Book Title: Pratikraman Sambandhi Vishishta Marmsparshi Prashnottar Author(s): Jagdishprasad Jain Publisher: Z_Jinavani_002748.pdf View full book textPage 1
________________ 15, 17 नवम्बर 2006 जिनवाणी, 333 प्रतिक्रमण सम्बन्धी विशिष्ट मर्मस्पर्शी प्रश्नोत्तर (आवश्यक सूत्र पर आधारित) प्रश्न 'करेमि भंते' में सांकेतिक रूप से छः आवश्यक कैसे आते हैं? उत्तर १. सामायिक आवश्यक सामाइयं ( "समस्य आयः समायः, सः प्रयोजनं यस्य तत् सामायिकम् ।" ) पद से सामायिक आवश्यक का ग्रहण होता है। २. चतुर्विंशतिस्तव आवश्यक - 'भंते!' पद से दूसरा आवश्यक गृहीत हो सकता है। ३. वन्दना आवश्यक - "पज्जुवासामि” से तीसरा आवश्यक आता है। पर्युपासना तिक्खुत्तो में भी आता है। भंते- “सम्यग्ज्ञानदर्शनचारित्रैर्दीप्यते इति भान्तः स एव भदन्तः सम्यग्ज्ञान-दर्शन- चारित्र रत्नत्रय के धारक गुरु होते हैं, अतः 'भंते' से भी तीसरे आवश्यक का संकेत मिलता है। ४. प्रतिक्रमण आवश्यक - पडिक्कमामि - " पडिक्कमामि इत्यस्य प्रतिक्रमामि।” से चतुर्थ आवश्यक गृहीत होता है। ५. कायोत्सर्ग आवश्यक- 'वोसिरामि' ("विविधं विशेषेण वा भृशं त्यजामि " ) पद से पाँचवें आवश्यक का ग्रहण होता है। ६. प्रत्याख्यान आवश्यक - सावज्जं जोगं पच्चक्खामि - ("पापसहितं व्यापारं प्रत्याख्यामि । " ) पदों से प्रत्याख्यान आवश्यक स्वीकृत होता है। प्रश्न कायोत्सर्ग किन-किन कारणों से किया जाता है? 99 उत्तर १. काउस्सगं - "तस्सउत्तरी" पाठ के अनुसार संयम को अधिक उच्च बनाने के लिए, प्रायश्चित्त करने के लिये, विशुद्धि करने के लिए, आत्मा को शल्य रहित करने के लिए और पाप कर्मों का समूल नाश करने के लिए कायोत्सर्ग किया जाता है। २. चिंतणत्थं करेमि काउस्सग्गं- “इच्छामि णं भंते" पाठ के अनुसार दिनभर में ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप में लगे अतिचारों का चिन्तन करने के लिए कायोत्सर्ग किया जाता है। ३. इच्छामि ठामि काउस्सग्गं... - दिवस संबंधी ज्ञानादि के १४ अतिचारों का मन-वचन-काया से जो सेवन किया गया, उनका कायोत्सर्ग किया जाता है। ४. देवसियं....कास्सग्गं- दिवस संबंधी प्रायश्चित्त की विशुद्धि के लिए कायोत्सर्ग किया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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