Book Title: Param Jyoti Mahavir Author(s): Dhanyakumar Jain Publisher: Fulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore View full book textPage 8
________________ (4) होती। भगवान उसकी सारी बात सुनकर कहते हैं- "जब तक हरिकेश के साथ आसन बदल कर ओणिक निम्न श्रासन पर नहीं बैठते उन्हें कैसे गूढ़ ज्ञान प्राप्त हो सकता है ?" राजा जब चांडाल मुनि को दर देता है तभी उसकी विद्या पूरी होती है । भगवान बुद्ध ने बहुत सोच विचार के बाद महा प्रजापति गौतमी को प्रव्रज्या दी थी किन्तु भगवान महावीर ने सहज भाव से अपने चतुर्विधि संघ में स्त्रियों को महत्वपूर्ण स्थान दिया । भगवान जब कौशाम्बी जाते हैं तो उनका हृदय कारागृह में पड़ी, बेड़ियों से जकड़ी, सिर मुड़ी हुई कौशाम्बी के नगर श्रेष्ठ की दासी चन्दन बाला के दुःख से द्रवित हो उठता है । भगवान कई दिनों तक कौशाम्बी में भिक्षा ग्रहण नहीं करते और जब करते हैं तो दासी चन्दन बाला के हाथों 1 से । यही दासी भगवान महावीर की प्रथम शिष्या और उनके "भिक्षुणी संघ की प्रथम अधिष्ठात्री बनी। (चुलवग्ग) प्रस्तुत काव्य ग्रन्थ में चन्दन बाला के प्रसंग का मार्मिक वर्णन कवि ने किया है। भगवान महावीर के राजशिष्य सम्राट चन्द्रगुप्त ने जैन धर्म की शिक्षा का विधिवत् प्रचार करने के लिये अपने धर्म दूत यूनानी सम्रान्तिोकस, मिस्र के सम्राट टालेभी, मैसिडोन के राजा श्रन्तिगोनस साइरीन सम्राट मारगस और एपिरो नरेश अलेक्जेंडर के पास भेजे । मिस्र की राजधानी काहिरा से एक हजार मील दूर रेगिस्तान के बीच में बसे हुये नगर साइरीज में भी जैन धर्म के प्रचारक पहुँचे । भगवान महावीर मानव भावनाओं से परिपूर्ण मानव धर्म के महान प्रचारक थे जिनके जीवन और जिनकी शिक्षा के ऐतिहासिक महत्व के आगे उनका पौराणिक महत्व अधिक मूल्य नहीं रखता । श्राज का युद्ध सन्तप्त मानव, संसार के कल्याण के लिये, भगवान महावीर की शिक्षाओं की ओर श्राशापूर्ण दृष्टि से देख रहा है क्योंकि उन्हीं शिक्षाओंPage Navigation
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