Book Title: Prit Kiye Dukh Hoy
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कथा-परिचय इस महाकथा का आधार ग्रंथ है- सुरसुंदरी रास. इस रास की रचना पंडितप्रवर श्री वीरविजयजी ने वि. सं. १८५७ में अहमदाबाद में की थी. जैन गुजराती साहित्य में पंडितप्रवर श्री वीरविजयजी का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण एवं असाधारण है. उनकी एक-एक रचना पदलालित्य से परिपूर्ण है. वर्णन शैली भी रोचक एवं बोधगम्य है. सुरसुंदरी रास में उन्होंने साहित्य के नव रसों का प्रयोग बड़े ही सहजता पूर्वक किया है. इस काव्य को पढ़ने से ऐसा आभास होता है कि मानो काव्य की पंक्तियों व शब्दों के सौंदर्य का यौवन निखर रहा हो. - इस रास-काव्य में से कथावस्तु लेकर मैंने प्रस्तुत ग्रंथ वि. सं. २०३७ में धानेरा (गुजरात) के चातुर्मास की अवधि में लिखा है. कथा पढ़ते-पढ़ते आध्यात्मिक रसानुभूति तो होगी ही, साथ ही श्री नवकार महामंत्र के ऊपर अगाध श्रद्धा भी उत्पन्न होगी. सभी इस कथा को पढ़कर अन्तर्मुखी बनें, अनासक्त बनें ऐसी मंगलकामना के साथ. - प्रियदर्शन For Private And Personal Use Only

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