Book Title: Panchastikaya Samaysara
Author(s): Jaganmohanlal Jain
Publisher: Z_Acharya_Shantisagar_Janma_Shatabdi_Mahotsav_Smruti_Granth_012022.pdf

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Page 4
________________ पञ्चास्तिकाय समयसार अणु-स्कंध के भेदसे इसके २ भेद है । यद्यपि अणु एक प्रदेश मात्र है तथापि शक्त्यपेक्षया बहु प्रदेशी है । स्कंध बहुप्रदेशी है । जो दो से अनन्त प्रदेश तक के पाए जाते हैं। पुद्गल भी अनेकप्रदेशित्व के कारण 'अस्तिकाय' संज्ञा को प्राप्त है। इन्द्रियगोचरता के कारण रूप-रस-गन्ध-स्पर्श गुण पुद्गल में प्रसिद्ध है। उक्त प्रसिद्ध २ भदों के सिवाय पंचास्तिकाय कर्ताने इसके ४ भेद किए है १ स्कंध, २ स्कंधदेश, ३ स्कंधप्रदेश, ४ परमाणु । इन भेदों में ३ भेद तो स्कंधसे ही सम्बन्धित है चौथा भेद परमाणु है। अनंतानंत परमाणुओं की एक स्कंध पर्याय है। उसके आधेको देश, आधेसे आधेको प्रदेश, कहते है किन्तु मात्र एक प्रदेशी अविभागी पुद्गल द्रव्य परमाणु शब्द से व्यवहृत है । परमाणु और स्कंध प्रदेश से बीचके समस्त भेद स्कंध प्रदेश में ही गिने जाते हैं। तीसरे प्रकारसे पुद्गलके ६ प्रकार बतलाए गए है १ बादर बादर, २ बादर, ३ बादर सूक्ष्म, ४ सूक्ष्म बादर, ५ सूक्ष्म, ६ सूक्ष्म-सूक्ष्म । इनकी व्याख्या इस प्रकार है। १ बादर बादर-पुद्गल के वे स्कंध जो टूटने पर स्वयं जुड़ने में असमर्थ है वे बादर बादर है, जैसे काष्ट-पत्थर-या इसी प्रकार के कठीन पदार्थ । २ बादर-वे पदार्थ है जो अलग २ करने के बाद स्वयं मिलकर एक बन सकते है जैसे दूधतेल-घी आदि । ३ बादर सूक्ष्म-वे पदार्थ है जो उपलब्ध करने में स्थूल दिखाई देते है पर जिनका छेदन भेदन करना शक्य नहीं है जैसे छाया, धूप, चांदनी, अंधेरा आदि । ४ सूक्ष्म बादर-वे है जो देखने में सूक्ष्म होनेपर भी जिनकी स्पष्ट उपलब्धि की जा सकती है जैसे मिश्री आदिके रस, पुप्पों की गन्ध आदि । वायु, शब्द आदि भी सूक्ष्म बादर है । ५ सूक्ष्म-वे पुद्गल है जो सूक्ष्म भी है, और इन्द्रिय ग्राह्य नहीं है जैसे कर्म परमाणु । ६ सूक्ष्म सूक्ष्म-कर्म परमाणु से भी सूक्ष्म स्कन्ध जो दो चार आदि परमाणुओं से बने है ऐसे स्कन्ध सूक्ष्म सूक्ष्म कहलाते है । द्वि अणुक स्कन्ध भेद से नीचे एकप्रदेशी की परमाणु संज्ञा है एकप्रदेशी होनेपर भी परमाणु में रूप, रस, गन्ध-वर्णादि पाए जाते है। वे रूप-रस-गन्ध स्पर्श गुण है । इन गुणों की अनेकता पाए जानेपर भी परमाणु में प्रदेशभेद नहीं है। जैसे जैनेतर दर्शन गन्ध-रस-रूप-स्पर्श आदि गुणों के धारण करने वाले 'धातु-चतुष्क ' मानते हैं वैसी मान्यता जैनाचार्योकी नहीं है। उनकी जुदी जुदी सत्ता नहीं है वे सब एकसत्तात्मक है। जो गन्ध है । याने गन्ध का प्रदेश है वही रूपका है अन्य नहीं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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