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पल्लीवालगच्छ का इतिहास
डॉ. शिवप्रसाद......
मानदेवसूरि
कर्णसूरि
विष्णुसूरि
आम्रदेवसूरि
सोमतिलकसूरि
निर्ग्रन्थ परम्परा के श्वेताम्बर आम्नाय में चन्द्रकल से समयसमय पर अस्तित्व में आए विभिन्न गच्छों में पल्लीवालगच्छ भी एक है। जैसा कि इसके अभिधान से स्पष्ट होता है वर्तमान राजस्थान प्रान्त में अवस्थित पाली (प्राचीन पल्ली) नामक स्थान से यह गच्छ अस्तित्व में आया। इस गच्छ में महेश्वरसूरि प्रथम अभयदेवसूरि, महेश्वरसूरि द्वितीय, नन्नसूरि, अजितदेवसूरि, हीरानंदसूरि आदि कई रचनाकार हो चुके हैं। इस गच्छ से संबद्ध
अभिलेखीय साक्ष्य भी मिलते हैं, जो वि.सं. १२५७ से लेकर वि.सं. १९८१ तक के हैं। इस गच्छ की दो पट्टावलियां भी मिलती हैं, जो सद्भाग्य से प्रकाशित है। इस निबंध में उक्त सभी साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। अध्ययन की सुविधा के लिए सर्वप्रथम पट्टावलियों, तत्पश्चात् ग्रन्थ प्रशस्तियों और अन्त में अभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण एवं इन सभी का विवेचन किया गया है।
जैसा कि ऊपर कहा गया है पल्लीवालगच्छ की आज दो पट्टावलियाँ मिलती हैं । प्रथम पट्टावली वि.सं. १६७५ के पश्चात् रची गई है। इसमें उल्लिखित गुरु-परंपरा इस प्रकार है--
महावीर
भीमदेवसूरि
विमलसूरि
नरोत्तमसूरि
स्वातिसूरि
हेमसूरि
हर्षसूरि
भट्टारक कमलचन्द्र
सुधर्मा
गुणमाणिक्यसूरि
सुन्दरचन्द्रसूरि(वि.सं. १६७५ में स्वर्गस्थ)
प्रभुचन्द्रसूरि (वर्तमान)
पल्लीवालगच्छ की द्वितीय पट्टावली वि.सं. १७२८ में दिनेश्वरसूरि
। रची गई है। इसमें भगवान महावीर के ८ वें पट्टधर स्थूलिभद्र से ___ (पाली में ब्राह्मणों को जैन धर्म में दीक्षित किया) महेश्वरसूरि (वि.सं. ११५० में स्वर्गस्थ)
लेकर ३६१ वें पट्टधर उद्योतनसूरि तक का विवरण दिया गया
है, जो इस प्रकार है-- देवसूरि
महावीर
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यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - इतिहास
सुधर्मा
-
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-
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-
२९. नन्दसूरि (वि.सं.१०९८ में स्वर्गस्थ)
८. स्थूलिभद्र
९. सुहस्तिसूरि
१०. इन्द्रदिन्न सूरि ११. आर्यदिन्नसूरि
४०. उद्योतनसूरि (वि.सं. ११२३ में स्वर्गस्थ) ४१. महेश्वरसूरि (वि.सं. ११४५ में स्वर्गस्थ) ४२. अभयदेवसूरि (वि.सं. ११६९ में स्वर्गस्थ) ४३. आमदेवसूरि (वि.सं. ११९९ में स्वर्गस्थ) ४४. शांतिसूरि (वि.सं. १२२४ में स्वर्गस्थ) ४५. यशोदेवसूरि (वि.सं. १२३४ में स्वर्गस्थ)
१२. सिंहगिरि
१३. वज्रस्वामी
४६. नन्नसूरि (वि.सं. १२३९ में स्वर्गस्थ)
१४. वज्रसेन
१५. चन्द्रसूरि
४७. उद्योतनसूरि (वि.सं. १२४३ में स्वर्गस्थ) ४८. महेश्वरसूरि (वि.सं. १२७४ में स्वर्गस्थ) ४९. अभयदेवसूरि (वि.सं. १३२१ में स्वर्गस्थ)
१६. शांतिसूरि
१७. यशोदेवसूरि
१८. ननसूरि १९. उद्योतनसूरि २०. महेश्वरसूरि २१. अभयदेवसूरि
