Book Title: Prakrit evam Apbhramsa ka Adhunik Bharatiya Aryabhasha par Prabhav
Author(s): Mahavirsaran Jain
Publisher: Z_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf

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Page 10
________________ प्राकृत एवं अपभ्रंश का आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं पर प्रभाव 565 -womenonsenomenormonsoornimirmirmirmmmmmmmmmmmmmmmmm. 4 Introduction to Karpucmanjari p. 75 University of Calcutta (1948). 5 भारतीय आर्यभाषा और हिन्दी, पृ०१०३ (1963) तृतीय परिवद्धित संस्करण, दिल्ली 6 Manomohan Ghosh, Maharastri, a late phase of Sauraseni, Journal of the Department of Letters of the Calcutta University, Vol. xxxii. 1933. 7 गरीयानपशब्दोपदेशः / एककस्य हि शब्दस्य बहवोऽपभ्रंशाः / तद्यथा गौरित्यस्य शब्दस्य गावी गौणी गौता गोपोतलिका इत्येवमादयो बहवोऽपभ्रंशाः। -(पातंजल, महाभाष्य 11111) / 8 सापभ्रंशप्रयोगाः सकलमरुभूवष्टक्कु मादानकाश्च (काव्यमीमांसा, अध्याय 10) है सुराष्ट्र प्रवणाद्या ये पठन्यपित सौष्ठवम् / अपभ्रंशवदंशानि ते संस्कृत वचांस्यपि (काव्यमीमांसा, अध्याय 7) 1. "भूरिभेदो देशविशेषादपभ्रंश (काव्यालंकार 2012) / 11 स चान्यरूपनागराभीर गाम्यत्वभेदेन त्रिधोक्तस्तन्निरासार्थ मुक्त भूरिभेद इति / 12 ब्राचडी लाट वैदर्मानुपनागर नागरी बार्बरावन्त्यपांचालटांक्कमालवकैकयाः। गौड़ौद्रवनपाश्चात्यपांड्यकौन्तल सहला / कलिग्यप्राच्य कार्णाटिकां च द्राविडगोर्जराः। आभीरौ मध्यदेशीयः सूक्ष्म भेदव्यवस्थिताः सप्तविंशत्यपभ्रंशाः वेतालादि प्रभेदताः (प्राकृत सर्वस्व 2) / 13 पण्डित हरगोविन्ददास त्रिकमचन्द शेठ, पाइअ-सद्द-महण्णवो (प्राकृत शब्द महार्णवः) कलकत्ता, प्रथम आवृत्ति संवत् 1985 (सन् 1928 ई०) 14 दे. भारतीय आर्यभाषा और हिन्दी, पृ० 122-132 / 15 भारतीय आर्यभाषा और हिन्दी, पृ० 127-128 / 16 पासणाहचरिउ सम्पादक-प्रफुल्लकुमार मोदी (सन् 1965) / 17 डा० महावीरसरन जैन, परिनिष्ठित हिन्दी का ध्वनिग्रामिक अध्ययन, पृ०२०-२२ / 18 दे० (1) कोमलचन्द जैन, प्राकृत-प्रवेशिका, पृ० 55 / (2) पं० ऋषिकेश भट्टाचार्य, प्राकृत ग्रामर, पृ० 128 / 16 डा० महावीर सरन जैन, हिन्दी संज्ञा, भाषा, हिन्दी भाषा विशेषांक / 20 महादेव मा० बासुतकर, मराठी की कारक व्यवस्था, गवेषणा, पृ० 84, वर्ष 10, अंक 20 / 21 सरोजिनी शर्मा-हिन्दी और बंगला के परसों का व्यतिरेकात्मक अध्ययन, गवेषणा, पृ०६३-११०, वर्ष 10, अंक 20 22 सं० उदयनारायण तिवारी-वीरकाव्य, पृ० 165 : सं० 2012 / 23 सं० वासुदेवशरण अग्रवाल-कीतिलता 2228, 20218 / 4 / 24 / 24 सं० उदयनारायण तिवारी-वीर काव्य, पृ० 220 / 25 सं० वासुदेवशरण अग्रवाल-कीर्तिलता 2 / 27, 3178 / 26 वही-क्रमशः 1250; 1246; 4 / 40 / 27 सं० हजारीप्रसाद द्विवेदी, नामवरसिंह -संक्षिप्त पृथ्वीराज रासो, पृ० 25, 31, 32, 108 / 28 सं० बालकृष्ण राव -हिन्दी काव्यसंग्रह (खुसरो), पृ० 27 / 29 John Beams, A Comparative Grammar of the Modern Indian Aryan Languages, p. 177. 30 देखिए डॉ. कैलाशचन्द्र भाटिया, राउलवेल में प्रयुक्त क्रियाएं, नागरी प्रचारिणी पत्रिका, मालवीय शती विशेषांक, पृ. 457, वर्ष 66, अंक 2-3-4 (सम्वत् 2018) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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