Book Title: Priyankarnrupkatha
Author(s): Hiralal R Kapadia
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 182
________________ ग-परिशिष्टम् ॥ ॐ नमः सिद्धम् ॥ अनेकमन्त्रगर्भितं परमप्रभावकं || उवसग्गहरं श्रीपार्श्वनाथस्तोत्रम् ॥ कप्पतरुमिव जायइ ☆o:*:04 उवसग्गहरं पासं पासं वंदामि कम्मघणमुक्कं । विसहरiवसनिन्नासं मंगलकल्लाणआवासं ॥ १ ॥ विसहर फुलिंगमंतं कंठे धारेइ जो सया मणुओ । तस्स गह-रोग-मारी - दुट्ठजरा जंति उवसामं ॥ २ ॥ चिट्ठउ दूरे मंतो तुज्झ पणामो वि बहुफलो होइ । नर- तिरिएसु वि जीवा पावंति न दुक्खदोगचं ॥ ३ ॥ ॐ अमरतरु- कामधेणु-चिंतामणिकामकुंभमाइया । सिरिपासनाह सेवाग्गहाण सव्वे वि दासत्तं ॥ ४ ॥ ॐ ह्रीँ श्रीँ एँ ॐ तुह दंसणेण सामिय ! पणासेइ रोग-सोग - दोहग्गं । Jain Education International ४१ ॐ तुह दंसणेण सव्वफलहेऊ स्वाहा ॥ ५ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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