Book Title: Pratikraman Samanya Prashnottar
Author(s): P M Choradiya
Publisher: Z_Jinavani_002748.pdf
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिक्रमण : सामान्य प्रश्नोत्तर श्री पी. एम. चोरडिया प्रश्न प्रतिक्रमण किसे कहते हैं? उत्तर स्वीकार किए हुए व्रतों में जो कोई दोष लगा हो तो उसकी आलोचना करते हुए पुनः दोषोत्पत्ति न हो, इसकी सावधानी रखना ही प्रतिक्रमण कहलाता है। प्रश्न प्रतिक्रमण का शाब्दिक अर्थ क्या है? उत्तर प्रतिक्रमण का शाब्दिक अर्थ है- पापों से पीछे हटना । प्रश्न प्रतिक्रमण को आवश्यक सूत्र क्यों कहा गया है ? उत्तर जिस प्रकार शरीर निर्वाह हेतु आहारादि क्रिया प्रतिदिन करना आवश्यक है, उसी प्रकार आध्यात्मिक क्षेत्र में आत्मा को सबल बनाने के लिये प्रतिक्रमण करना आवश्यक है, इसीलिये प्रतिक्रमण को आवश्यक सूत्र कहा गया है। प्रश्न आवश्यक सूत्र को उत्कालिक सूत्र क्यों कहते हैं? उत्तर यह सूत्र अकाल (उत्काल) में अर्थात् दिन और रात के संधिकाल में तथा रात और दिन के संधिकाल में बोलते हैं, इसलिए आवश्यक सूत्र को उत्कालिक सूत्र के अन्तर्गत रखा गया है। प्रश्न प्रतिक्रमण में आवश्यक सूत्र के कितने अध्याय हैं? उत्तर प्रतिक्रमण में आवश्यक सूत्र के छह अध्याय हैं- १. सामायिक, २. चतुर्विंशतिस्तव, ३. वंदना, ४. प्रतिक्रमण, ५. कायोत्सर्ग, ६. प्रत्याख्यान । प्रश्न आवश्यक सूत्र के फल का वर्णन किस शास्त्र में आया है? उत्तर उत्तराध्ययन सूत्र के २९वें अध्ययन में । प्रश्न पाँचवें आवश्यक 'कायोत्सर्ग' का क्या फल है ? 15, 17 नवम्बर 2006 जिनवाणी, 291 उत्तर कायोत्सर्ग नामक पाँचवाँ आवश्यक करने से अतीत और वर्तमान के पापों का प्रायश्चित्त कर आत्मा विशुद्ध होती है तथा बाह्याभ्यन्तर सुख की प्राप्ति होती है। प्रश्न छह आवश्यकों में किन-किन आवश्यकों से दर्शन में विशुद्धि आती है ? उत्तर चउवीसत्थव एवं वंदना । दर्शन - सम्यक्त्व के पाठ से यह विशुद्धि आती है। प्रश्न प्रतिक्रमण किस-किस का किया जाता है। उत्तर मिध्यात्व, प्रमाद, कषाय, अव्रत और अशुभयोग का प्रतिक्रमण किया जाता । प्रश्न मिध्यात्व का प्रतिक्रमण किस पाठ से होता है? उत्तर दर्शनसम्यक्त्व के पाठ से, अठारह पाप स्थान के पाठ से । Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12921 जिनवाणी 115.17 नवम्बर 2006|| प्रश्न अशुभयोग किसे कहते हैं? उत्तर मन-वचन-काया से बुरे विचार करना, कटुवचन बोलना एवं पाप कार्य करना अशुभयोग कहलाता है। प्रश्न काल की दृष्टि से प्रतिक्रमण के कितने भेद हैं? उत्तर आचार्य भद्रबाहु स्वामी ने काल की दृष्टि से प्रतिक्रमण के तीन भेद बताए हैं-१.भूतकाल में लगे दोषों की आलोचना करना। २. वर्तमान में लगने वाले दोषों को सामायिक एवं संवर द्वारा रोकना। ३.