Book Title: Prakrit Prayogoni Pagdandi par
Author(s): H C Bhayani
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 2
________________ [100] करायो छे । = हवे पालिमा 'पुरिशाजानीय', 'पुरिशाजञ्ञ' एवा प्रयोग मळे छे । (जुओ Adelheid Metteनो लेख : When Did the Buddha Live ? ए पुस्तकमां संपा. Heinz Bechert, १९९५, पृ. १८३). सं. 'आजानेय' 'कुलीन' (सं. 'आजाब' = 'जन्म'), 'आजानि' = 'उत्तम कुळमां जन्म', 'आजानेय्य' = कुलीन', पछीथी 'कुलीन घोडो', 'जात्य अश्व' ( अमरकोश १८, ४४; अभिधानचिन्तामणि, १२३४) वगेरे जाणीता छे । एटले 'आदाणीए' ए 'आजाणेए' नुं परंपरामां बराबर न सचवायेलुं, विकृत रूपांतर छे. तेथी मूळ अर्थ पण भूलाई गयो अने 'आदानीय'नुं पछी संदर्भमां बंध बेसे तेम अनुकूळ अर्थघटन करायुं । 'जुगुप्सा' > 'दुगुंछा' वगेरे तालव्य व्यंजननो दंत्य बन्यानां उदाहरण मळे छे (पिशेल, $२२५). आमांथी ए फलित थाय छे के अर्धमागधी आगमोनी भाषामां मळता कंटलाक शब्दप्रयोगोना मूळ स्वरूप अने अर्थ माटे पालि भाषामाथी मार्गदर्शन मळे छे, अने ए हकीकत ए प्रयोगोनी प्राचीनता सूचवे छे। वळी 'पुरिसादाणीय' ना अर्थनी पण प्रतीतिकर स्पष्टता थाय छे । (३) 'ताई' 'उत्तरज्झाय' मां तथा 'सूयगड' सुत्तमां ताइ शब्दनो प्रयोग मळे छे अने परंपरामां तेनो 'त्राता, उपकारी, मुनि' एवो अर्थ समझवामां आव्यो छे । गुस्टाव येथे तेमना एक संशोधन-लेखमां ताइ शब्दना प्रयोगना आगमिक साहित्यमाथी बधा संदर्भों आपी, पालि साहित्य तथा अन्य भाषाओना बौद्ध साहित्यमाथी तादि, ताई ए शब्दोना प्रयोगोना संदर्भों टांकीने बताव्युं छे के पालि तादिनुं मूळ सं. तादृश् छे, अने जे संदर्भोमां बौद्ध तेम ज जैन साहित्यमां तादि, ताइ वगेरे पराया छे, त्यां तेमनो अर्थ पण 'तेना जेवा, तेना जेवा उत्तम, पवित्र महापुरुष' एवो ज थाय छे। ताइना मूळ रूप तरीके तादि, सं. तादृश् भुलाई जतां ताइनो संबंध त्रा- धातु साथै जोडी देवामां आव्यो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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