Book Title: Pundit Puja
Author(s): Gyanand Swami
Publisher: Bramhanand Ashram

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Page 52
________________ प्रश्न ३. - निश्चय मोक्षमार्ग की प्राप्ति, किससे होती है ? समाधान - अपने सम्यक्दर्शन, सम्यक्ज्ञान, सम्यक्चारित्र. तपके दोषों को दूर करके उन्हें, निर्मल करना, उनमें अपने को सदा एकमेक रूप से वर्तन करना। लाभ, पूजा, ख्याति, आदि की अपेक्षा न करके निस्पृह भाव से उन सम्यक्दर्शनादि को निराकुलतापूर्वक वहन करना. संसार से भयभीत अपनी आत्मा में इन सम्यक्दर्शनादि को पूर्ण करना, यही निश्चय मोक्ष मार्ग है। प्रश्न 8. - संसार किसे कहते हैं? समाधान - जीव के परिणाम निश्चय नय के श्रद्धान से विमुख होकर शरीरादि पर द्रव्यों के साथ एकत्व श्रद्धान रूप होकर जो प्रवृत्ति करते हैं, उसी का नाम संसार है। प्रश्न ५. - ज्ञानी का स्वरूप क्या है ? समाधान - जो स्व-पर के यथार्थ निर्णय पूर्वक शुद्धात्म स्वरूप को जानता है, जिसे मैं ध्रुव तत्वशुद्धात्मा हूँ, ऐसा अनुभूति युत निर्णय है, उसे ज्ञानी कहते हैं। ज्ञानी, निश्चय रत्नत्रय को ही मोक्षमार्ग मानता है और उस पर ही अपनी पात्रतानुसार चलता है। प्रश्न ६. - अज्ञानी का स्वरूप क्या है ? समाधान - जो अपने शुद्धात्म-स्वरूप को नहीं जानता, उसे अज्ञानी कहते हैं। अज्ञानी जीवों को समझाने के लिए आगम में व्यवहार का उपदेश है, किन्तु जो केवल व्यवहार की ही श्रद्धा करके उसी में रहता है, वह अज्ञानी है। प्रश्न ७ - निश्चय और व्यवहार नय क्या है ? समाधान - जो अभेदरूपसे वस्तु का निश्चय करता है, वह निश्चय नय है, जो भेद रूप से वस्तु का व्यवहार करता है, वह व्यवहार नय है। प्रश्न ८. - वस्तु स्वरूप क्या है? समाधान- वस्तु दो हैं, जीव और पुदगल । वस्तु स्वरूपसे सत, पररूपसे असत है, इसी तरह द्रव्य पर्यायात्मक वस्तु है, वस्तु न केवल द्रव्य रूप है और न केवल पर्याय रूप है, किन्तु द्रव्य पर्यायात्मक है। द्रव्य नित्य और पर्याय अनित्य होती है, द्रव्य एक होता है, पर्याय अनेक होती हैं, अतः द्रव्य रूप से अभिन्न और पर्याय रूप से भिन्न, भेदात्मक वस्तु अनेकान्तात्मक है। शुद्ध रूप से वस्तु को जानना ही वस्तु स्वरुप की सच्ची समझ है। प्रश्न९. - ध्यान करने की विधि क्या है ? समाधान- इष्ट और अनिष्ट पदार्थों से मोह, राग द्वेष को नष्ट करने से चित्त स्थिर होता है। चित्त के स्थिर होने का नाम ही ध्यान है। चित्त स्थिर करने के लिए इष्ट विषयों से राग और अनिष्ट विषयों से द्वेष हटाना चाहिए। ये राग द्वेष ही ध्यान के समय बाधा डालते हैं और, मन इधर-उधर भटकता है, ध्यान करने से रत्नत्रय की प्राप्ति होती है। प्रश्न १०.-काल लब्धि किसे कहते हैं? समाधान- जब जीव के संसार परिभ्रमण का काल अर्ध पुदगल परावर्तन प्रमाण शेष रहता है, तब वह प्रथमोपशम सम्यक्त्व के ग्रहण करने के योग्य होता है, उसे काल लब्धि कहते हैं। जब पांच लब्धियों का लाभ होता है, तब भव्य पर्याप्तक जीव को सम्यक्दर्शन का लाभ होता है, उसे काल लब्धि कहते हैं। प्रश्न ११.- राग द्वेष कर्म से पैदा होते हैं या जीव से? समाधान-राग द्वेष जीव और कर्म के संयोग से पैदा होते हैं। जैसे- हल्दी और चूना के मिलाने से लाल रंग बन जाता है। प्रश्न १२.- परमात्मा कैसे बनते हैं? समाधान- जो जीव भेदज्ञान, तत्वाभ्यास द्वारा सम्यक्त्व को प्राप्त करके, सम्यकज्ञान और सम्यक्चारित्र की साधना द्वारा साधु पद धारण करके सम्यक् तप करते हैं, ध्यान समाधि लगाते हैं, वे केवलज्ञानी-अरिहन्त परमात्मा बनते हैं। प्रश्न १३.- मन क्या है? समाधान- द्रव्य मन पुदगल की पर्याय है। भाव मन जीव की पर्याय है। जिसमें निरन्तर संकल्प विकल्प होते रहते हैं, ऐसे विचारों के प्रवाह को मन कहते हैं। प्रश्न १४.- चेतना कितने प्रकार की होती है? समाधान- चेतना, तीन प्रकार की होती है, कर्मचेतना, कर्म फल चेतना, और ज्ञान चेतना, ज्ञान के सिवाय अन्य भावों में ऐसा अनुभव करना कि मैं इसका [100] [99]

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