Book Title: Pratikraman Prayaschitt ka Manovaigyanik Paksh Author(s): Kanaknandi Acharya Publisher: Z_Jinavani_002748.pdf View full book textPage 5
________________ 15,17 नवम्बर 2006 दोष होने के बाद इसीलिए क्षमायाचना करते थे । प्रतिक्रमण पाठ खम्माम सव्व जीवाणं सव्वे जीवा खमंतु मे। मित्ती मे सव्व भूदसु वैरं मज्झंण केणवि । मैं सहृदय, सम्पूर्ण जीव-जगत् को क्षमा करता हूँ, सर्व जीव जगत् मुझे भी क्षमा करे । सम्पूर्ण जीवों प्रति मेरी मैत्री भावना है अर्थात् सम्पूर्ण जीव मेरे मित्र के समान हैं। किसी के भी प्रति मेरा वैर भाव नहीं है। उदाहरण ३- न्यूजीलैंड के डॉ. नारमन वीसेर पील एक चिकित्सक, मनावैज्ञानिक और न्यूजभी चर्च के प्रवक्ता हैं। एक युवती ने डॉ. साहब से कहा- चर्च में आते ही मेरे शरीर में बुरी तरह से खुजली चलने लगती है और शरीर में लाल चकते हो जाते हैं। यदि यही हालत रही तो मुझे चर्च में आना छोड़ना पड़ेगा । अन्तर्मन की पर्तों को कुरेदने से (जाँच करने पर) डॉ. साहब ने पाया कि यह 'इण्टरनल एग्जिमा' से पीड़ित है। इसका कारण शारीरिक और बाह्य नहीं है, इसका मानसिक एवं अन्तरंग कारण है । 'इमोशनल टेन्सन' भावात्मक तनाव के कारण इस प्रकार हुआ है। जब डॉ. ने युवती से पूछा तब युवती बोली- मैं एक बड़ी कम्पनी में एकाउण्टेन्ट का काम कर रही थी, उस अवधि गोलमाल करके थोड़ा धन चुराया करती थी। हर बार सोचती थी कि चुराई हुई रकम वापिस कर दूँगी, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकी। ऐसा कहकर वह फफक-फफक कर रोने लगी। तब डॉ. बोले- तुम्हारे मन में अपराध की भावना घर कर गयी है, जब चर्च के पवित्र वातावरण में आती हो तब उसमें तीव्रता आ जाती है। यह रोग भावना क्षोभजनित है। इससे छूटने का एक ही उपाय है- मालिक के सामने अपना अपराध स्वीकार कर लेना । तुम जाओ, मालिक के सामने अपना अपराध स्वीकार करो। इससे संभवतः तुम्हें मालिक कार्य से निकाल भी सकता है। युवती वहाँ से मालिक के पास गई तथा पदवी को नहीं चाहते हुए समस्त वृत्तान्त स्पष्ट रूप से मालिक से कहकर क्षमा माँगी तब से उसका एग्जिमा रोग समाप्त हो गया तथा उसकी पदोन्नति हो गयी। जिनवाणी Jain Education International भय से अतिसार रोग हो जाता है, चिंता से अपस्मार रोग होता है, रक्तचाप बढ़ जाता है, तीव्र ईर्ष्या और घृणा से अल्सर रोग हो जाता है, आत्मग्लानि से क्षयरोग (टी.बी.) हो जाता है, अति स्त्री-संभोग से टी.बी., कुष्ठ रोग, नपुंसकता आदि रोग हो जाते हैं। चिंता, क्रोध, घृणाभाव आदि से मानसिक विकृतियाँ हो जाती हैं जिससे मनुष्य को अनेक शारीरिक रोगों के साथ-साथ पागलपन जैसा मानसिक रोग भी हो जाता है। गुस्सा, उदासी, चिन्ता, घृणादि भाव हमारी त्वचा पर गहरा असर डालते हैं। जिस समय हमें क्रोध आता है उस समय शरीर में एक ऐसे रस का संचार होने लगता है जो चेहरे की तरफ के रक्त संचार को रोकता है, इसके कारण त्वचा का रंग पीला या विवर्ण हो जाता है। अधिक क्रोध आने पर चेहरे पर झुर्रियाँ जल्दी पड़ जाती हैं। खुश-संतोषी रहने पर चेहरे पर लाली और चमक रहती है, इस प्रकार चिंता या तनाव से केवल शारीरिक क्षति ही नहीं होती, बल्कि आन्तरिक व्यवस्था भी अस्त-व्यस्त हो जाती है। फलतः पाचन क्रिया पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है और पाचन क्रिया बिगड़ने लगती है। अन्ततः हृदय की अन्यान्य बीमारियाँ पैदा हो 253 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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