Book Title: Paramparagat Prakrit Vyakaran ki Samiksha Aur Ardhamagadhi A Pustakno Parichay Author(s): K R Chandra Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 2
________________ [123] ७. आद्य दंत्य 'न'कारनो प्रयोग प्राचीन प्राकृत भाषाओमां थतो हतो ज्यारे तेमना स्थाने मूर्धन्य 'ण'कारनो प्रयोग सर्वथा परवर्ती काळनी विशेषता रही ८. ए ज रोते मध्यवर्ती 'न'कार( दन्त्य)ना प्रयोगनी परंपरा पण प्राचीन छे पण परवर्ती काळना व्याकरणकारोना नियमोने लीधे प्राचीन प्राकृतोमां पण तेना स्थाने मूर्धन्य 'ण'कारना प्रयोगो धीरे धीरे प्रचलित थवा पाम्या छे. आ प्रकारना प्रयोगोमां वररुचिना प्राकृत व्याकरणनो वधारे पडतो प्रभाव छे, ए एक निर्विवाद हकीकत छे. ९, १०. एनी ज रीते 'ज्ञ', न्य, अने न'नं दंत्य 'न्न'मां परिवर्तन प्राचीन गणाय छे ज्यारे एमना स्थाने मूर्धन्य 'णण' ना प्रयोगो परवर्ती काळनी प्रवृत्ति छे. साथे साथे संयुक्त व्यंजन 'ण्य' अने 'ण'(ण्य-र्ण) पण दन्त्य 'त्र'मां बदलाइ जाय छे एवं पूर्व भारतनी प्राचीन शिलालेखोनी भाषामां जोवा मळे छे. एटले अर्धमागधीमां तो सामान्यरूपे 'न्न'ना स्थाने 'ण्ण'ना प्रयोगो एना मूळ स्वरूपथी विरुद्ध थई जाय छे. ११. सप्तमी एकवचन माटे -स्सि अने पछी-म्हि' आ बन्ने प्राचीन विभक्ति प्रत्ययो छे. परवर्ती काळमां एमना स्थाने 'म्मि', प्रचलन थवा पाम्यं छे. जे महाराष्ट्री प्राकृतनो प्रत्यय छ, न के अर्धपागधी प्रकृतनो. १२. (अ) प्रथमा द्वितीया बहुवचननो '-णि' (ब) तृतीया एकवचननो '-एण' (स) तृतीया बहुवचननो ‘-हि' (द) षष्ठी बहुवचननो '-णं' अने (क) सप्तमी बहुवचनो '-सु' आ बधा प्रत्ययो प्राचीन प्राकृत भाषाओना प्राचीन प्रत्ययो छे ज्यारे ज्यारे एमनी जग्याए क्रमशः (अ)-ई-इ, (ब)-एणं, (स)-हिं, हिँ, (द)-ण, अने(क) -सुं प्रत्ययो परवर्तीकाळमां विकसित थयां छे अने तेओ वधारे पडता परवर्ती प्राकृतोमां वपरायेला जोवा मळे छे. अर्धमागधी जेवी प्राचीन प्राकृत भाषा पण परवर्तीकाळमां तेमना प्रभावथी बची शकी नहीं ए एक हकीकत छे, एटले एम कहेवू जोईए के परवर्तीकाळना प्रत्ययो पण मूळ अर्धमागधीमां घूसी गया छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3