Book Title: Prachin Digambaracharya aur unki Sahitya Sadhna
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Z_Yatindrasuri_Diksha_Shatabdi_Smarak_Granth_012036.pdf

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Page 22
________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्थ - जैन आगम एवं साहित्य की उपाधि प्राप्त थी। पाण्डवपुराण, स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा की केशवर्णी की संस्कृतमिश्रित कन्नड़ टीका जीवतत्त्वप्रदीपिका इन संस्कृत-टीका आदि अनेक ग्रन्थ इनके द्वारा बनाए हुए हैं। दोनों टीकाओं के आधार से रची गई है, लिखी है। ज्ञानार्णवकार आचार्य शुभचन्द्र का समय विक्रम संवत् की दूसरे नेमिचन्द्र ने ही लघुद्रव्यसंग्रह और बृहद्रव्यसंग्रह ११वीं शताब्दी माना जाता है। ज्ञानावर्णव के माहात्म्य के विषय की रचना की है। द्रव्यसंग्रह के संस्कृत टीकाकार ब्रह्मदेव ने में इन्होंने लिखा है द्रव्यसंग्रह नेमिचन्द्र को सिद्धान्तिदेव उपाधि के साथ अपनी ज्ञानार्णवस्य माहात्म्यं चित्ते को वेत्ति तत्त्वतः। संस्कृत टीका के मध्य में तथा अधिकारों के अंतिम पष्पिकावाक्यों यज्ज्ञानात्तीर्यते भव्यैर्दुस्तरोऽपिभवार्णवः।।४२/८८।। में उल्लिखित किया है। वसुनन्दि और उनके गरु नेमिचन्द्र भी भव्य जीव जिसके ज्ञान से ही अत्यंत कठिनता से पार सिद्धान्तिदेव की उपाधि से भूषित मिलते हैं। अत: असंभव नहीं करने योग्य संसाररूप समुद्र से पार हो जाते हैं, ऐसे ज्ञानार्णव ग्रंथ कि ब्रह्मदेव के अभिप्रेत नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेव और वसुनन्दि के का माहात्म्य यथार्थरीति से कौन जानता है? गुरु नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेव एक ही हों। मनिरामसेन - रामसेन नाम के अनेक व्यक्ति हए हैं। मनि अनन्तकाति - अनन्तकीर्ति नाम के अनेक विद्वान् आचार्य रामसेन तत्त्वानशासन नामक ग्रन्थ के कर्ता हए हैं। इनका समय हुए हैं। इनमें से १० अनन्तकीर्तियों का परिचय डा. नेमिचन्द्र विक्रम की १०वीं शताब्दी है। ये नागसेन के शिष्य थे। इन्होंने शास्त्री ने अपने ग्रन्थ 'तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य वीरचन्द्र.शभदेव, महेन्द्रदेव और विजयदेव से शास्त्रों का अध्ययन परंपरा' में दिया है। बृहत्सर्वज्ञसिद्धि और लघसर्वज्ञसिद्धि के कर्ता किया था। इनके ऊपर आचार्य कुन्दकुन्द, उमास्वाति, समन्तभद्र, अनन्तवीर्य के वैदुष्य का प्रभाव शान्तिसूरि, अभयदेवसूरि तर्कपञ्चानन पूज्यपाद, अकलङ्क और जिनसेन का विशेष प्रभाव पड़ा। तथा प्रभाचंद्र आदि आचार्यों पर पड़ा है। आचार्य वादिराज ने तत्त्वानुशासन में ध्यान का विशेष विवेचन है। पार्श्वनाथचरित में अनन्तकीर्ति का स्मरण निम्न प्रकार किया है - माइल्लधवल - माल ववल ने अपने ग्रन्थ की अंतिम आत्मनेवाद्वितीयेन जीवसिद्धिनिबध्नता। अनन्तकीर्तिना मुक्ति रात्रिमार्गेव लक्ष्यते। गाथाओं में आचार्य देवसेन को अपना गरु घोषित किया है। उनकी एकमात्र कृति नयचक्र है। इस ग्रन्थ में द्रव्यसंग्रह तथा पद्मनन्दि इनका समय विद्वानों ने ८४० से १०८२ विक्रम संवत् के पञ्चविंशतिका के एकत्वसप्तति से कुछ उद्धरण प्रस्तुत किए गए हैं। बीच माना ह इनका समय ११३६ से १२४३ ई. के मध्य का माना जाता है ६८। मल्लिषेण - ग्यारहवीं शताब्दी ईसवी में हुए मल्लिषेण नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेव - नेमिचन्द्र नाम के अनेक आचार्य उभयभाषाकविचक्रवर्ती के रूप में विख्यात हैं। इनकी कवि हुए हैं। एक नेमिचन्द्र वे हैं, जिन्होंने गोम्मटसार, त्रिलोकसार, और मन्त्रवादी के रूप में विशेष प्रसिद्धि है। इनकी निम्नलिखित लब्धिसार, क्षपणासार जैसे मूर्धन्य सिद्धान्त ग्रन्थों का प्रणयन रचनाएँ प्राप्त हैं। किया है और जो सिद्धान्तचक्रवर्ती की उपाधि से विभूषित थे। १. नागकुमार काव्य २. महापुराण . दूसरे नेमिचन्द्र, जिनका उल्लेख वसुनन्दि सिद्धान्तिदेव ने ३. भैरवपद्मावतीकल्प अपने उपासकाध्ययन में किया है और जिन्हें जिनागमरूप समुद्र ४. सरस्वतीमन्त्रकल्प की वेलातरङ्गों से धुले हुए हृदयवाला तथा सम्पूर्ण जगत् में विख्यात लिखा है। ५. ज्वालिनीकल्प। ६. कामचाण्डालीकल्प। तीसरे नेमिचन्द्र वे हैं, जिन्होंने प्रथम नंबर पर उल्लिखित नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती के गोम्मटसार पर जीवतत्त्वप्रदीपिका महापुराण की रचना धारवाड़ जिले के मूलगुन्द नामक नाम की संस्कत-टीका, जो अभयचन्द्र की मन्दप्रबोधिका और स्थान में की गई है। oriandidrowardwardworrowdorandiwborrarwarirarai- ६३ Porarita-orikarowardwarriwaririririrbrosarowaroranirand Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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