Book Title: Panchsutra na Karta Kon Chirantanacharya ke Haribhadra Acharya
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 4
________________ 74 छे. तेथी तेने मूळ सूत्र अने तेना कर्ता साथे सांकळवानुं बराबर नथी. आना जवाबमां एटलुं ज कही शकाय के आq होय तो टीकाकार, उपर कहेवायुं छे तेम, 'समाप्तं पञ्चसूत्रकं व्याख्यानतः' के 'समाप्ता पञ्चसूत्रककटीका' एटलुं ज कही शक्या होत, ने ते ज उचित पण गणात. वळी, आगळ उपर 'पञ्चसूत्रकटीका समाप्ता'१० एवं स्वतंत्र वाक्य-टीकाकारे ज लखेलुं- आवे तो छे. ए वाक्यने लीधे पेला वाक्य (समाप्तं पञ्चसूत्रकं व्याख्यानतोऽपि) नो आखोय संदर्भ आपो आप बदलाइ जाय छे, अने टीकाकारे लखेलु ए वाक्य, टीकाकार अने सूत्रकारनी अभिन्नतानुं स्पष्ट सूचन आपे छे. आम छतां, आगळ आवनारा मुद्दाओना परिप्रेक्ष्यमा आ वात विचारीशुं, तो आ शंका अस्थाने होवानुं समजी शकाशे. बीजी वात, मूळ सूत्रकारे तो 'समत्तं पञ्चसुत्तं' एवो शब्दप्रयोग को छे, एमां 'पञ्चसूत्र'११ समास थयानो निर्देश छे, 'पञ्चसूत्रक' नहि. हवे टीकाकार तो लखे छे के 'समाप्तं पञ्चसूत्रकं', अन्यत्र पण सर्वत्र टीकाकार आ रचनाने पञ्चसूत्रक तरीके ज ओळखावे छे. तो शुं मूळकारे आपेल नाम साथे हरिभद्रसूरि जेवा समर्थ विवरणकार आ रीतनी छूट ले खरा ? एवी छूट लेवार्नु उचित गणाय खलं ? बल्के तेमना जेवा प्राचीन विवरणकार तो मूळ सूत्रकारना अक्षरे-अक्षरने वळगीने ज चाले. अने तेथी ज अनुमान करी शकाय छे के जो टीकाकार स्वयं सूत्रना प्रणेता होय तो ज, पोतानी लखेली वातमां पोते यथेच्छ उमेरो करी शके ए न्याये, मूळ सूत्रने 'पंचसुत्त' एवं नाम पोते ज आप्यु होय तोय टीकामां अने टीकाना अंते ‘पञ्चसूत्रक' एवं नाम आपी शके. २. 'समाप्तं पञ्चसूत्रकं व्याख्यानतोऽपि' ए वाक्यनी पछी, टीकाकारे केटलांक भावसभर वाक्यो मूक्यां छे : 'नमः श्रुतदेवतायै भगवत्यै। सर्वनमस्कारार्हेभ्यो नमः । सर्ववन्दनार्हान् वन्दे । सर्वोपकारिणामिच्छामो वैयावृत्त्यम् । सार्वानुभावादौचित्येन मे धर्मे प्रवृत्तिर्भवतु । सर्वे सत्त्वाः सुखिनः सन्तु, सर्वे सत्त्वाः सुखिनः सन्तु, सर्वे सत्त्वाः सुखिनः सन्तु ।।१३ विवरणकारोनी ए परंपरा रही छे के तेमनुं काम सूत्रकारे के ग्रंथकारे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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