Book Title: Prayogoni Pagdandi Par
Author(s): H C Bhayani
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 2
________________ 91 क्षेपणी, अरित्र 1. क्षेपणी 1. 'नामलिंगानुशासन' (अमरकोश), 'अभिधान-चिन्तामणि' जेवा परंपरागत शब्दकोशोमां सं. क्षेपणी शब्द नौकादंड एटले के 'हलेसुं'ना अर्थमां आप्यो छे / (अमर० 10,13, अभि० 877) / टर्नरना भारतीय-आर्य भाषाओना तुलनात्मक कोशमां आमांथी निष्पन हिंदी, खेवनी आपवा उपरांत सं. क्षेपयति, क्षेप, क्षेप्य, क्षेपक ए शब्दरूपोमांथी ऊतरी आवेला हिंदी वगेरेना खेवना वगेरे, बंगाळी वगेरेना खेया वगेरे, पंजाबी खेवा, वगेरे, हिन्दी खेवैया वगेरे 'नाव', 'नाव चलाववी', 'नाव चलावनार' वगैरे अर्थोमां नोंध्या छे (टर्नर, क्रमांक 3738 थी 3742) / 2. अरित्र 2. सं. अरित्रना अर्थनी बाबतमां मतभेद (कदाच अर्थपरिवर्तन के कशीक गरबड ) छे / 'अमरकोश'मां (10,13) तथा 'अभिधान-चिन्तामणि'मां (879) तेनो 'सुकान' एवो अर्थ आप्यो छे / परंतु मोनिअर विलिअम्झना संस्कृत कोश अनुसार 'ऋग्वेद' आदि वैदिक साहित्यमा तेम ज पाणिनिनी 'अष्टाध्यायी'मां तेनो 'हलेसं' ए अर्थमा प्रयोग छ / 'आचारांग-सत्र'मां (परिच्छेद 479) पण अलित (पाठांतर आलित्त-पासम.मां आ बंने शब्दरूपो 'आचारांग'ना संदर्भ साथे 'हलेसुं'ना अर्थमां आप्यां छे, परंतु अरित्र 'धर्मविधिप्रकरण'ना संदर्भ साथे 'सुकान ना अर्थमां आप्यो छे). जंबूविजयजीना संपादनमां आपेल 'चूर्णि'ना संदर्भोमां पण लांबाढूंका हलेसाना तथा सुकान वगेरेना वाचक शब्दोमां ‘अलित्त' मळे छे. अर्धमागधीनी लाक्षणिकता धरावता मूळना '' > 'ल' एवा परिवर्तनवाला शब्दोमा अलित्त (< अरित्र)नो पण समावेश थाय छे / हेमचंद्रविजयगणिनी 'अभिधान-चिन्तामणि-नाममाला' नी आवृत्तिमा सार्थ शब्दानुक्रमणिकामां मूळ अरित्रनो 'वहाण, सुकान' ए अर्थ बराबर को छे, परंतु अभि.मां अपेल अरित्रना पर्याय केनिपात अने कोटिपात्रना 'वहाणर्नु सुकान, हलेसुं' एम जे बे अर्थ आप्या छे ते भूल छ / क्षेपणीनो अर्थ पण अनवधानथी क्षेष 'निन्दा' आप्यो छे / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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