Book Title: Prakrit tatha Ardhamagadhi me Antar aur Aikya Author(s): A S Fiske Publisher: Z_Anandrushi_Abhinandan_Granth_012013.pdf View full book textPage 2
________________ प्राकृत तथा अर्धमागधी में अंतर तथा ऐक्य चा संस्कृत आचार्यों का मत (१) हेमचन्द्र (सिद्धहेमशब्दानुशासन)-प्रकृतिः संस्कृतम् तत्र भवं, तत आगतम् वा प्राकृतम् । (२) मार्कण्डेय-(प्राकृतसर्वस्व)-प्रकृति: संस्कृतम् तत्र भवं प्राकृतमुच्यते । (३) लक्ष्मीधर—(षड्भाषा-चन्द्रिका)-प्रकृते: संस्कृतयास्तु विकृतिः प्राकृती मता । (४) प्राकृत संजीवनी-प्राकृतस्य तु सर्वमेव संस्कृतम् योनिः । प्राकृत प्रेमी नमिसाधु, महाकवि सिद्धसेन दिवाकर, महाकवि वाक्पतिराज, राजशेखर ने प्राकृत भाषा के बारे में प्रभावक विचार स्पष्ट किये हैं। नमिसाधुजी का मत है--प्रकृति शब्द का अर्थ लोगों का व्याकरण आदि के संस्कार रहित स्वाभाविक वचन व्यापार, उससे उत्पन्न या वही प्राकृत है । महाकवि सिद्धसेन दिवाकर और आचार्य हेमचन्द्र जिनदेव की वाणी को अकृत्रिम मानते हैं। प्राकृत जनसाधारण की मातृभाषा होने के कारण अकृत्रिम, स्वाभाविक है। वाक्पतिराज ने 'गउडवहो' नामक महाकाव्य के ६३ श्लोक में कहा है—इसी प्राकृत भाषा में सब भाषाएँ प्रवेश करती हैं और इस प्राकृत भाषा से ही सब भाषाएँ निर्गत हुई हैं, जैसे जल आकर समुद्र में ही प्रवेश करता है और समुद्र से ही वाष्प रूप से बाहर होता है। प्राकृत भाषा की उत्पत्ति अन्य किसी भाषा से नहीं हुई है, बल्कि संस्कृत आदि सब भाषाएँ प्राकृत से ही उत्पन्न हुई हैं। प्राकृत के अनेक शब्द और प्रत्ययों का मेल संस्कृत भाषा से नहीं सिद्ध होता, अतः प्राकृत मूल भाषा मानना उचित होगा। प्राकृत भाषा में अनेक भाषाएँ समाविष्ट हैं, जैसे-पाली, पैशाची, शौरसेनी, मागधी, अर्धमागधी, महाराष्ट्री, अपभ्रंश । अर्धमागधी प्राकृत भाषा का एक भाग होगा। ____ आगमग्रन्थों की भाषा अर्धमागधी है। जैन धर्म का उपदेश अर्धमागधी भाषा में किया गया है। गणधर सुधर्मास्वामी ने अर्धमागधी को साहित्यिक भाषा का रूप दे दिया। इसे आर्ष प्राकृत और देवताओं की भाषा कहा जाता है । अर्धमागधी भाषा की उत्पत्ति के बारे में मत इस तरह है (१) मागधी भाषा का आधा भाग जिस भाषा में है वह भाषा अर्धमागधी। (२) जिनदासगणिमहत्तर के अनुसार अर्धमगधदेश में बोली जाने वाली भाषा अर्धमागधी है। (३) मगधद्ध विसयभासा निबद्धं । पिशेल इसे आर्ष नाम देते हैं। (४) नमिसाधु का मत-ऋषि, देव, सिद्धों की तथा पुराणों की भाषा आर्ष भाषा है। (५) पश्चिम की ओर शौरसेनी और पूरब की ओर मागधी, इसके बीच बोली जाने वाली भाषा अर्धमागधी है। ध्वनितत्त्वानुसार देखा जाये तो अर्धमागधी पाली से अर्वाचीन लगती है लेकिन साहित्यिक रूप से देखा जाय तो पाली से अर्धमागधी प्राचीन है, यह सिद्ध होता है। अर्धमागधी का मूल उत्पत्ति स्थान मगध या शूरसेन (अयोध्या) का मध्यवर्ती प्रदेश माना जाता है। ग्रियर्सन ने अर्धमागधी भाषा मध्यदेश और अयोध्या की भाषा कहा है। भाण्डारकर इस भाषा का उत्पत्ति समय ई० द्वितीय शताब्दी, डॉ० चटर्जी तृतीय शताब्दी, डॉ० जेकोबी ई० पू० चतुर्थ शताब्दी का वय आपायप्रवर अभिसापायप्रवर अभिनय श्रीआनन्दा अन्य५ श्रीआनन्दग्रन्थ WriMYVITY Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4