Book Title: Pallival Gaccha ka Itihas Author(s): Shivprasad Publisher: Z_Yatindrasuri_Diksha_Shatabdi_Smarak_Granth_012036.pdf View full book textPage 1
________________ पल्लीवालगच्छ का इतिहास डॉ. शिवप्रसाद...... मानदेवसूरि कर्णसूरि विष्णुसूरि आम्रदेवसूरि सोमतिलकसूरि निर्ग्रन्थ परम्परा के श्वेताम्बर आम्नाय में चन्द्रकल से समयसमय पर अस्तित्व में आए विभिन्न गच्छों में पल्लीवालगच्छ भी एक है। जैसा कि इसके अभिधान से स्पष्ट होता है वर्तमान राजस्थान प्रान्त में अवस्थित पाली (प्राचीन पल्ली) नामक स्थान से यह गच्छ अस्तित्व में आया। इस गच्छ में महेश्वरसूरि प्रथम अभयदेवसूरि, महेश्वरसूरि द्वितीय, नन्नसूरि, अजितदेवसूरि, हीरानंदसूरि आदि कई रचनाकार हो चुके हैं। इस गच्छ से संबद्ध अभिलेखीय साक्ष्य भी मिलते हैं, जो वि.सं. १२५७ से लेकर वि.सं. १९८१ तक के हैं। इस गच्छ की दो पट्टावलियां भी मिलती हैं, जो सद्भाग्य से प्रकाशित है। इस निबंध में उक्त सभी साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। अध्ययन की सुविधा के लिए सर्वप्रथम पट्टावलियों, तत्पश्चात् ग्रन्थ प्रशस्तियों और अन्त में अभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण एवं इन सभी का विवेचन किया गया है। जैसा कि ऊपर कहा गया है पल्लीवालगच्छ की आज दो पट्टावलियाँ मिलती हैं । प्रथम पट्टावली वि.सं. १६७५ के पश्चात् रची गई है। इसमें उल्लिखित गुरु-परंपरा इस प्रकार है-- महावीर भीमदेवसूरि विमलसूरि नरोत्तमसूरि स्वातिसूरि हेमसूरि हर्षसूरि भट्टारक कमलचन्द्र सुधर्मा गुणमाणिक्यसूरि सुन्दरचन्द्रसूरि(वि.सं. १६७५ में स्वर्गस्थ) प्रभुचन्द्रसूरि (वर्तमान) पल्लीवालगच्छ की द्वितीय पट्टावली वि.सं. १७२८ में दिनेश्वरसूरि । रची गई है। इसमें भगवान महावीर के ८ वें पट्टधर स्थूलिभद्र से ___ (पाली में ब्राह्मणों को जैन धर्म में दीक्षित किया) महेश्वरसूरि (वि.सं. ११५० में स्वर्गस्थ) लेकर ३६१ वें पट्टधर उद्योतनसूरि तक का विवरण दिया गया है, जो इस प्रकार है-- देवसूरि महावीर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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