५०. आमदेवसूरि (वि.सं. १३७४ में स्वर्गस्थ) ५१. शांतिसूरि (वि.सं. १४४८ में स्वर्गस्थ) ५२. यशोदेवसूरि (वि.सं. १४८८ में स्वर्गस्थ)
५३. नन्नसूरि (वि.सं. १५३२ में स्वर्गस्थ)
२२. आमदेवसूरि
५४. उद्योतनसूरि (वि.सं. १५७२ में स्वर्गस्थ)
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- यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ इतिहास
५५. महेश्वरसूरि (वि.सं. १५९९ में स्वर्गस्थ )
1
५६. अभयदेवसूरि (वि.सं. १५९५ में स्वर्गस्थ)
1
५७. आमदेवसूरि (वि.सं. १६३४ में स्वर्गस्थ )
1
५८. शांतिसूर (वि.सं. १६६१ में स्वर्गस्थ )
1
५९. यशोदेवसूरि (वि.सं. १६९२ में स्वर्गस्थ )
1
६०. नन्नसूर (वि.सं. १७१८ में स्वर्गस्थ )
1
६१. उद्योतनसूरि (वि.सं. १७३७ में स्वर्गस्थ)
इस पट्टावली में ४१ वें पट्टधर महेश्वरसूरि के वि.सं. १९४५ में निधन होने की बात कही गई है। प्रथम पट्टावली में भी महेश्वरसूरि का नाम मिलता है और वि.सं. ११५० में उनके निधन होने की बात कही गई है। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि महेश्वरसूरि इस गच्छ के प्रभावक आचार्य थे। इसी कारण दोनों पट्टावलियों में न केवल इनका नाम मिलता है, बल्कि इन्हें
समसामयिक भी बतलाया गया है।
पल्लीवालगच्छ का उल्लेख करने वाला महत्वपूर्ण साक्ष्य है महेश्वरसूरि द्वारा रचित कालकाचार्यकथा की वि.सं. १३६५ में लिखी गई प्रति की दाताप्रशस्ति, जो इस प्रकार है
इति श्रीपल्लीवालगच्छे श्री महेश्वरसूरिभिर्विरचिता कालिकाचार्यकथासमाप्त।।
श्रीमालवंशोऽस्ति विशालकीर्ति: श्रीशांतिसूरिप्रतिबोधित डीडाकाख्यः । श्रीविक्रमाद्वेदनभर्महर्षिवत्सरै: ( ? ) श्री आदिचैत्यकारापित नवहरे च । । १ । ।
स्वश्रेयसे कारितकल्पपुस्तिका ... पुण्योदयरत्नभूमिः । श्रीपल्लिगच्छे स्वगुणौकधाम्ना वाचिता श्रीमहेश्वरसूरिभिः । । १० ।।
नृथविक्रमकालातीत सं. १३६५ वर्षेभाद्रपदवदौ नवम्यां तिथौ सीमेदपाटमंडले वऊणाग्रामे कल्पपुस्तिका लिखिता ॥ छ ॥
-
उदकानल चौरेभ्यः मूषकेभ्यस्तथैव च । रक्षणीया प्रयत्नेन यत कष्टेन लिख्यते । । १ ।
संवत् १३७८ वर्ष भाद्रपद सुदि ४ श्रावकमोल्हासुतेन भार्याउदयसिरिसमन्वितेन पुत्रसोमा लाखा-खेतासहितेन श्रावकऊदाकेन श्रीकल्पपुस्तिकां गृहीत्वा श्री अभयदेवसूरीणां समर्पिता वाचिता च।
इस प्रशस्ति में रचनाकार ने यद्यपि अपनी गुरु-परंपरा, रचनाकाल आदि का कोई निर्देश नहीं किया है, फिर भी पल्लीवालगच्छ से संबद्ध सबसे प्राचीन साक्ष्य होने इसे अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है।
६४
इस प्रशस्ति के अंत में वि.सं. १३७८ में किन्हीं अभयदेवसूरि को पुस्तक समर्पण की बात कही गई है। ये अभयदेवसूरि कौन थे। महेश्वरसूरि से उनका क्या संबंध था, इस बारे में उक्त प्रशस्ति से कोई सूचना प्राप्त नहीं होती । पल्लीवालगच्छ की द्वितीय पट्टावली में हम देख चुके हैं कि महेश्वरसूरि के पट्टधर के रूप में अभयदेवसूरि का नाम आता है। इस आधार पर इस प्रशस्ति में उल्लिखित अभयदेवसूरि महेश्वरसूरि के शिष्य सिद्ध होते हैं।
