Book Title: Pratikraman Samanya Prashnottar Author(s): P M Choradiya Publisher: Z_Jinavani_002748.pdf View full book textPage 3
________________ ||15,17 नवम्बर 2006 जिनवाणी प्रश्न श्वेताम्बर परम्परा में श्रमण प्रतिक्रमण और श्रावक प्रतिक्रमण में मूल भूत अन्तर क्या है? उत्तर श्वेताम्बर परम्परा में श्रमण प्रतिक्रमण और श्रावक प्रतिक्रमण में मूलभूत जो अन्तर है, वह मात्र अणुव्रतों और महाव्रतों के अतिचारों के पाठ को लेकर है। श्रमण प्रतिक्रमण का आगमिक आधार आवश्यक सूत्र है। श्रावक प्रतिक्रमण में श्रमण प्रतिक्रमण से भिन्न पाठ पाये जाते हैं, उनका आगमिक आधार उपासकदशांग है, जिसमें श्रावक के ५ अणुव्रतों, ३ गुणव्रतों और ४ शिक्षाव्रतों का एवं उनके अतिचारों का उल्लेख प्राप्त होता है। प्रश्न स्थानकवासी परम्परा में ऐसे कौनसे महान् तेजस्वी आचार्य हुए हैं, जिन्होंने केवल एक प्रहर से भी कम समय में खड़े-खड़े प्रतिक्रमण के सारे पाठों को कंठस्थ कर लिया था? उत्तर आचार्य श्री जयमल जी महाराज। प्रश्न पापों का वर्णन प्रतिक्रमण जैसी धार्मिक क्रिया में क्यों किया गया है? उत्तर पापों का स्वरूप समझे बिना कोई व्यक्ति उनका त्याग करना कैसे समझ सकेगा? अतः बुराई को त्यागने के लिए १८ पापों का वर्णन किया गया है। प्रश्न श्रावक सापराधी की हिंसा का त्याग क्यों नहीं करता? उत्तर संसार में रहने के कारण उस पर आश्रितों की रक्षादि का भार रहता है। अतः अन्याय, अत्याचार का मुकाबला करने के लिये श्रावक सापराधी की हिंसा नहीं छोड़ पाता। कभी-कभी पेट में या शरीर के अन्य अंगों में पड़े कीड़े आदि की नाशक दवा का भी सेवन करना पड़ता है। प्रश्न बड़ी चोरी किसे कहते हैं? उत्तर बिना पूछे किसी की ऐसी चीज लेना कि जिससे उसको दुःख होता हो, लोक निंदा होती हो, राजदण्ड मिलता हो तो उसे बड़ी चोरी कहते हैं। प्रश्न आत्मगुणों का पोषण करने वाला कौमसा अणुव्रत है? उत्तर चौथा मैथुन विरमणव्रत। प्रश्न परिग्रह को पाप का मूल क्यों कहा गया है? उत्तर इच्छा आकाश के समान अनन्त है। ज्यों-ज्यों लाभ होता है, लोभ बढ़ता जाता है। सभी जीवों के लिए परिग्रह से बढ़कर कोई बंधन नहीं है। परिग्रह महती अशांति का कारण है। इससे कलह, बेईमानी, चोरी, हिंसा आदि का प्रादुर्भाव होता है। इन सब कारणों से प्रिग्रह को पाप का मूल कहा गया है। प्रश्न कर्मादान किसे कहते हैं? उत्तर जिन धन्धों को करने से उत्कट (गहरे) कर्मों का बन्ध होता है, उन्हें कर्मादान कहते हैं। अन्य परिभाषा है-अधिक हिंसा वाले धन्धों से आजीविका चलाना कर्मादान है। प्रश्न १५ कर्मादानों में भाडी कर्म और फोडी कर्म का क्या अर्थ है ? उत्तर (१) भाड़ी कर्म : गाड़ी, घोड़े आदि वाहनों से भाड़ा कमाना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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