Book Title: Paryavaran ke Sandharbh me Jain Drushtikon
Author(s): Shekharchandra Jain
Publisher: Z_Nahta_Bandhu_Abhinandan_Granth_012007.pdf

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Page 4
________________ 6900000000000000000000000000000000000000000000 0 000 16000000000 1586 उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ / दिनचर्या उनके परिमाणव्रत, बारहव्रत बारहतप को जीवन में / जैनदर्शन मन-वचन-काय की एकाग्रता और संयम पर जोर उतारा जाये तो अनेक विनाशकारी तत्त्वों से बचा जा सकना संभव देता है। 'मौन' पर उसने विशेष जोर दिया। सामायिक, ध्यान, योग है। जैन शास्त्रों में गृहस्थ एवं साधू की जो जीवन शैली वर्णित है। में मौन की महत्ता है। वास्तव में जितना उत्तम चिंतन मौन में होता उसमें किसी भी प्राणी, वनस्पति, जल, पृथ्वी, अग्निकायिक जीवों है उतना अन्यत्र नहीं। आज 'आवाज' का प्रदूषण भी कम की विदारणा न हो इसका पूरा निर्देश है। आसक्ति से मुक्ति, खतरनाक नहीं है। निरंतर आवाजें, ध्वनियंत्र की चीखें, रेडियोइच्छाओं का शमन, प्राणीमात्र के प्रति करुणा उसके मूल में हैं। टेलीविजन के शोर ने मानव की चिंतन शक्ति खो दी है। उसके विचारों की स्वच्छता ऐसे ही भाव और भोजन से आती है जो शुद्ध विचारों पर इनका इतना आक्रमण हुआ है कि वह अच्छा रक्षण में सहायक तत्त्व होते हैं। भी सोच ही नहीं पाता। इस प्रकार पूरे निबंध का निष्कर्ष यही है कि थोड़ा-सा और गहराई से विचार करें तो हमारा संबंध प्रकृति यदि हम हिंसा से बचें, पंचास्तिकायिक जीवों की रक्षा करना सीखें, एवं उसके अंगों से कितना रहा है उसका प्रमाण है हमारे तीर्थंकरों / भोजन का संयम रखते हुए जीवन शैली में योग्य परिवर्तन करें तो के लांछन, उनके चैत्यवृक्ष। इनमें पशु-पक्षी एवं वृक्षों की महत्ता है। / हम सृष्टि के मूल स्वरूप को बचा सकते हैं। हिन्दू शास्त्रों में जो चौबीस अवतार की चर्चा है उममें भी जलचर, म इसके उपाय स्वरूप हमें वायु, जल एवं ध्वनि के प्रदूषण को / थलचर, नभचर पशु-पक्षियों का समावेश है। गाय को माता मानकर / रोकना होगा। पूजा करना। पशुपालन की प्रथा क्या है? वट वृक्ष की पूजा या वृक्षों की सुरक्षा करनी होगी। कटे वनों में पुनः वृक्षारोपण वसन्त में पुष्पों की पूजा क्या प्रकृति का सन्मान नहीं। देवताओं के वाहन पशु-पक्षी हमारे उनके साथ आत्मीय संबंधों का ही प्रतिक्वि करना होगा। जिससे हवा में संतुलन हो। भूस्खलन रोके जा सकें। है। तात्पर्य कि पशु-पक्षियों और वनस्पति के साथ हमारा अभिन्न ऋतुओं को असंतुलित होने से बचाया जा सके। शुद्ध वायु की। रिश्ता रहा है। कहा भी है-“यदि गमन या प्रवेश के समय सामने प्राप्ति हो। हिंसात्मक भोजन, शिकार एवं फैशन के लिए की जाने / मुनिराज, घोड़ा, हाथी, गोबर, कलश या बैल दीख पड़े तो जिस वाली हिंसा से बचना होगा। कार्य के लिए जाते हों। वह सिद्ध हो जाता है। (हरिषेणवृहत्कथा- कलकारखानों की गंदगी से जल को बचाना होगा। हवा में / कोश स्व. पं. इन्द्रलाल शास्त्री के लेख प्राकृत विद्या से साभार) फैलती जहरीली गैस से बचना होगा। जैनदर्शन की दृष्टि को विश्व / हमारे यहाँ शगुनशास्त्र में भी पशुपक्षियों का महत्त्व सिद्ध है। में प्रचारित करते हुए परस्पर ऐक्य। प्रेम एवं 'परस्परोपग्रहो एक ध्यानाकर्षण वाली बात यह भी है कि हमारे जितने तीर्थंकर, जीवानाम्' की भावना के संदर्भ में सह-अस्तित्व एवं प्राणीमात्र के प्रति दया, ममता, प्रेम, आदर एवं मैत्री के भाव का विकास करना मुनि एवं सभी धर्मों के महान् तपस्वियों ने तपस्या के लिए पहाड़, गिरिकंदरा, नदी के किनारे जैसे प्राकृतिक स्थानों को ही चुना। होगा। गीत की ये पंक्तियाँ सजीव करनी होंगीप्रकृति की गोद में जो असीम सुख-शांति मिलती है, निर्दोष "तुम खुद जिओ जीने दो जमाने में सभी को, पशु-पक्षियों की जो मैत्री मिलती है वह अन्यत्र कहाँ ? तीर्थंकर के अपने से कम न समझो सुख-दुख में किसी को।" समवसरण में प्रथम प्रातिहार्य ही अशोक वृक्ष है। गंधोधक वर्षा में सर्वे भवन्तु सुखिनः के मूल मंत्र के साथ याद रखना होगा वह पुष्पों की महत्ता है। ज्योतिषशास्त्र की 12 राशियों में भी पशु-पक्षी सिद्धांतकी महत्ता स्वीकृत है। इस देश की संस्कृति ने तो विषैले सर्प को भी दूध पिलाने में पुण्य माना है। तुलसी की पूजा की है और जल जयं चरे जयं चिट्टे जयमासे जयं सये। चढ़ाने की क्रिया द्वारा जल का महत्त्व एवं वृक्ष सिंचन को महत्ता जयं भुंजेज्ज भासेज्ज एवं पापं ण वज्झई। प्रदान की है। यदि हम सामूहिक आत्महत्या से अपने आपको बचाना चाहते सम्राट अशोक या सिद्धराज-कुमारपाल के राज्यों में गुरुओं की / हैं तो हमे पर्यावरण की रक्षा पर पूरा सहिष्णुता पूर्वक ध्यान देना प्रेरणा से जो अमार घोषणा (हिंसा का पूर्ण निषेध) हुई थी उसमें होगा। हिंसा से बचने के साथ परोक्ष रूप से तो पर्यावरण की ही रक्षा का मा. भाव था। डॉ. शेखरचन्द्र जैन जैनदर्शन का जलगालन सिद्धांत, रात्रि भोजन का निषेध, प्रधान सम्पादक "तीर्थंकरवाणी" अष्टमूल गुणों का स्वीकार इन्हीं भावनाओं की पुष्टि के प्रमाण हैं। } 6, उमिया देवी सोसायटी कहा भी है "जैसा खाये अन्न वैसा उपजे मन। जैसा पीए पानी वैसी नं.२ अमराईबाडी. अहमदाबाद बोले वानी।" प्रधानमंया दवा वितरवाणी" OYMOQ.3000. 0034600. BywapersonRIEORS AGO 92006-0.090. 00 ameriyog 2240072830660030920 SAVDAVIDAS0.0.0000000000000

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