Book Title: Prakrit Prayogoni Pagdandi par
Author(s): H C Bhayani
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृत प्रयोगोनी पगदंडी पर १. अर्धमागधीमां प्राप्त प्राचीन शब्दप्रयोगो 'अनुसंधान- ६' मां अमा. ०मीण प्रत्ययवाळां प्राचीन रूपो विषे ध्यान खेच्युं हतुं (पृ. ७६-७८ ) । के. आर. चंद्राए खेतन्त्र / खेयन्न (सं. क्षेत्रज्ञ) वगेरेनी प्राचीनता विषे लख्युं छे । अहीं तेवा ज बीजा थोडाक प्राचीन प्रयोगो नों धुं हुं । ह. भायाणी ( १ ) 'उउ - बद्ध', 'उडुबद्ध' पिंनि २४, ओनि. २९६, ३४९, ६६०, ओनिभा १२३, १७५मां उउबद्ध अने ओनि. २७मां उडु-बद्ध 'वर्षाकाल सिवायनो आठ मासनो, शियाळा तथा उनाळानो समय' एवा अर्थमां वपराया छे । जेम के 'गच्छम्म एस कप्पो वासावासे तहेव उउ बद्धे ।' (ओनिभा. १२३) - पेरिसना डॉ. नलिनी बलबीरे आ प्रयोगनी विचारणा करतां पालि साहित्यमा पण उतुकाल शब्दनो आवाज अर्थमां प्रयोग थयो होवानुं बतायुं छे (एक अंगत पत्रमां ) । उउ-बद्ध के उडु - बद्ध नुं संस्कृत पूर्व रूप तो ऋतुबद्ध छे. एनो उपर्युक्त अर्थ कई रीते निष्पन्न थयो ते विचारणीय छे । ऋतुनो 'वर्षाऋतु' एवो रूढ अर्थ थयो होय (जेम अरबी-फारसी मौसम 'ऋतु' परथी अंग्रेजीमां Monsoon 'वर्षाऋतु') । पण पालि प्रयोगनो खुलासो आधी मळता नथी । परंतु आवो विशिष्ट शब्दप्रयोग समानपणे जैन अर्धमागधी आगमोनी भाषामां तथा बौद्ध पालि आगमोनी भाषामां मळे छे ए हकीकत सूचक ले । (२) 'पुरिसादाणीए' 'समवायाङ्ग', 'कल्पसूत्र' तथा 'उत्तराध्ययन' मां (छठ्ठा अध्ययनना उपसंहारना चूर्णि अने शान्त्याचार्यनी टीकामां आपेला पाठांतर अनुसार) तीर्थंकर पार्श्वनुं 'पुरिसादाणीए' एवं एक लाक्षणिक विशेषण मळे छे. जैन परंपरामां 'पुरुषादानीय' एटले के 'उपादेय पुरुष', 'आप्त पुरुष' (पासम.) एवो अर्थ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [100] करायो छे । = हवे पालिमा 'पुरिशाजानीय', 'पुरिशाजञ्ञ' एवा प्रयोग मळे छे । (जुओ Adelheid Metteनो लेख : When Did the Buddha Live ? ए पुस्तकमां संपा. Heinz Bechert, १९९५, पृ. १८३). सं. 'आजानेय' 'कुलीन' (सं. 'आजाब' = 'जन्म'), 'आजानि' = 'उत्तम कुळमां जन्म', 'आजानेय्य' = कुलीन', पछीथी 'कुलीन घोडो', 'जात्य अश्व' ( अमरकोश १८, ४४; अभिधानचिन्तामणि, १२३४) वगेरे जाणीता छे । एटले 'आदाणीए' ए 'आजाणेए' नुं परंपरामां बराबर न सचवायेलुं, विकृत रूपांतर छे. तेथी मूळ अर्थ पण भूलाई गयो अने 'आदानीय'नुं पछी संदर्भमां बंध बेसे तेम अनुकूळ अर्थघटन करायुं । 