Book Title: Panchsutra na Karta Kon Chirantanacharya ke Haribhadra Acharya
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 12
________________ आ बे श्लोको साथै, अनुक्रमे मळी रहे छे. १२. 'दिदृक्षा' शब्दनो जैन साहित्यमां विनियोग सौ प्रथम श्रीहरिभद्रसूरिना ग्रंथोमां मळे छे, एम मारी धारणा छे. तेमना ग्रंथो पैकी : 82 (१) 'योगदृष्टिसमुच्चय' ना उपर नोंधेला २००ना श्लोकमां दिदृक्षा शब्द प्रयोजायो छे. 'योगबिन्दु' ना ४८९मां श्लोकमां 'दिदृक्षादिनिवृत्त्यादिपूर्वसूर्युदितं तथा' एम पूर्वसूरिओ (टीका अनुसार पतञ्जलि वगेरे पूर्वसूरिओ) ना हवाला साथे 'दिक्षा' शब्द प्रयोजायो छे. ५० (२) 'विंशतिविंशिका' मां बीजी विंशिका नी १६मी गाथामां 'एयं चेव दिदिक्खा' एवो 'दिदृक्षा' शब्दनो प्रयोग मळे छे. जो के प्रो. अभ्यंकरे स्वीकारेलो अने परंपराथी प्रसिद्ध पाठ तो 'एवं चैव यऽदिक्खा' छे, जे अशुद्ध अने असंगत ज छे. त्यां 'दिदिक्खा' होवानुं स्वीकारीए तो ज शुद्धि अने अर्थसंगति थइ शके छे. ५१ (३) ' षोडशकप्रकरण' मां १५मा षोडशक ना आठमा पद्यमां 'सामर्थ्ययोगतो या तत्र दिदृक्षेत्यसङ्गशक्त्याढ्या । सानालम्बनयोगः १५ १ एवो प्रयोग छे. जो के अहीं 'दिदृक्षा' नो अर्थ अन्य ग्रंथोमां थाय छे तेवो नथी थतो. अहीं तो ते 'अनालम्बनयोग' ना अर्थमां 'द्रष्टुमिच्छा दिदृक्षा' एवी व्युत्पत्तिपूर्वक वपरायो छे. छतां आपणे तो अहीं 'दिदृक्षा' शब्द साधे प्रयोजन छे, अने ते, ए शब्दनो अर्थसंदर्भ बदलाया छतां पण कांई निरर्थक जतुं नथी. संभव छे के आ. हरिभद्रसूरिजी महाराजे पोताना अन्य ग्रंथोमां पण आ शब्द प्रयोज्यो होय. हवे आपणे ए जोवानुं छे के एक 'षोडशक' ने बाद करतां, उपरोक्त त्रण ग्रंथोमां, जे अर्थसंदर्भमां आचार्ये 'दिदृक्षा' शब्द प्रयोज्यो छे, ते ज संदर्भमां ते शब्द 'पञ्चसूत्र' मां पण 'ण दिदिक्खा अकरणस्स ५३ ए वाक्यमा प्रयोजायेलो जोवा मळे छे. - १३. पञ्चसूत्र ना चोथा सूत्रमां एक शब्द आवे छे 'समंतभद्दा'. ५४ आ. श्रीहरिभद्राचार्यनो मनगमतो शब्द लागे छे. केम के 'विंशतिविंशिका' मां पण, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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