Book Title: Pratima Shatak Part 04
Author(s): Yashovijay Upadhyay, Pravin K Mota
Publisher: Gitarth Ganga

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Page 426
________________ 11 ५९ २७६ ६६४ १६८ સાક્ષીપાઠોનો અકારાદિકમ __पद्यांशः पृ. क्र. पद्यांशः पृ. क्र. थंडिल्ले वि हु (विंशिका ८/१४) १२४६ न वि संखेवो (आवश्यकनि. १००६) दहतिग अहिगम (चैत्यवंदनभा० गा. २) ४५६ न हि कार्षापण (पञ्चाशकवृत्ती) ६३५ दव्वाणं सवभावा (उत्तराध्ययन २८/२४) १३९१ | नागादे रक्षणं (राज्यादिदानाष्टक श्लो. ७) ५३७ दव्वसुयं जं पत्तय० (बृहत्कल्पभा. गा. १७५) ४५ नाणावरणिज्जस्स (आवश्यकनि. ८९३) ८७१ दव्यथओ भावथओ (आवश्यकनि. भा. १९२) ७१९, १४१९ | नामट्ठवणा० (आवश्यकनि. भा. १९१) ७१७ दसविहे सराग० (स्थानाङ्ग. १०/३/७५१) | नियदव्यमउव्व० (भक्तप्रकीर्णके गा. ३१) ८८१ दाणाइआ उ (विंशिका ६/२०) १४५२ | निर्वाणसाधनं (षोडशक १५/४) १५१८ दिट्ठो अ तीए (पञ्चाशक ७/४०) ५३७ नियमा जिणेसु (आवश्यकनि. ११३६) १२९७ दीधितिमधिचिन्तामणि (तत्त्वचिन्तामणि दीधिति) | निस्सकडम० (बृ. कल्पभाष्य गा. १८०४) १२०१ दीक्षा मोक्षार्थ० (अग्निकारिकाष्टक श्लो. २) ३४६ | नीयावासविहारं (आवश्यकनि० गा. १९७५) ६०८ दुहवो वि ते ण (सूत्रकृताङ्ग १/११/२१) | नृशंसदुर्बुद्धि० (अयोगव्यवच्छेद श्लो० १०) ८०३ देवगुणपरिनाणा (श्राद्धविधि) १९९७ नोत्सृष्टमन्यार्थं (अन्ययोगव्यवच्छेद श्लो० ११) देवगुणप्रणिधानात् (षोडशक ५/१४) न्याससमये तु १२४६ देवतात्वं मन्त्र० (योगमतम्) | पच्छा कडुअविवागा (उत्तराध्ययन १९/११) देवोद्देशेनैतद् (षोडशक ६/१२) ४५८ | पढमेणं पंडगवणं (विशेषावश्यक भा. ७८८) ८९ देशं कालं (प्रशमरति श्लो. १४६) | पढमेणं माणुसोत्तर० (विशेषावश्यक भा. ७८९) ८९ देशनादेशित (वाचस्पतिमिश्रमतम्) | पढमेणं नंदणवणं (विशेषावश्यक भा. ७९०) देहादिनिमित्तं (पञ्चाशक ४/४५) ७४५ | पढमा पढमा० (पूजाविंशिका गा. ६) दो दिसाओ (स्थानाङ्ग २/१/७६) ८१६ पढमकरण (पूजाविंशिका गा. ८) द्रागस्मात् तद्दर्शनं (षोडशक १५/१०) १५२३ पढमाणुदयाभावो (विंशिका ६/१६) ६३७ धन्नाणं विहिजोगो (श्राद्धविधि गा. ६ वृत्ती) ११९३ पढमे दंडसमादाणे (सूत्रकृताङ्ग २/२/१७) ७७८ धम्मकंखिए पुण्णकंखिए (भगवतीसूत्र पराभवे तथा (आख्यातचन्द्रिकायाम्) शतक १-३-७, सू. ६२) १४६५ | पराभिसन्धिमसंविदानस्य (अन्ययोग. श्लो. २०) १४९२ धर्माङ्गख्यापनार्थं (दानाष्टक श्लो. ३) २९१ | परिणामासयवसओ (विशेषावश्यक० गा. १९४४) १३४४ धर्मार्थं यस्य वित्तेहा (अग्निकारिका श्लो. ६) ३४८/६८० परिणामियं पमाणं (ओघनियुक्ति गा. ७६९) ४०० धर्मश्चित्तप्रभवः (षोडशक ३/२) १४८४ | परिणमदि जेण दव्वं (प्रवचनसार १/८) १४७९ नईसंतरणे ५०३ पापं च राज्य० (अग्निकारिकाष्टक श्लो. ४) । ३४७ न कामभोगा (उत्तराध्ययन ३२/१०१) पावं च छिंदइ (आवश्यकनियुक्ति गा. १५२२) न च स्वदान० (दानद्वात्रिंशिका श्लो. १९) २९२ | पुढवी आउक्कार (आचाराङ्गनि० १२३) ३६९ न णु मणवइकाय० (विशेषावश्यक भा. १९३६) १३३९ | पुत्तं पिया (सूत्रकृताङ्ग १/१/२/२८) ननु नारकस्य (प्रज्ञापना क्रियापदवृत्तिः) ४२० | पुष्फवद्दलयं (राजप्रश्नीये) १३७९ न परीक्षां विना ७७२ | पुवाणुपुब्बि० (आवश्यकनियुक्ति १००८) न य साहारणरूवं (विशेषावश्यक १९३४) | पुबगहियं च कम्म० (विशेषावश्यकभा. १९३८) १३३७ २२२ २२४ ७१० ८१७ ४२७

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