Book Title: Prakrit katha Sahitya ka Mahattva
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 6
________________ 471 इसके अतिरिक्त डा. सत्यकेतु, डा० याकोबी, डा० सी० एच० टान, हर्टल, ब्यूल्हर, तैस्सितोरि, आदि अनेक 'विद्वानों ने इस विधा पर पर्याप्त काम किया है। प्रो० श्रीचन्द जैन ने 'जैन कथा साहित्य : एक अनुदृष्टि' में कथा साहित्य के विभिन्न पहलुओं पर विचार करते हए लिखा है कि जैन कथाओं की कुछ ऐसी विशिष्टताएँ हैं जिनके कारण विश्व के कलाकारों ने इन्हें प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों रूपों में अपनाया है।' डा० हजारीप्रसाद द्विवेदी ने 'हिन्दी साहित्य का आदिकाल' में साहित्य की सभी विधाओं पर विचार करते हए जैन कथाओं की विशिष्टता पर लिखा है कि “जैन संस्कृति के मूल तत्त्वों को अनावृत्त करते हुए एक ऐसी प्राचीन परम्परा की ओर संकेत करते हैं, जो कई युगों से भारतीय जीवन को प्रभावित कर रही है।" सभी विशेषताओं का चित्रण करता है / आज जो भी कथा साहित्य है, चाहे किसी भी भाषा का क्यों न हो, उसे प्राकृत-कथा-साहित्य से सर्वप्रथम योग मिला। इसीलिए इस साहित्य को कथा साहित्य के विकास का एक अंग मानना अति आवश्यक हो जाता है। 1. श्री मरुधरकेसरी अभिनन्दन ग्रन्थ-कथा खण्ड Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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