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भूमिका
राजस्थानी साहित्य के निर्माण मे सबसे अधिक और उल्लेखनीय योग जैन विद्वानो और चारणो का रहा है । जैन विद्वानो की रचनाएँ राजस्थानी साहित्य के विकास के समय से ही प्रचुर प्ररिमाण मे प्राप्त होने लगती है, पर चारण कवियो की १५ वीं शताब्दी से पहले की केवल फुटकर कविताएँ ही मिलती है, कोई स्वतन्त्र उल्लेखनीय ग्रन्थ नही मिलता | जैन प्रवन्ध ग्रन्थो मे चारणों के कहे हुए कुछ फुटकर दोहादि उद्धृत हैं जिनको संग्रहीत करके मैंने 'परम्परा' ( मा० १२ ) में प्रकाशित अपने लेख मे दे दिया है । चारणों की सर्व प्रथम उल्लेखनीय स्वतन्त्र रचना ‘अचलदास खीची री वचनिका' है जो सादूळ राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट से प्रकाशित होने जा रही है। इसे शिवदास चारण ने संवत् १४८५ के लगभग बनाई थी ।
१६ वी शताब्दी से अनेक चारण कवियो की रचनाएँ मिलने लगती है और १७ वी मे तो कई बहुत ही प्रसिद्ध चारण कवि हो गये हैं | भक्त चारण कवियो मे 'ईसरदास' सबसे अधिक उल्लेखनीय है । इनका जन्म संवत् १५६५ में जोधपुर राज्य के भादरेस गाँव मे हुआ था । ये रोहडिया शाखा के चारण थे और इनका स्वर्गवास संवत्१६७५ के लगभग हुआ था । 'हरिरस', 'हालाँ झालाँ रा कुंडलिया', 'देवीयारण' इनके प्रसिद्ध और प्रकाशित ग्रन्थ है। वैसे इनके और भी कई ग्रन्थ और बहुत से डिंगल गीत प्राप्त है जिन्हे 'ईसरदास ग्रन्थावली' के रूप मे प्रकाशित करने के लिए संग्रहीत करवा लिया गया है और इनकी सव रचनाएं सादूळ रा०रि० इन्स्टीट्यूट से प्रकाशित करने की योजना है ।
१८ वी शताब्दी के उत्तरार्द्ध मे पीरदान लालस नामक एक भक्त चारण कवि हो गये है जिन्होंने अपने ग्रन्थो मे ईसरदास को गुरु के