Book Title: Prachin Jain Kathao me Vihar ki Jain Nariya Author(s): Ranjan Suridev Publisher: Z_Sadhviratna_Pushpvati_Abhinandan_Granth_012024.pdf View full book textPage 2
________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ विद्याधर उसे चुराकर ले गया । किन्तु विद्याधर ने अपनी विद्याधरी के भय से शोकातुर चन्दना को जंगल में ही छोड़ दिया। वहाँ उसे एक भील ने प्राप्त किया। भील ने उसे अनेक कष्ट दिये, परन्तु वह सती-धर्म से विचलित नहीं हुई । यहाँ से वह कौशाम्बी के व्यापारी वृषभसेन नामक सेठ को प्राप्त हुई । इस सेठ के घर में ही बन्दिनी चन्दना ने महावीर को आहार-दान किया, जिसके प्रभाव से उसकी कीति सर्वत्र फैल गई । इसके बाद सेठ के घर से मुक्त होकर उसने भगवान् महावीर से दीक्षा ग्रहण की और आर्यिका संघ की प्रधान बनी । चन्दना की बहन ज्येष्ठा ने भी भगवान् महावीर से दीक्षा ग्रहण की थी। राजगृह के राजकोठारी की पुत्री भद्रा कुण्डलकेशा ने भी भगवान से दीक्षा लेकर जैनधर्म और समाज की सेवा की थी । भद्र कुण्डलकेशा का उपदेश इतना मधुर होता था कि हजारों-हजार की भीड़ एकत्र हो जाती थी और सभी श्रोता मन्त्र-मुग्ध हो जाते थे । उपर्युक्त तीन लाख श्राविकाओं में चेलना, सुलसा आदि प्रधान हैं। श्रेणिक जैसे विधर्मी राजा को सन्मार्ग की ओर प्रवर्तित करने वाली रानी चेलना की गौरव गाथा कल्प-कल्प तक गाई जाएगी। कहना न होगा कि बिहार में जैन आर्यिकाओं और श्राविकाओं की एक सक्रिय परम्परा रही है । बिहार के प्रसिद्ध जैनतीर्थ चम्पापुर के विकास का पूर्ण उल्लेख 'औपपातिकसूत्र' में मिलता है । चम्पापुर (चम्पानगर) भागलपुर से पश्चिम चार मील की दूरी पर है। यहाँ १२वें तीर्थंकर भगवान् वासुपूज्य ने गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान और निर्वाण प्राप्त किये थे । अनाथ जीवों के नाथ, यानी उद्धारक भगवान् महावीर ने चम्पानगर में तीन वर्षावास बिताये थे, कदाचित् इसीलिए इसके पार्श्ववर्ती क्षेत्र का नाम 'नाथनगर ' पड़ा गया । चम्पानगर के रेलवे स्टेशन का नाम आज भी 'नाथनगर' है । पहले चम्पापुरी अंगदेश (प्राचीन मगध ) की राजधानी थी। राजा कौणिक ने राजगृह से हटकर चम्पा को ही मगध की राजधानी बनाया था । भगवान् महावीर के आर्यिका संघ की प्रधान उपर्युक्त चन्दना या चन्दनबाला यहाँ की राजपुत्री थी । चम्पा के राजा का नाम जितशत्रु था जिसकी रानी रक्तवती नाम की थी । श्वेताम्बर - आगम सूत्रों में बताया गया है कि भगवान् यहाँ के पूर्णभद्र चैत्य नामक प्रसिद्ध उद्यान में ठहरते थे । इस प्रकार, चम्पा का सम्बन्ध भगवान् महावीर से अधिक रहा है । इस चम्पापुरी से सम्बन्ध रखने वाली ऐसी अनेक कथाएँ जैनपुराणों, महापुराणों और कथाकोश में मिलती हैं, जिनमें विविध जैन नारीरत्न चित्रित हुए हैं। हम यहाँ दो-एक प्रस्तुत करेंगे । रानी पद्मावती चम्पा में दधिवाहन नाम का राजा था। उसकी रानी पद्मावती नाम की थी। एक बार रानी गर्भवती हुई और उस हालत में उसे हाथी पर बैठकर उद्यान भ्रमण की इच्छा हुई । इच्छा के अनुसार भ्रमण की तैयारी हुई। राजा-रानी एक हाथी पर चले। रास्ते में राजकीय हाथी बिगड़ गया और दोनों को लेकर जंगल की ओर भागा। रानी के कहने पर राजा ने एक बरगद की डाल पकड़कर जान बचा ली, पर रानी को लेकर हाथी घोर जंगल में पहुँचा और वहाँ एक तालाब में घुसते ही रानी हाथी की पीठ से पानी में कूद गई और तैरकर बाहर निकल आई। जंगल से किसी प्रकार निकलकर रानी पद्मावती दन्तपुर पहुँची और वहाँ एक आर्थिक से दीक्षा लेकर तपस्या करने लगी । २६४ | छठा खण्ड : नारी समाज के विकास में जैन साध्वियों का योगदानPage Navigation
1 2 3 4