Book Title: Pramanmimansa Jain History Series 10
Author(s): Hemchandracharya, Nagin J Shah, Ramniklal M Shah
Publisher: 108 jain Tirth Darshan Trust
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૫. પ્રમાણમીમાંસાગત અવતરણોની સૂચી
[अ]
अग्निस्वभावः शक्रस्य [प्रमाणवा० १.३७] २०१ अथ प्रमाणपरीक्षा [प्रमाणप० पृ० १] ६१ अथापि नित्यं परमार्थसन्तम् [न्यायम० पृ० ४६४] १४८ अथापि वेददेहत्वात् [तत्त्वसं० का० ३२०८] ८८ अनिग्रहस्थाने [न्यायसू० ५.२.२२] २८८ अनुपलम्भात् कारणव्यापकानुपलम्भाच्च [
] १७८ अन्यथाऽनुपपन्नत्वम् [ ] १८० अपाणिपादो ह्यमनो ग्रहीता [श्वेताश्व० ३. १९] ८४ अभिलापसंसर्गयोग्य - [न्यायबि० १.५,६] १३५ अयमेवेति यो ह्येष [श्लोकवा० अभाव० श्लो० १५] ८४ अर्थक्रिया न युज्येत [लघी० २.१] ८२ अर्थक्रियाऽसमर्थस्य [प्रमाणवा० १.२१५] १४४ अर्थस्यासम्भवेऽभावात् [धर्मकीर्ति] ८२ अर्थादापन्नस्य स्वशब्देन [न्यायसू० ५.२.१५] २२४ अर्थेन घटयत्येनाम् [प्रमाणवा० ३.३०५] १२४ अर्थोपलब्धिहेतुः प्रमाणम् [
] ७५ अल्पाक्षरमसन्दिग्धम् [
] १७४
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