पल्लीवालगच्छ से संबद्ध अगला साहित्यिक साक्ष्य है। वि.सं. १५४४ / ई. स. १४८८ में नन्नसूरि द्वारा रचित सीमंधरजिनस्तवन' । यह ३५ गाथाओं में रचित एक लघुकृति है । नन्नसूर के गुरु कौन थे, इस बारे में उक्त प्रशस्ति से कोई सूचना प्राप्त नहीं होती।
वि.सं. १५७३ / ई. स. १५१९ में प्राकृत भाषा में ८८ गाथाओं में रची गई विचारसारप्रकरण की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि इसके रचनाकार महेश्वरसूरि द्वितीय भी पल्लीवालगच्छ के थे। उपासकदशाङ्ग और आचारांग की वि.सं. १५९१/ ई. १५३५ में लिखी गई प्रति की पुष्पिकाओं में भी पल्लीवालगच्छ के नायक के रूप में महेश्वरसूरि का नाम मिलता है । "
वि.सं. की १७वीं शताब्दी के प्रथम चरण में पल्लीवालगच्छ में अजितदेवसूरि नामक एक प्रसिद्ध रचनाकार हो चुके हैं। इनके द्वारा रचित कई कृतियाँ मिलती हैं, जो इस प्रकार हैं-१. कल्पसिद्धान्तदीपिका
२. पिण्डविशुद्धिदीपिका (वि.सं. १६२७)
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- यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रन्थ - इतिहास३. उत्तराध्ययनसूत्रबालावबोध (वि.सं. १६२९)
अजितदेवसूरि के शिष्य हीरानन्दसरि हए जिनके द्वारा रचित ४. आचारांगदीपिका
चौबोलीचौपाई नामक कृति प्राप्त होती है। इसकी प्रशस्ति ५. आराधना JRK. P-३१
में इन्होंने अपने गुरु-प्रगुरु आदि का उल्लेख किया है। ६. जीवशिखामणाविधि
पालीवाल विरुदे प्रसिद्ध, चंद्रगच्छ सुपहाण। ७. चन्दनबालाबेलि
सूरि महेसर पाटधर, तेजै दीपइ भाण ।।७।।
तासु पसायै हर्षधर, पभणै हीराणंद ।।८।। ८. चौबीस जिनावली कल्पसिद्धान्तदीपिका की प्रशस्ति में इन्होंने स्वयं
चौबोली चौपाई की वि.सं. १७७० में लिखी गई एक को महेश्वरसूरि का शिष्य कहा है--
प्रति जिनकृपाचन्द्रसूरि ज्ञान भण्डार बीकानेर में संरक्षित है। इतिश्री चंद्रगच्छांभोजदिनमणीनां श्रीमहेश्वरसरिसर्व्वसरिशिरोमणीनां
. पल्लीवालगच्छ से संबद्ध पर्याप्त संख्या में अभिलेखीय पट्टे श्रीअजितदेवसूरिणा विरचिता श्रीकल्पसिद्धान्तदीपिका समाप्ता। साक्ष्य प्राप्त हात
a ma साक्ष्य प्राप्त होते हैं, जो वि.सं. १२६१ से लेकर वि.सं. १६८१
तक के हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है--
क्रमांक वि.सं. तिथि/मिति
प्रतिष्ठास्थान
सन्दर्भ ग्रन्थ
आचार्य या मुनि का नाम
प्रतिमा-लेख/ शिलालेख
१.
१२५७
-
प्रतिमा लेख
१३४३
माघ सुदि १२
-
पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख
शीतलनाथ जिनालय, कुम्भारवाडो, खंभात
मुनि कांतिसागर, संपा. शत्रुञ्जयवैभव, लेखांक ११ मुनि बुद्धिसागरसूरि, संपा. जैन धातु प्रतिमा लेख संग्रह भाग-२,लेखांक ६५५ श्री अगरचंद नाहटा, संपा. बीकानेर जैन लेख संग्रह, लेखांक २००
महेश्वरसूरि
माघ सुदि १२ रविवार
पार्श्वनाथ की - प्रतिमा का लेख
चिंतामणिजी का मंदिर, बीकानेर
वही,लेखांक २२४४
शांतिनाथ की प्रतिमा का लेख
केशरिया जी का मंदिर, देशनोक, बीकानेर
१३६१
आषाढ सुदि३
"
वही, लेखांक २२७
पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख
६. .
