Book Title: Panchastikay me Pudgal
Author(s): Hukumchand P Sangave
Publisher: Z_Anandrushi_Abhinandan_Granth_012013.pdf

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Page 8
________________ पचास्तिकाय में पुद्गल ३६५ यह पृथ्वी सबसे बड़ा स्कन्ध है । संसार में जितने भी पुद्गल स्कन्ध दृष्टि में आते हैं वे सब स्निग्ध- रूक्ष गुणों से युक्त हैं । यह हम पहले परमाणु के बारे में कह आये हैं । उनकी रचना एक जैसी होने के कारण सब पुद्गल एक प्रकार के हैं । यही बात जैन दार्शनिकों का महत्त्वपूर्ण अविष्कार है । उमास्वाति जो ईसा की प्रथम शती में हुए उन्होंने तत्त्वार्थसूत्र में ३५ कहा है कि पुद्गल स्कन्ध के टूटने से, भेद से अथवा छोटे-छोटे स्कन्धों के संघात से उत्पन्न होते हैं । इन संघात (Combination) के मूल कारण परमाणु के स्निग्ध और रूक्षगुण हैं । जितने भी भिन्न-भिन्न प्रकार के स्कन्ध हैं, उनका बन्ध इन्हीं के आधार पर हुआ है। पुद्गल स्कन्ध में अणुसमूह और वातियों आदि पुद्गलों में व्यूहाणु (Molecales ) की चलन क्रिया होती रहती है । ३६ इसी क्रिया का वर्गीकरण दो प्रकार से किया गया है । ३७ उनमें से एक विस्रसा क्रिया होती है और दूसरी प्रयोग निर्मित क्रिया । विस्रसा गतिक्रिया प्राकृतिक है, विज्ञान में वतियों ( Gasses ) में जो व्यूहायुओं की क्रिया कही गई है उसे भी विस्रसा गतिक्रिया जान सकते हैं । प्रयोगनिर्मित क्रिया बाह्यशक्ति या कारणों से भी उत्पन्न होती है । Electron Positively charged a negatively charged इसी वैज्ञानिक बन्ध - प्रक्रिया से संघातादि का जो सर्वार्थसिद्धि में नियम बताया गया है वह पूर्णतः इससे मिलता है। सूक्ष्म अणुओं की बन्ध प्रक्रिया को भी स्पष्ट किया गया है । अतः उसका कथन इस प्रकार है 'भेदसंघातेभ्य उत्पद्यन्ते भेदादणुः । स्निग्ध- रूक्षत्वात् बन्धः, न जघन्यगुणानाम्, गुणसाम्ये सदृशानाम्, द्वयधिकाधिगुणानां बंधेऽधिको पारिणामिकौ च । (१) अणु की उत्पत्ति सिर्फ भेद प्रक्रिया में ही हो सकती है, अन्य प्रकार की प्रक्रिया से नहीं । (२) स्निग्ध- रूक्ष के कारण ही बन्ध प्रक्रिया सम्भव है । अन्यथा स्कन्ध बन्ध ही न बनता । विजातीय से भी बन्ध होता या सजातीय का परस्पर बन्ध सम्भव है । (३) परन्तु एकाकी गुणों का होना बन्ध का कारण नहीं । दोनों गुण होना चाहिये । विजातीय गुण की संख्या का प्रमाण समान हो तो बन्ध नहीं होता । विज्ञान का Equal energy level व least energy level नियम यहां भी लागू होता है । (४) बन्ध उन्हीं परमाणुओं का सम्भव है जिसमें स्निग्ध और रूक्ष गुणों की संख्या में दो absolute units का अन्तर हो । ४ : ६ । जैन दर्शन में भेद, सघात और भेदसंघात इन्हीं तीन प्रक्रिया से बन्ध सम्भव बतलाया गया है । इसी की तुलना Molecules के लिए ( 1 ) electro Valency ( 2 ) Covalency और (3) Co-ordinate covalency से की जा सकती है । स्कन्धों से कुछ परमाणुओं का विघटित होना और दूसरे में मिल जाना भेद कहलाता है ( Disinte gration ) यही भेदात्मक प्रक्रिया की तुलना वैज्ञानिक Radioactivity प्रक्रिया से की जा सकती है । एक स्कन्ध के कुछ परमाणु का अन्य स्कन्ध के अणुओं के साथ जो मिलन होना बतलाया गया है उसी को संघात कहा ३४. तत्त्वार्थसूत्र अ० ५ / २६-३३ ३५. वही ३६. गोम्मटसार जीवकाण्ड ५६२ ३७. तत्त्वार्थ राजवार्तिक ५/७ Jain Education International आचार्य प्रवल अगदी श्री आनन्द A ALTAME தறு आयायप्रवख अभिन For Private & Personal Use Only Th शॉ www.jainelibrary.org

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