Book Title: Panchvastukgranth Part 1
Author(s): Haribhadrasuri, Rajshekharsuri
Publisher: Arihant Aradhak Trust

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Page 313
________________ २८८ ] [पञ्चवस्तुके गाथाद्यचरणम् निअमेण भावणाओ निच्चो वेगसहावो निच्छयओ दुन्नेअं निच्छयणया जमेसा निच्छयनअस्स निद्दामत्तो न सरई निद्दाविगहापरिवज्जिएहिं ४९८ गाथाङ्क: गाथाद्यचरणम् ३६४ पडिवज्जमाणगा वा १०८५ पडिवज्जमाण भइआ १०१५ पडिवाईविअ एअं १२०७ पडिसिद्धवज्जगाणं ९१४ पडुपण्णऽणागए वा पढमदिवसम्मि कम्म १००६ पढमाउ कुसलबंधो पढमा उवस्सयम्मी पढमा सइ अणुमन्ने ६१० पढमिल्लुगसंघयणे १४१९ पढमिल्लयसंघयणा १६२४ पढमे वा बीए वा ३९१ पढमंपि जा इहेच्छा ९७२ पढमंमी एगिर्दिअ पढिए अ कहिअ ४३८ पण्णरसंगो एसो ९५४ पण्हो उ होइ ৩০৩ पत्तगठवणं तह ८२६ पत्तगधारीण पुण ७८७ पत्ताबंधपमाणं १५४२ पत्ताईण पमाणं ११२७ पत्ताबंधो पडला ११५९ पत्तो अकप्पिओ इह १४५६ पत्तं पत्ताबंधो ४३६ पत्तं पत्ताबंधो २३७ पम्हुट्ठमेरसारण पयईए सावज्जं पयरगकडछेएणं ८६९ परपक्खेडविअ दुहं ८५४ परमगुरुणो अ अणहे १५८८ | परमत्थओ न दुक्खं पइदिणकिरियाइ पक्खीपत्तुवगरणे पच्चक्खइ आहारं पच्छन्ने भोत्तवं जइणा पच्छा य सोऽणुयोगी पच्छावि तस्स घडणे पट्टग मत्तग सगउग्गहो पट्टवसु अणुण्णाए पट्ठीवंसो दो पट्टोवि होइ तासिं पडलाइँ रयत्ताणं पडिबद्धा इयरेऽवि पडिबुज्झिस्संति इहं पडिबुज्झिस्संतेऽण्णे पडिमत्ति अ मासाई पडिलेहणा उ दुविहा पडिलेहणा पमज्जण पडिलेहिउँ पमज्जण पडिलेहिऊण उवहिं पडिवक्खज्झवसाणं पडिवज्जइ अ इमं खल पडिवज्जइ अ इमं जो गाथाङ्क: १५५१ १५३६ ६२८ १५७० ३८७ १४६६ ११५६ १३९५ ४३० १६१८ १४३० १४८९ १९९ ६५५ ६१४ १६० १६४५ ७९९ ওও ७९८ ८२३ ७९० ९७७ ७७२ ७८० १०३४ ४९१ १३६ २६३ १०० ३६० ४०९ ११८६ २२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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