Book Title: Prabandh Chintamani ka Ek Acharchit Prabandh
Author(s): Shivprasad Gupta
Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_2_Pundit_Bechardas_Doshi_012016.pdf
Catalog link: https://jainqq.org/explore/211384/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रबन्धचिन्तामणि का एक अचर्चित प्रबन्ध शिवप्रसाद गुप्त नागेन्द्रगच्छीय मेरुतुङ्गाचार्यकृत सुप्रसिद्ध ग्रन्थ प्रबन्धचिन्तामणि ( रचनाकाल वि० सं० १३६२ ई० सन् १३०५ ) के प्रकीर्णक प्रबन्धों में एक है- "गोवर्धननृपप्रबन्ध", उसका सार इस प्रकार है : "चोल देश में गोवर्धन नामक एक राजा राज्य करता था, जो बड़ा ही न्यायप्रिय था । अपनी लोकप्रियता के कारण ही उसने अपने महालय के द्वार पर एक स्वर्णघण्ट लटका दिया था, जिसे बजाकर लोग उसके पास फरियाद लेकर जा सकते थे । एक दिन किसी देव ने राजा की परीक्षा लेनी चाही और उसने गाय का रूप धारण किया। उसके साथ बछड़ा भी था । एक दिन राजा का कुमार राजमार्ग पर रथ हाँकता हुआ चला जा रहा था । रास्ते में एक जगह उक्त गाय का बछड़ा रथ के पहिये के नीचे आ गया और कुचलकर वहीं मर गया । अब गाय रोती हुई राजा के द्वार पर पहुँची। राजा ने उसकी बात सुनी और न्याय हेतु दूसरे दिन स्वयं सारथी बन कर रथ हाँकने लगा तथा कुमार को पहिये के नीचे डाल दिया । रथ का पहिया कुमार के ऊपर से होकर निकल गया, परन्तु वह मरा नहीं । उसी समय देव ने प्रकट होकर राजा की न्यायप्रियता की प्रशंसा की और उसे चिरकाल तक राज्य करने का आशीर्वाद दिया ।" यही कथानक पुरातन प्रबन्धसङ्ग्रह ' ( संपा० - जिनविजयमुनि, प्रति- -- B. Br. P) में भी पाया जाता है, परन्तु वहाँ राजा का नाम 'यशोवर्मं' तथा उसे 'कल्याण कटक' का राजा बतलाया गया है । प्रबन्धचिन्तामणि के अब तक मूल एवं अनुवाद के एक से ज्यादा संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं, जो इस प्रकार हैं १. The Prabandha Cintamani Translated from the original Sanskrit By C. H. Tawney, Published by The Asiatic Society of Bengal New Series N. 931 Year A.D. 1899. २. प्रबन्धचिन्तामणि - मूल एवं गुजराती अनुवाद सम्पादक और अनुवादक - दुर्गाशङ्कर शास्त्री प्रकाशक - फार्बस गुजराती सभा, मुम्बई प्रकाशन वर्ष A. D. 1932 ३. प्रबन्धचिन्तामणि - मूल एवं हिन्दी अनुवाद मूल सम्पादक - जिनविजय मुनि १. पुरातनप्रबन्धसङ्ग्रह सम्पादक जिनविजय मुनि, (सिन्धी जैन ग्रन्थमाला - ग्रन्थाङ्क 2 ) कलकत्ता 1936 "न्याये यशोवर्म्मनृपप्रबन्ध" पृ० 107 - 8 | Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 112 शिवप्रसाद गुप्त हिन्दी अनुवादक-आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी प्रकाशक-सिन्धी जैन ज्ञानपीठ, शान्तिनिकेतन, पश्चिम बङ्गाल प्रकाशन-वर्ष-प्रबन्धचिन्तामणि (मूल) सिन्धी जैन ग्रन्थमाला ग्रन्थाङ्क 1 A. D. 1931 प्रबन्धचिन्तामणि (हिन्दी अनुवाद) सिन्धी जैन ग्रन्थमाला ग्रन्थाङ्क 3 A D. 1940 परन्तु उक्त प्रकीर्णक प्रबन्ध के बारे में किसी भी संस्करण में कोई चर्चा नहीं मिलती। चूंकि मेरुतुङ्ग ने उक्त कथानक को चोल देश से सम्बन्धित बतलाया है, अतः तमिल प्रदेश में ही उसके स्रोत को ढूँढना चाहिए। ___ तमिलनाडु प्रान्त के तंजावूर जिले में तिरुवारूर नामक तीर्थस्थल में एक प्राचीन और महिम्न शिवमन्दिर है, जिसे त्यागराज स्वामी का मन्दिर कहा जाता है।' इस मन्दिर के बहिप्रकार के गोपुर से ईशान् में थोड़ी सी दूरी पर पाषाण खण्डों से उकेरा गया रथ भी है, जिसमें चार पहिये लगे हैं और उसे एक व्यक्ति हांक रहा है। रथ के पहिये के नीचे एक बालक पड़ा हुआ है। मन्दिर के द्वितीय प्राकार के उत्तरी दीवाल में इसी अङ्कन से सम्बन्धित एक कथानक शब्दोत्कीर्ण है, जिसे चोल नरेश विक्रम चोल-(A D. 1118-1135) के शासनकाल के पांचवें वर्ष (A.D. 1122-23) में उत्कीर्ण कराया गया। इसी प्रकार का कथानक शिलप्पदिकार (A.D. 5th-6th Cen.) और पेरिय पुराण (A.D. 12th Cen.) में भी पाया जाता है / अत: यह माना जा सकता है कि मेरुतुङ्ग द्वारा प्रबन्धचिन्तामणि में उल्लिखित "गोवर्धन नृपप्रबन्ध" का आधार असल में यही कथानक रहा होगा। पुरातनप्रबन्धसङ्ग्रह में इस कथानक को कल्याणी नगरी से सम्बन्धित बताया गया है / यद्यपि यह नगरी भी दक्षिण भारत में ही स्थित है, परन्तु उक्त कथा का स्रोत हमें चोलदेश में प्राप्त हो गया है, अतः यह समझना चाहिए कि उक्त प्रबन्ध के रचनाकार को इस कथा के मूल देश को समझने में भ्रान्ति हो गयी होगी / हो सकता है उनके मूल स्रोत में कुछ गड़बड़ी रही हो / 1. S. Ponnusamy-Sri Thyuguraja Temple Thirunarur, Madras 1972, p-77. 2. South Indian Inscriptions Vol V (AS I New Imperial Series Vol XLIX 1925) No. 456, pp-175-176. 3. श्री के० जी० कृष्णन् (Former Chief Epigraphist, Mysore State) से व्यक्तिगत पत्र व्यवहार __ से उक्त सूचना प्राप्त हुई है, जिसके लिये लेखक उनका आभारी है / 4. पश्चिमी चालक्यों की राजधानी, जो कर्णाटक प्रान्त के वर्तमान बीदर जिले में स्थित है। .