भविष्य में लगने वाले दोषों को प्रत्याख्यान द्वारा रोकना। प्रश्न प्रतिक्रमण के 'इच्छामि णं भते' के पाठ से क्या प्रतिज्ञा की जाती है? उत्तर प्रतिक्रमण करने की और ज्ञान, दर्शन, चारित्र में लगे अतिचारों का चिन्तन करने के लिए कायोत्सर्ग की प्रतिज्ञा की जाती है। प्रश्न अतिचार और अनाचार में क्या अन्तर है ? उत्तर व्रत का एकांश भंग अतिचार कहलाता है। व्रत का सर्वथा भंग अनाचार कहलाता है। प्रत्याख्यान का स्मरण न रहने पर या शंका से जो दोष लगता है, वह अतिचार है एवं व्रत को पूर्णतया तोड़ देना अनाचार है। प्रश्न बारह व्रतों में विरमण व्रत कितने हैं? उत्तर १, २, ३, ४, ५, ८ ये विरमण व्रत हैं। प्रश्न 'इच्छामि ठामि' का पाठ प्रतिक्रमण में क्यों और प्रकट में कितनी बार उच्चारण किया जाता है? उत्तर ग्रहण किये हुए व्रतों में कोई अतिचार दोष लगा हो अथवा व्रत खण्डित या विराधित हुआ हो तो उसको कायोत्सर्ग द्वारा निष्फल करने के लिये यह पाठ बोलते हैं। प्रतिक्रमण करते समय पाँच बार प्रकट में यह पाठ बोला जाता है। प्रश्न 'इच्छामि ठामि' के पाठ में ऐसे कौन-कौन से अक्षर हैं, जो श्रावक के १२ व्रतों का प्रतिनिधित्व करते उत्तरः पंचण्हमणुव्वयाणं-पाँच अणुव्रत, तिण्हं गुणव्वयाणं-तीन गुणव्रत, चउण्हं सिक्खावयाणं-चार शिक्षाव्रत प्रश्न 'मिच्छामि दुक्कडं' का क्या अर्थ है? उत्तर मेरे पाप मिथ्या हों अर्थात् निष्फल हों। प्रश्न जिन-वचनों पर शंका करना दोष क्यों है? उत्तर शंका करने से आस्था कम हो जाती है। आस्थाहीन व्यक्ति के धर्म से च्युत होने में देरी नहीं लगती। जिज्ञासा का निवारण किया जा सकता है, किन्तु व्यर्थ की शंका का नहीं। प्रश्न १८ पापों में सबसे प्रबल पाप कौन सा है? उत्तर मिथ्यादर्शन शल्य। Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ||15,17 नवम्बर 2006 जिनवाणी प्रश्न श्वेताम्बर परम्परा में श्रमण प्रतिक्रमण और श्रावक प्रतिक्रमण में मूल भूत अन्तर क्या है? उत्तर श्वेताम्बर परम्परा में श्रमण प्रतिक्रमण और श्रावक प्रतिक्रमण में मूलभूत जो अन्तर है, वह मात्र अणुव्रतों और महाव्रतों के अतिचारों के पाठ को लेकर है। श्रमण प्रतिक्रमण का आगमिक आधार आवश्यक सूत्र है। श्रावक प्रतिक्रमण में श्रमण प्रतिक्रमण से भिन्न पाठ पाये जाते हैं, उनका आगमिक आधार उपासकदशांग है, जिसमें श्रावक के ५ अणुव्रतों, ३ गुणव्रतों और ४ शिक्षाव्रतों का एवं उनके अतिचारों का उल्लेख प्राप्त होता है। प्रश्न स्थानकवासी परम्परा में ऐसे कौनसे महान् तेजस्वी आचार्य हुए हैं, जिन्होंने केवल एक प्रहर से भी कम समय में खड़े-खड़े प्रतिक्रमण के सारे पाठों को कंठस्थ कर लिया था? उत्तर आचार्य श्री जयमल जी महाराज। प्रश्न पापों का वर्णन प्रतिक्रमण जैसी धार्मिक क्रिया में क्यों किया गया है? उत्तर पापों का स्वरूप समझे बिना कोई व्यक्ति उनका त्याग करना कैसे समझ सकेगा? अतः बुराई को त्यागने के लिए १८ पापों का वर्णन किया गया है। प्रश्न श्रावक सापराधी की हिंसा का त्याग क्यों नहीं करता? उत्तर संसार में रहने के कारण उस पर आश्रितों की रक्षादि का भार रहता है। अतः अन्याय, अत्याचार का मुकाबला करने के लिये श्रावक सापराधी की हिंसा नहीं छोड़ पाता। कभी-कभी पेट में या शरीर के अन्य अंगों में पड़े कीड़े आदि की नाशक दवा का भी सेवन करना पड़ता है। प्रश्न बड़ी चोरी किसे कहते हैं? उत्तर बिना पूछे किसी की ऐसी चीज लेना कि जिससे उसको दुःख होता हो, लोक निंदा होती हो, राजदण्ड मिलता हो तो उसे बड़ी चोरी कहते हैं। प्रश्न