Book Title: Prakrit Sahitya me Upalabdh Jain Nyaya ke Bij
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf

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Page 10
________________ 24. प्रमाणपरीक्षा, पृ.५ 25. नार्था लोको कारणं परिच्छेद्यत्वात् तमोवत् / -परीक्षामुख 2.6 26. अहवा उवक्कमे छबिहे पण्णत्ते / तं जहा- आणुपुवी नाम पमाणं वत्तव्वया अत्थाहिगारे समोयारे / -अनुयोगद्वार सूत्र, 92 27. पमाणे चउविहे पण्णत्ते / तं जहा- दव्वप्पमाणे खेत्तप्पमाणे कालप्पमाणे भावप्पमाणे / --अनुयोगद्वार सूत्र, 313 28. द्रष्टव्य, अनुयोग द्वार सूत्र, प्रमाणाधिकार निरूपण 29. अहवा हेऊ चउविहे पण्णत्ते, तं जहा- पच्चक्खे, अणुभाणे, ओवम्मे, आगमे। -स्थानांगसूत्र, 338 30. भगवतीसूत्र 5.3.191-192 31. स्थानांग सूत्र, 258 32. अनुयोग द्वार सूत्र, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, प्रमाणाधिकार 33. अनुयोगद्वार सूत्र, 450 34. वही, 458-466 35. अहवा आगमे तिविहे पण्णत्ते / तं जहा-अत्तागमे अणंतरागमे परंपरागमेय। अनुयागद्वारसूत्र, 469 36. दशवैकालिक नियुक्ति, 50 प्राकृत-साहित्य में उपलब्ध जैन न्याय के बीज 133 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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