Book Title: Pravachansara
Author(s): Vijay K Jain
Publisher: Vikalp Printers

Previous | Next

Page 6
________________ Pravacanasāra इस ग्रन्थ की एक बड़ी विशेषता यह है कि इसमें जिनप्रणीत आगम के स्वाध्याय पर बहुत अधिक बल दिया गया है • प्रत्यक्ष तथा परोक्ष प्रमाण-ज्ञान के द्वारा वीतराग सर्वज्ञप्रणीत आगम से पदार्थों को जानने वाले पुरुष के नियम से मोह का समूह नाश को प्राप्त होता है इसलिये जिनागम का अच्छी तरह अध्ययन करना चाहिये। (गाथा 1-86) • जो यह जीव आत्मा को (स्वयं को) मोह-रहित वीतराग भावरूप चाहता है तो वीतरागदेव कथित आगम से विशेष गुणों के द्वारा आत्मा को और अन्य द्रव्यों को जाने। (गाथा 1-90) • सर्वज्ञ-वीतराग-प्रणीत सिद्धान्त से पदार्थों का यथार्थ ज्ञान होता है इस कारण सिद्धान्त के अभ्यास की प्रवृत्ति प्रधान है। (गाथा 3-32) • मुनि सिद्धान्त-रूपी नेत्रों वाला होता है अर्थात् मुनि के मोक्षमार्ग की सिद्धि के निमित्त आगम-नेत्र होते हैं। (गाथा 3-34) • सभी जीव-अजीवादि पदार्थ नाना प्रकार के गुण-पर्यायों से सिद्धान्त में सिद्ध हैं। उन पदार्थों को मोक्षमार्गी महामुनि सिद्धान्त-नेत्र से देखकर जानते हैं। (गाथा 3-35) • जिस जीव के पहले अच्छी तरह सिद्धान्त को जानकर सम्यग्दर्शन नहीं हो तो उसके मुनि की क्रिया-रूप आचार - संयम - नहीं होता। और जिसके संयमभाव नहीं है वह पुरुष मुनि कैसे हो सकता है? (गाथा 3-36) इसी प्रकार और भी अनेक महत्त्वपूर्ण विषय (शुभाशुभ भाव, शुद्धोपयोग, इन्द्रियसुख, अतीन्द्रिय सुख, सर्वज्ञता, द्रव्यगुणपर्याय, श्रमणदीक्षाचर्या आदि) इस ग्रन्थराज में ऐसे हैं जो इसकी महिमा को सम्पूर्ण विश्व में प्रसारित एवं स्थापित करते हैं। यह ग्रन्थ विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में निर्धारित है। हम सभी साधुओं और श्रावकों को इस ग्रन्थ का बारम्बार अध्ययन-अध्यापन करना चाहिए। 'समयसार' परमागम की तरह यह ग्रन्थ भी अत्यंत उपादेय है। श्री विजय कुमारजी जैन, देहरादून ने 'प्रवचनसार' ग्रन्थ की हिन्दी व अंग्रेजी में सुन्दर व्याख्या तथा इसका सम्पादन-प्रकाशन करके जिनवाणी की महती सेवा की है। उन्हें मेरा मंगल आशीर्वाद है। ग्रन्थ के कार्य में आचार्य प्रज्ञसागर जी का भी बड़ा सहयोग रहा है, उन्हें भी मेरा मंगल आशीर्वाद है। जैनं जयतु शासनम्। २।३) वाद अप्रैल 2018 आचार्य विद्यानन्द मुनि कुन्दकुन्द भारती, नई दिल्ली (vi)

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 407