Book Title: Prameykamalmarttand Parishilan Author(s): Udaychandra Jain Publisher: Prachya Shraman BharatiPage 12
________________ प्राच्य श्रमण भारती स्थापित सन् १९९१ सम्प्रेरक-पूज्य उपाध्यायश्री ज्ञानसागरजी महाराज उद्देश्य ... - साहित्य प्रकाशन – प्राचीन तथा नवीन ग्रन्थों का संकलन, संरक्षण, सम्पादन, लेखन तथा प्रकाशन। २-विद्वत्सम्मान-जैनधर्म, दर्शन, संस्कृति, समाज एवं साहित्य की सेवा में समर्पित व्यक्तित्व के धनी विद्वानों को सम्मानित करके इस क्षेत्र में और अधिक कार्य करने हेतु उन्हें सहयोग प्रदान करना। ३-संगोष्ठी-शाकाहार के प्रचारके साथ ही चरित्रनिर्माण, नैतिक शिक्षा एवं प्राच्यविद्या के विकास हेतु शिविरों, संगोष्ठियों और कार्यशालाओं का आयोजन। ४- प्राचीन ग्रन्थों की पाण्डुलिपियों का संग्रह तथा संरक्षण । ५- पूज्य उपाध्यायश्री ज्ञानसागरजी महाराज के मंगलकारी प्रवचनों, - 'उपदेशों तथा चिन्तन का प्रचार-प्रसार ।Page Navigation
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