Book Title: Pavapuri Tirth ka Prachin Itihas
Author(s): Puranchand Nahar
Publisher: Puranchand Nahar

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Page 17
________________ (&) [३] श्री समासरणजी ० यह मंदिर और हाता (कम्पाउण्ड) वर्त्तमान शताब्दि का बना हुआ है 1. श्री पावापुरीजी ग्राम को पूर्व दिशा में आम्र उद्यान के पास एक छोटा सा स्तूप: बना हुआ है वहौ भगवान् के प्राचीन समोसरण का स्थान था ऐसा प्रवाद है। यह स्थान थोड़ी दूरी पर रहने के कारण श्वे • श्रीसंघ ने सरोवर के तट पर ही यह समोसरणजी को रचना की है और मंदिर बनवाये हैं । गोलाकार हाते के चारों चोर लोहे की रेलिंग लगी हुई है और भूमि से प्राकारवय का भाव दर्शाते हुए मध्य भाग में एक अष्टकोण सुन्दराकृति मन्दिर बना हुआ है । इसकी प्रतिष्ठ श्वेताम्बर श्रीसंघ की ओर से तत्कालीन मैनेजर बिहार निवासी बाबू गोविन्दचंद जौ सुचन्तौ ने संवत् १९५३ में करवाई थी । उस मंदिर के मध्य में चतुष्कोण वेदौ पर संवत् १६४५ वैशाख शुक्ल ५ का प्रतिष्ठित श्री वीर प्रभु का चरणयुगल विराजमान है । इसके अतिरिक्त समोसरणजी में और कोई मूर्ति अथवा चरण नहीं है। इस समोसरणजी के मंदिर के समीप पश्चिम दिशा में लेखक को स्वर्गीया मातुश्री श्रीमती गुलाब कुमारी को द्दितल धर्मशाला बनी हुई है, और उत्तर की तरफ रायबहादुर बुधसिंहजी दुधोड़िया को धर्मशाला है। [४] बाई महताब कुंवर का मन्दिर 1 यह श्रो महावीर खामी का मंदिर द्वितल बना हुआ है । ऊपर की भूमि में एक चौमुखजी विराजमान हैं और नोचे मूल वेदी पर श्री वौर भगवान् की मूर्ति के साथ और कई पाषाण व धातु को मूत्तियां हैं । सुना जाता है कि मुर्शिदाबाद - अजीमगञ्ज निवासिनी बाई महताब कुंवर ने अपनी देखरेख में यत्न के साथ यह मंदिर बनवा कर सं० १६३२ में प्रतिष्ठा कराई थी । इस पवित्र तीर्थ की यात्रा सर्व जैनमात्र को एक वार अवश्य करनी चाहिये । वर्त्तमान में यहां अपने शासन नायक को निर्वाण तिथि पर भिन्न २ प्रदेशों के सैंकड़ों यात्रौ एकत्रित होते हैं और उस समय दीन दुःखियों को अन

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