आत्मगुणों का पोषण करने वाला कौमसा अणुव्रत है? उत्तर चौथा मैथुन विरमणव्रत। प्रश्न परिग्रह को पाप का मूल क्यों कहा गया है? उत्तर इच्छा आकाश के समान अनन्त है। ज्यों-ज्यों लाभ होता है, लोभ बढ़ता जाता है। सभी जीवों के लिए परिग्रह से बढ़कर कोई बंधन नहीं है। परिग्रह महती अशांति का कारण है। इससे कलह, बेईमानी, चोरी, हिंसा आदि का प्रादुर्भाव होता है। इन सब कारणों से प्रिग्रह को पाप का मूल कहा गया है। प्रश्न कर्मादान किसे कहते हैं? उत्तर जिन धन्धों को करने से उत्कट (गहरे) कर्मों का बन्ध होता है, उन्हें कर्मादान कहते हैं। अन्य परिभाषा है-अधिक हिंसा वाले धन्धों से आजीविका चलाना कर्मादान है। प्रश्न १५ कर्मादानों में भाडी कर्म और फोडी कर्म का क्या अर्थ है ? उत्तर (१) भाड़ी कर्म : गाड़ी, घोड़े आदि वाहनों से भाड़ा कमाना। Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 294 जिनवाणी 15.17 नवम्बर 2006 (2) फोड़ी कर्म : खान खुदाकर, पत्थर फुड़वाकर आजीविका कमाना। प्रश्न अनर्थदण्ड किसे कहते हैं? उत्तर जो कार्य स्वयं के परिवार के सगे-सम्बन्धी, मित्रादि के हित में न हो, जिसका कोई प्रयोजन न हो और व्यर्थ में आत्मा पापों से दंडित हो, उसे अनर्थदण्ड कहते हैं। प्रश्न सामायिक और पौषधव्रत में क्या अन्तर है? उत्तर सामायिक केवल एक मुहूर्त की होती है, जबकि पौषध कम से कम चार प्रहर का होता है। सामायिक में निद्रा का त्याग करना पड़ता है। पौषध चार या अधिक प्रहर का होने से उसमें निद्रा भी ली जा सकती है एवं शौचादि का अपरिहार्य कार्य भी किया जा सकता है। प्रश्न तिर्यंच १२वा व्रत क्यों नहीं पाल सकता? उत्तर तिर्यंच दान नहीं दे सकते, अतः १२वें व्रत की पालना नहीं कर सकते। प्रश्न आत्मगुणों को चमकाने वाला प्रतिक्रमण में कौनसा पाठ है? उत्तर बडी संलेखना व्रत। प्रश्न संलेखना से क्या अभिप्राय है? उत्तर 'संलेखना' समाधिमरण की पूर्व तैयारी है। इससे कषाय पतले होते हैं, संसार घटता है, आत्मोन्नति होती है और उच्च भावना आने से उच्चगति की प्राप्ति होती है। प्रश्न अरिहन्त, सिद्ध, साधु और केवली प्ररूपित दयामय धर्म - इन चारों को मंगल क्यों कहा गया है? उत्तर इन चारों के स्मरण से, श्रवण से, शरण से समस्त पापों का नाश होता है, विघ्न टल जाते हैं। प्रश्न प्रतिक्रमण सूत्र में प्रायश्चित्त का पाठ कौनसा है और उसका अर्थ क्या है? उत्तर देवसिय-पायच्छित्त-विसोहणत्थं करेमि काउरसगं। भावार्थ- मैं दिवस सम्बन्धी प्रायश्चित्त की शुद्धि के लिए कायोत्सर्ग करता हूँ। प्रश्न पच्चक्खाण क्यों करते हैं? उत्तर व्रत में लगे दोषों की आलोचना करने के बाद पुनः दोषोत्पत्ति न हो इसलिए मन पर अंकुश रखने के लिये पच्चक्खाण करते हैं। प्रश्न प्रतिक्रमण के पाठों में उपसंहार सूत्र कौनसा है? उत्तर 'तस्स धम्मस्स केवलिपणत्तस्स' का पाठ। प्रश्न श्रमण निर्ग्रन्थों को 14 प्रकार का निर्दोष दान देना ही अतिथि-संविभाग व्रत का प्रयोजन है। यदि दाता और पात्र दोनों शुद्ध हों और उत्कृष्ट रसायन आवे तो कौन से शुभ-कर्म का बन्ध होता है? उत्तर तीर्थंकर नाम गोत्र कर्म का। -89, Audiappa Naicken Street, Chennai-79