॥५॥ इम करीइ उच्छव मात पासि, थापिया जिनराय । अति गहिय समकित निरमलू निजठामि सुरपती जाइ ॥६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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