________________ समाधान- (1) मेरा कुछ नहीं है (2) मुझे कुछ नहीं चाहिए (3) मुझे अपने लिये कुछ नहीं करना है। ऐसी उसकी सतत् जागरूक अन्तर धारणा होती कर्त्ता हूँ, यह कर्म चेतना है, और ज्ञान के सिवाय अन्य भावों में ऐसा अनुभव करना कि इसका मैं भोगता हूँ, यह कर्म फल चेतना है, अपने ज्ञान भाव में रहना ज्ञान चेतना है। प्रश्न 15.- भाव मोक्ष और द्रव्य मोक्ष क्या है? समाधान- आत्मा का जो परिणाम समस्त कर्मों के क्षय का हेतु है, अर्थात् मैं ध्रुव तत्व शुद्धात्मा हूँ, ऐसी अनुभूति भाव मोक्ष है और आत्मा से कर्मों का पृथक होना, द्रव्य मोक्ष है। प्रश्न 16.- सम्यक्दर्शन प्राप्त करने वाले जीव की पात्रता क्या होती है? समाधान- चारों ही गति में से किसी भी गति वाला भव्य, संज्ञी, पर्याप्तक, मन्द कषायी, ज्ञानोपयोगयुक्त, जागता हुआ, शुभ लेश्या वाला तथा करण लब्धि से सम्पन्न जीव सम्यक्त्व को प्राप्त करता है। प्रश्न 17.- शास्त्र स्वाध्याय करने से क्या लाभ होता है? समाधान-(१) त्रिकालवर्ती अनन्त द्रव्य, पर्यायों के स्वरूप का ज्ञान होता है। (2) हित की प्राप्ति और अहित के परिहार का ज्ञान होता है। (3) मिथ्यात्वादि से होने वाले आश्रव का निरोध रूप भाव संवर होता है। (4) प्रति समय संसारसे नये-नये प्रकार की भीरूता होती है। (5) व्यवहार और निश्चय रत्नत्रय में अवस्थिति होती है। (6) रागादि का निग्रह करने वाले उपायों में भावना होती है। (7) पर को उपदेश देने की योग्यता प्राप्त होती है। प्रश्न 18.- परिणामों की विशुद्धि के लिए क्या करना चाहिए? समाधान- परिणामों की विशुद्धि के लिए पाप, विषय, कषाय, परिग्रह आदि का त्याग करना चाहिए। प्रश्न 19.- ज्ञानी कर्म संयोग के बीच अलिप्स कैसे रहते हैं? समाधान-ज्ञानी पुरुष अपने स्व रस से अर्थात् स्वभाव से ही, सम्पूर्ण राग रस से दूर रहने के स्वभाव वाला है। इससे कर्म के बीच पड़ा हुआ है। तो भी वह ज्ञानी सम्पूर्ण कर्मों से लिप्त नहीं होता। प्रश्न 20.- ज्ञानी की विशेषता क्या है? [101] प्रश्न 21.- वास्तविक ज्ञान क्या है? समाधान- सम्पूर्ण नाशवन्त पदार्थों से विमुख होकर एक सच्चिदानन्द घन परमात्मा में अभिन्न भावों से स्थित होना ही वास्तविक ज्ञान है। प्रश्न 22.- ज्ञान मार्ग में बढ़ने में पहली बाधा क्या है? समाधान- जो पढ़ते हैं, सुनते हैं, विचार करते हैं, तथा ठीक समझते हैं, उस पर भी दृढ़ता से स्थिर नहीं रहना, उस बात को विशेष महत्व नहीं देना ही पहली बाधा है। प्रश्न 23.- साधक की प्रारम्भिक अवस्था में बाधक कारण क्या है ? समाधान- स्वयं की आसक्ति, दुर्बलता, भोगासक्ति, आलस्य, प्रमाद और शरीर, इन्द्रिय आदि में सुख बुद्धि होना। प्रश्न 24.- मुक्त होने के लिये क्या किया जाये ? समाधान- एक ही मार्ग है- तत्व ज्ञान की प्राप्ति करना, और इसके लिए सांसारिक संग्रह में भोगबुद्धि, सुख बुद्धि और रस बुद्धि नहीं करना, तथा निषिद्ध आचरण-पाप, अन्याय, झूठ, कपट आदि का हृदय से त्यागकर देना। यही निश्चय-व्यवहार से शाश्वत मार्ग है। जय तारण तरण देव (परमात्मा)- तारणतरण गुरु तारणतरण तारणतरण आत्मा तारणतरण जयतारण तरण धर्म [102]