Book Title: Pippal Gaccha Gurvavali
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Z_Vijay_Vallabh_suri_Smarak_Granth_012060.pdf

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Page 2
________________ १४ आचार्य विजयवल्लभ सूरि स्मारक ग्रंथ तर्क एवं दर्शनशास्त्र उन्हीं से सीखा था । श्राचार्यपद श्रीचंद्रसूरि से प्राप्त हुआ। जिस मुनिचंद्र शिष्य के वचन से इस चरित्र की रचना की गई वे शांतिसूरि द्वारा श्राचार्यपद पर स्थापित आठ आचार्यों से भिन्न थे। गुरु स्तुति में उन आठ आचार्यों के नाम ये हैं- १ महेन्द्रसूरि २ विजयसिंहसूरि, ३ देवेन्द्रचंद्रसूरि, ४ पद्मदेवसूरि, ५ पूर्णचंद्रसूरि, ६ जयदेवसूरि, ७ हेमप्रभसूरि और ८ जिनेश्वरसूरि । शांतिसूरि के सम्बन्ध में १७ वीं शताब्दि के दो उल्लेख मिलते हैं जिनके अनुसार आपने सात सौ श्रीमाली कुटुम्बों को श्रीमालनगर में प्रतिबोध दिया था । पिप्पलगच्छी गुरु बड़ा, श्री शांतिसूरि सुजान । प्रतिबोधिया कुल सातसई, श्रीमालपुर ईठाण । (सं. १६७२ थिरपुर में राजसागररचित लवकुश रास ) पुण्यसागर रचित अंजना सुंदरी चौपाई में जोकि सं. १६८९ में रची गई, शांतिसूरि के सम्बन्ध में निम्नोक्त विवरण दिया है। Jain Education International श्रीवड़ गच्छ गुरु गाइइ, शांतिसूरि गणधार । चक्रेसरी पद्मावती भगती करइ वार वार ॥ भंग व भाखी धूली कोट समेत । कुटुम्ब श्रीमाली सात सइ उगारयो गुरण हेत ॥ भोज चुरासी राज मइ, जीत्या वाद विशाल । शासन जिन सोभाविउ वादी विरुद वेताल || तिरण गच्छ पीपल थापीउ, आठ शाखा विस्तार । संवत रुद्र बावीसह, समइ हुई सुख कार ॥ ते गच्छ दीसई दीपतु, नयर साचोर मंझारि । वीर जिनेश्वरनुं तिहां, तीर्थ प्रगट उदार ॥ उपर्युक्त उद्धरण में वादी वेताल शांतिसूरि को पिप्पल गच्छ स्थापक शांतिसूर से श्रभिन्न माना है जो विचारणीय है । वादी वेताल शांतिसूरि से थारापद गच्छ प्रसिद्ध हुआ । प्रभावक्चरित्र के अनुसार सं. १०९६ में वादी वेताल शांतिसूरि का स्वर्गवास हो गया था और उनके गुरु का नाम विजयसिंहसूर था । एक ही नाम वाले समकालीन आचार्यों के सम्बन्ध में भूल या भ्रांति होना सहज है । कुछ बातें एक दूसरे के लिये भ्रमवश लिख दी जाती हैं। श्री मोहनलाल देशाई ने भी अपने "जैन साहित्यनो इतिहास " पृष्ठ २०६ में महाराजा भोज द्वारा सन्मानित वादी वेताल शांतिसूरि को पिपलगच्छ का स्थापक धर्मरत्न लघुवृत्तिका रचयिता माना है। दोनों श्राचायों के समय पर विचार करते हुए यह सही नहीं प्रतीत होता । पृथ्वीचंद्र चरित सं. ११६१ की रचना है। इधर बादी वेताल शांतिसूरि का स्वर्गवास सं. १०९६ में हो चुका था। अतः दोनों एक नहीं हो सकते। प्रभावक चरित्र पर्यालोचन में वादी वेताल शांतिसूरि रचित उत्तराध्ययन टीका और तिलक मंजरी टिप्पण का उल्लेख है, पर पाटण भंडार सूची के पृष्ठ ८७ के अनुसार तिलक मंजरी टिप्पण के रचयिता शांतिसूरि पूर्णतल गच्छ के थे । यथा श्री शांतिसूरिरिह श्रीमति पूर्णतले (ल्ले ) गच्छे वरो मतिमतां बहुशास्त्रवेत्ता नामयं विरचितं बहुधा विमृश्य संक्षेपतो वरमिदं बुध टिप्पिनं भोः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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