'जुगुप्सा' > 'दुगुंछा' वगेरे तालव्य व्यंजननो दंत्य बन्यानां उदाहरण मळे छे (पिशेल, $२२५). आमांथी ए फलित थाय छे के अर्धमागधी आगमोनी भाषामां मळता कंटलाक शब्दप्रयोगोना मूळ स्वरूप अने अर्थ माटे पालि भाषामाथी मार्गदर्शन मळे छे, अने ए हकीकत ए प्रयोगोनी प्राचीनता सूचवे छे। वळी 'पुरिसादाणीय' ना अर्थनी पण प्रतीतिकर स्पष्टता थाय छे । (३) 'ताई' 'उत्तरज्झाय' मां तथा 'सूयगड' सुत्तमां ताइ शब्दनो प्रयोग मळे छे अने परंपरामां तेनो 'त्राता, उपकारी, मुनि' एवो अर्थ समझवामां आव्यो छे । गुस्टाव येथे तेमना एक संशोधन-लेखमां ताइ शब्दना प्रयोगना आगमिक साहित्यमाथी बधा संदर्भों आपी, पालि साहित्य तथा अन्य भाषाओना बौद्ध साहित्यमाथी तादि, ताई ए शब्दोना प्रयोगोना संदर्भों टांकीने बताव्युं छे के पालि तादिनुं मूळ सं. तादृश् छे, अने जे संदर्भोमां बौद्ध तेम ज जैन साहित्यमां तादि, ताइ वगेरे पराया छे, त्यां तेमनो अर्थ पण 'तेना जेवा, तेना जेवा उत्तम, पवित्र महापुरुष' एवो ज थाय छे। ताइना मूळ रूप तरीके तादि, सं. तादृश् भुलाई जतां ताइनो संबंध त्रा- धातु साथै जोडी देवामां आव्यो । Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [10l] आ उदाहरण पण अर्धमागधीमां प्राचीन प्रयोगो जळवाया होवानुं अने मूळनी शब्दरूप अने अर्थने लगती परंपरा केटलीक बाबतमां लुप्त थई होवार्नु सूचवे छ / (Gustav Roth : "'A Saint Like That' and 'A Saviour' in Prakrit, Pali, Sanskrit and Tibetan Literature', श्री महावीर जैन विद्यालय सुवर्ण जयंती ग्रंथ, भाग 1, 1968, पृ. 31-46; Indian Studies 1986, पृ. 91-10 उपर पुनः प्रकाशित)। 2. प्राकृत 'उडुक्किय' __'दसकालिय' (अथवा 'दसवेयालिय') सूत्रनी अगस्त्यसिंह कृत चूर्णिमा लूषकहेतुना उदाहरणमां, काकडीभारेला गाडामांनी बधी काकडी पोते खाय तो गाडानो धणी तेने नगरद्धारमाथी नीसरी न शके एवडो लाडु आपे एवी शरत करीने एक धूर्त दरेक काकडी पर पोताना दांत बेसाडे छे अने ज्यारे न्यायाधिकारी धूर्तना पक्षमां चुकादो आपे छे, त्यारे गाडानो धणी बीजा एक धूर्तनी शीखवणीथी एक नानो लाडु नगरद्वारनी वच्चे मूकीने तेने 'बहार नोकळ, नीकळ' एम कहेतां, ए न हलतो लाडु पहेला धूर्तने शरत प्रमाणे आपी दे छे - एवी कथा छ / तेमां 'सव्व-तउसाणि दंतेहिं उडुक्कियाणि' एवो प्रयोग छ / 'देशी शब्दकोश' मां 'दांतों से काट कर दागी करना' ए प्रमाणे अर्थ तो बराबर कर्यो छे, परंतु उडुक्कियने देश्य गण्यो छे अने तेनो संबंध कन्नड उडि 'काटना, टुकडे करना' साथे होवार्नु कह्यु छे / . हकीकते मूळ पाठ सहेज भ्रष्ट छ / उड्डक्किय एवं शब्दरूप जोईए / प्रा. डक्क = सं. दष्ट / डक्क ए मुक्कनी जेम सादृश्यमूल्क रूप छ / उद् उपसर्ग साथे जोडाईने उड्डुक्क 'करडवू' / तेना परथी भूतकृदंत उड्डुक्किय / (संदर्भ : दसकालियसुत्त, संपा. मुनि पुण्यविजय. प्राकृत ग्रंथ परिषद, ग्रंथांक 17. 1973. देशी शब्दकोश. संपा. मुनि दुल्लहराज, 1988)