Book Title: Raghuvansh Tikani Parichayatmak Bhumika Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 4
________________ अनुसंधान-२६ ८ मां 'सत्त्व' शब्दनी चर्चा जुओ. वळी, 'सत्त्व' शब्दमां बे 'त' कार क्यारे प्रयोजाय, तेनी पण चर्चा त्यां करी छे. तो तर्कसभर चर्चा पण आ टीकामां जोवा मळे छे. श्लोक १७मां प्रथम पद 'सः' छे. ए पदधी कोनो परामर्श करवो ते मुद्दे टीकाकारे त्यां प्रारम्भमां ज मार्मिक तर्कवाद कर्यो छे, अने तें द्वारा 'सः' पदधी 'दिलीप 'नो परामर्श करवानो छे तेम सिद्ध करी बताव्युं छे. एज रीते श्लोक १२नी टीकामां 'कीचक' पदनी व्याख्या करतां, अने श्लोक २९नी टीकामां 'गो' शब्दना प्रवृत्तिनिमित्तनी चर्चामां, संक्षेपमां ज छतां रसप्रद बने ते रीते तार्किक उन्मेषो दर्शाव्या छे. श्लोक २९मां 'धातु' विषे अनेक सन्दर्भों सहित चर्चा करी छे, तेमां धातुविशेषो विषे वर्तमान विज्ञानना नियमो पण टांकी बताव्या छे, जे टीकाकारना, समसामयिक प्रतिपादनो विषेना, व्यापक अवगाहनना सूचक बनी रहे 1 छे. - कोई पण ग्रन्थना विवरणकारने तेना पूर्वज विवरणकारोना रचेला विवरणनो टेको लेवानुं लगभग अनिवार्य होय छे. प्रस्तुत टीकाकारे पण 'मल्लिनाथ' जेवा प्रसिद्ध अने मान्य पूर्व सूरिना विवरणनुं आलम्बन अवश्य लीधुं ज होय. परंतु, मल्लिनाथना शब्दोना मर्मनुं पण क्वचित् एवं रूडुं उद्घाटन आ टीकाकारे कर्तुं छे के जे खूब रसप्रद बनी रहे छे. श्लोक १९मां 'उपोषिताभ्यां ' शब्द आवे छे. तेमां 'दृष्टिना उपवास'नी वात छे- उपमा द्वारा त्यां टीकाकारे एक वाक्य नोंध्युं छे : 'यथा उपोषितोऽतितृष्णया जलमधिकं पिबति'. सम्भवत: आ वाक्य 'मल्लिनाथ' नुं छे. केमके टीकाकारे ते वाक्य उपर विवरण करतां मर्मोद्घाटन आ प्रमाणे कर्तुं छे : "अनेनाऽर्थकरणेनाऽस्य वृत्तिकारी मल्लिनाथ: चतुर्विधाहारत्यागरूप एव वास्तव उपवासः, न तु फलाहाररूप इति ज्ञापयति'. 'उपवास' विशेनी त्यां थयेली समग्र चर्चा पण मार्मिक अने तार्किक छे. श्लोक २३मां आवता 'निपीड्य' पद नो अर्थ मल्लिनाथे 'संवाह्य' नहि करीने 'अभिवन्द्य' एवो कर्यो छे, तेवो सूक्ष्म मर्म पकडीने टीकाकार नोंधे छे के 'अत्र स्त्रीपादसंवाहनमयुक्तं पुरुषस्येत्यभिसन्धाय अभिवन्द्येति (विवृतवान् ) मल्लिनाथ इत्यनुमीयते ' । आ वात पण केटली मार्मिक छे ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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