Book Title: Pavapuri Tirth ka Prachin Itihas Author(s): Puranchand Nahar Publisher: Puranchand Nahar View full book textPage 3
________________ निवेदन परम पवित्र श्री पावापुरी तीर्थ के प्राचीन इतिहास का यह छोटा सा निबन्ध आज अपने साधर्मी बन्धुनों के करकमलों में, अर्पित करते हुए मुझे बड़ा हो हर्ष है। यों तो अपने समस्त तीर्थंकरों की कल्याणक भूमि पवित्र तीर्थ माने गये हैं परन्तु यह स्थान जैनियों के लिये विशेष महत्व का है। भाज समग्र जैन समाज अपने चौवीसवें तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी के शासन की छत्रछाया में चल रहे हैं। भाज उनकी वाणी, उनकी त्रिपदी के आधार पर ही जैन सिद्धान्त की रचना हुई है। वे ही जिस तीर्थ की स्थापना कर गये थे वही साधु साध्वी, श्रावक श्राविका अद्यावधि श्रीसंघ के अंगवरूप चले आते हैं। इसी कारण श्रीसंघ के जन्मदाता का वही निर्वाण स्थान प्रत्येक जैन-धर्मानुयायी के दर्शन और पूजन करने योग्य है, इसमें सन्देह नहीं। सोने में सुगन्धि को तरह पवित्रता के अतिरिक्त यह स्थान बड़ा ही चित्ताकर्षक है, और शांति भाव के साथ २ अपने धर्म महत्व को, और श्री वीर भगवान् के उच्च प्रादर्श और त्याग को स्मरण कर दर्शकों का हृदय गद्गद् हो जाता है। ऐसे स्थान के इतिहास जानने और वहां की दर्शनीय वस्तुएं देखने को मेरी बहुत दिनों से अभिलाषा थी। वहां के जो कुछ लेख मैंने संग्रह किये थे वे पाठकों को "जैन लेख संग्रह" के प्रथम और द्वितीय खंडों में यथा स्थान में मिलेंगे। हमारे साधर्मी बन्धुओं के ज्ञातार्थ इस स्थान का संक्षिप्त विवरण लिखा गया है, माशा है कि ये उपयोगी होंगे। ४८, इण्डियन मिरर स्ट्रीट, कलकत्ता वीर सं०२४५६ . पूरण चंद नाहरPage Navigation
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