Book Title: Prabandh Chintamani ka Ek Acharchit Prabandh
Author(s): Shivprasad Gupta
Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_2_Pundit_Bechardas_Doshi_012016.pdf

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Page 2
________________ 112 शिवप्रसाद गुप्त हिन्दी अनुवादक-आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी प्रकाशक-सिन्धी जैन ज्ञानपीठ, शान्तिनिकेतन, पश्चिम बङ्गाल प्रकाशन-वर्ष-प्रबन्धचिन्तामणि (मूल) सिन्धी जैन ग्रन्थमाला ग्रन्थाङ्क 1 A. D. 1931 प्रबन्धचिन्तामणि (हिन्दी अनुवाद) सिन्धी जैन ग्रन्थमाला ग्रन्थाङ्क 3 A D. 1940 परन्तु उक्त प्रकीर्णक प्रबन्ध के बारे में किसी भी संस्करण में कोई चर्चा नहीं मिलती। चूंकि मेरुतुङ्ग ने उक्त कथानक को चोल देश से सम्बन्धित बतलाया है, अतः तमिल प्रदेश में ही उसके स्रोत को ढूँढना चाहिए। ___ तमिलनाडु प्रान्त के तंजावूर जिले में तिरुवारूर नामक तीर्थस्थल में एक प्राचीन और महिम्न शिवमन्दिर है, जिसे त्यागराज स्वामी का मन्दिर कहा जाता है।' इस मन्दिर के बहिप्रकार के गोपुर से ईशान् में थोड़ी सी दूरी पर पाषाण खण्डों से उकेरा गया रथ भी है, जिसमें चार पहिये लगे हैं और उसे एक व्यक्ति हांक रहा है। रथ के पहिये के नीचे एक बालक पड़ा हुआ है। मन्दिर के द्वितीय प्राकार के उत्तरी दीवाल में इसी अङ्कन से सम्बन्धित एक कथानक शब्दोत्कीर्ण है, जिसे चोल नरेश विक्रम चोल-(A D. 1118-1135) के शासनकाल के पांचवें वर्ष (A.D. 1122-23) में उत्कीर्ण कराया गया। इसी प्रकार का कथानक शिलप्पदिकार (A.D. 5th-6th Cen.) और पेरिय पुराण (A.D. 12th Cen.) में भी पाया जाता है / अत: यह माना जा सकता है कि मेरुतुङ्ग द्वारा प्रबन्धचिन्तामणि में उल्लिखित "गोवर्धन नृपप्रबन्ध" का आधार असल में यही कथानक रहा होगा। पुरातनप्रबन्धसङ्ग्रह में इस कथानक को कल्याणी नगरी से सम्बन्धित बताया गया है / यद्यपि यह नगरी भी दक्षिण भारत में ही स्थित है, परन्तु उक्त कथा का स्रोत हमें चोलदेश में प्राप्त हो गया है, अतः यह समझना चाहिए कि उक्त प्रबन्ध के रचनाकार को इस कथा के मूल देश को समझने में भ्रान्ति हो गयी होगी / हो सकता है उनके मूल स्रोत में कुछ गड़बड़ी रही हो / 1. S. Ponnusamy-Sri Thyuguraja Temple Thirunarur, Madras 1972, p-77. 2. South Indian Inscriptions Vol V (AS I New Imperial Series Vol XLIX 1925) No. 456, pp-175-176. 3. श्री के० जी० कृष्णन् (Former Chief Epigraphist, Mysore State) से व्यक्तिगत पत्र व्यवहार __ से उक्त सूचना प्राप्त हुई है, जिसके लिये लेखक उनका आभारी है / 4. पश्चिमी चालक्यों की राजधानी, जो कर्णाटक प्रान्त के वर्तमान बीदर जिले में स्थित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only . www.jainelibrary.org

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