Book Title: Pratikraman Sambandhi Vishishta Marmsparshi Prashnottar
Author(s): Jagdishprasad Jain
Publisher: Z_Jinavani_002748.pdf

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Page 29
________________ 3611 15,17 नवम्बर 2006|| जिनवाणी 361] चिकित्सा करता है। ६. जैसे मानसिक रोगी व्यक्ति चिकित्सक के परामर्शानुसार सदैव सकारात्मक विचारधारा (Positive Thinking) ध्यान आदि को अपनाकर, अपनी मानसिक स्वस्थता में अभिवृद्धि करता है और दिमाग को सुदृढ़ बनाता है, वैसे ही कर्मरोग से पीड़ित साधक आत्मा को शक्तिशाली बनाने तथा आत्मविश्वास को सुदृढ़ करने हेतु, अनशन, कायक्लेश, कायोत्सर्ग आदि अनेक प्रकार के तप अपनाता है। संक्षेप में कहें तो १. समभाव से समाधि मिलती है। २. पूर्ण गुणियों को देखकर वैसा बनने का लक्ष्य बनता है ३. इस मार्ग में बढ़ते गुरुओं को देखकर आत्मविश्वास जगता है। ४. स्वयं दोषों से पीछे हटता है ५. पश्चात्ताप से शुद्धि करता है। ६. अनेक तरह के गुण धारण कर पूर्णता प्राप्ति के मग में डग भरता है। प्रश्न दिन और रात्रि के दोनों प्रतिक्रमण रात्रि में ही क्यों? उत्तर इसके समाधान के निम्न बिन्दु हैं- १. उत्तराध्ययन सूत्र के २६वें अध्ययन में साधु समाचारी का सुन्दर विवेचन किया है। वहाँ गाथा ३८-३९ में दिन के चौथे प्रहर के चौथे भाग में लगभग (४५ मिनट) पूर्व स्वाध्याय को छोड़कर उपकरणों की प्रतिलेखना (मुँहपत्ती, ओघा, पात्र आदि) और उसके पश्चात् उच्चार-प्रस्रवण भूमि के प्रतिलेखन का विधान किया गया है। निशीथसूत्र के चौथे उद्देशक में तीन उच्चार-प्रस्रवण भूमि(जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट- अर्थात् नजदीक दूर, और दूर) की प्रतिलेखना नहीं करने वाले को प्रायश्चित्त का अधिकारी बताया गया है इस प्रतिलेखाना में समय लगना सहज है और उसके पश्चात् प्ततिक्रमण की आज्ञा लेने का विधान है। इससे स्पष्ट हो रहा है कि दिन का प्रतिक्रमण सूर्यास्त होते समय प्रारम्भ करना चाहिए २. टीकाकारों ने भी सूर्य अस्त के साथ प्रतिक्रमण करने का उल्लेख किया है। ३. उत्तराध्ययन सूत्र के समाचारी अध्ययन में आगे की गाथाओं में प्रतिक्रमण की सामान्य विवेचना की गई है। पच्चक्खाण के पश्चात् काल प्रतिलेखना करके स्वाध्याय करने का विधान किया गया, जिससे ध्वनित होता है कि सूर्य अस्त के पश्चात् लगभग ३६ मिनट के अस्वाध्याय काल में प्रतिक्रमण के ६ आवश्यक समाप्त हो जाते हैं। ४. तत्पश्चात् रात्रि के चारों प्रहर की चर्या का वर्णन किया गया है और चौथे प्रहर के चौथे भाग में काल प्रतिलेखना के बाद प्रतिक्रमण करने का विधान है। सूर्योदय होने के पश्चात् भण्डोपकरण आदि की प्रतिलेखना कर लेने (१२ मिनट) के बाद स्वाध्याय का प्रावधान है! अर्थात् रात्रि का प्रतिक्रमण रात्रि में ही सम्पन्न हो जाता है। प्रतिलेखना सूर्य की साक्षी से होती है, अस्तु उसके लिए दिन का प्रथम भाग नियत कर दिया और शेष अस्वाध्याय के समय अर्थात् रात्रि का प्रथम भाग और रात्रि के अन्तिम भाग में प्रतिक्रमण का समय नियत हो ही गया। ५. देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण सूठ का गाँठिया लौटना भूल गये- प्रतिक्रमण की वन्दना करते समय झूठ का गाँठिया गिरने से, स्मृति दौर्बल्य और उस कारण शास्त्रों को लिपिबद्ध करने की बात इतिहास में मिलती है। स्पष्ट है कि प्रतिक्रमण की वन्दना के समय रात्रि हो चुकी थी। यदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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