१३७३
वैशाखसुदि १२
गुणाकरसूरि
चिंतामणिजीका मंदिर, बीकानेर जैन मंदिर, आर्वी शांतिनाथ जिना. भोयरापाडो खंभात
१३८३
"
माघ सुदि १० सोमवार
महेश्वरसूरि के पट्टधर अभयदेवसरि
मुनि कांतिसागर, संपा. जैन धातुप्रतिमा लेख संग्रह,लेखांक २७ लेखांक २७ मुनि बुद्धिसागर, पूर्वोक्त. भाग-२,लेखांक ८९९ नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक ४२४
फाल्गुन सुदि ११ अभयदेवसूरि गुरुवार
आदिनाथ की प्रतिमा का लेख
चिंतामणिजी का मंदिर, बीकानेर
imrommanninnerneromsinnranard au KMGAGNAGAGEMENT STORE MENGmGrom GRAGNAR
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१४३५
फाल्गुन सुदि २ शुक्रवार वैशाख सुदि २
-यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - इतिहास अभयदेवसूरि के पट्टधर चंद्रप्रभ की आदिनाथ जिनालय, आमदेवसूरि प्रतिमाका लेख मालपुरा शांतिसूरि पार्श्वनाथ की पंचतीर्थी चिंतामणि पार्श्वनाथ
प्रतिमा का लेख जिनालय, किशनगढ़
विनयसागर, संपा. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखाक १६२
वहीं, लेखांक १७७
माघ सुदि १३ "
वासुपूज्य जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, शनिवार
बीकानेर
लेखांक १३९० १४५८ फाल्गुन वदि१ "
सुमतिनाथ की आदिनाथ जिनालय, विनयसागर, पूर्वोक्त, शुक्रवार प्रतिमा का लेख हीरावाडी, नागौर लेखांक १८३, एवं पूरनचंद नाहर,
संपा.,जैन लेख संग्रह, भाग-२,
लेखांक १२३७ १४८२ - यशोदेवसूरि श्रेयांसनाथ की बावन जिनालय, पूरनचंदनाहर, पूर्वोक्त.
प्रतिमा का लेख करेड़ा
भाग-२ लेखांक १९३१ १४८५ मार्गशीर्ष वदि २ "
शांतिनाथ की महावीर जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त, प्रतिमा का लेख बीकानेर
लेखांक १३१७ माघ सुदि५ यशोदेवसूरि पार्श्वनाथ की शांतिनाथ जिनालय, विनयसागर, पूर्वोक्त, गुरुवार प्रतिमा का लेख रतलाम
लेखांक २६२ १४८६ माघ सुदि ११
शांतिनाथ की महावीर जिनालय, वही,लेखांक २६१ शनिवार
प्रतिमा का लेख सांगानेर हरिभद्रसूरि
विजयगच्छीय जिनालय, वही,लेखांक २९७
जयपुर वैशाख सुदि ३ यशोदेवसूरि संभवनाथ की चिंतामणिजी का नाहटा, पूर्वोक्त,
प्रतिमा का लेख मंदिर,बीकानेर लेखांक ७६७ १४९७ ज्येष्ठ सुदि३ "
कुन्थुनाथ
वही, लेखांक ७९५ सोमवार
की प्रतिमा का लेख ज्येष्ठ वदि १२ शांतिनाथ के पट्टधर धर्मनाथ की सुमतिनाथ मुख्य बुद्धिसागर, पूर्वोक्त
यशोदेवसरि प्रतिमाका लेख बावन जिनालय, मातर भाग-२,लेखांक ४८५ कार्तिक सुदि १५ ॥
सुमतिनाथ की शांतिनाथ जिनालय, मुनि कांतिसागर, संपा. प्रतिमा का लेख भिंडी बाजार, मुंबई जैन धातु प्रतिमा का लेख
संभवनाथ की महावीर जिनालय, लेखांक ९५ गुरुवार प्रतिमा का लेख बीकानेर
नाहटा,पूर्वोक्त, लेखांक १२७६ २३. १५०३ तिथिविहीन यशोदेवसूरि नमिनाथ की अनुपूर्ति लेख, मुनि जयंत विजय, संपा.
प्रतिमा का लेख आबू
अर्बुद प्राचीन, जैन लेख संदोह
लेखांक ६३६ arovariandiariordarsansarsansarsansaroroducat६६ Horrowardinidasanilonidindianbidasiardiarianiadride
१४९३
आषाढ सदि
॥
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नाकोड़ा
- यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - इतिहास२४. १५०४ वैशाख सुदि६ । नन्नाचार्य संतानीय पार्श्वनाथ नाकोड़ा तीर्थ विनयसागर, लेखकशांतिनाथ के पट्टधर की प्रतिमा का लेख
श्री नाकोड़ा तीर्थ यशोदेवसूरि के पट्टधर
लेखांक १९ नत्रसूरि के पट्टधर उद्योतनसूरि...... के पट्टधर
शांतिसूरि के पट्टधर यशोदेवसूरि ___२५.. १५०७ फाल्गुन वदि ३ यशोदेवसूरि नमिनाथ की सीमंधर स्वामी का विजयधर्मसूरि, संपा.
धातु की प्रतिमा का लेख मैदर, तालाबवालापेल,सूरत प्राचीन लेख संग्रह, लेखांक २२९ १५०८ वैशाख वदि २ "
सुमतिनाथ की धर्मनाथ जिनालय, विनयसागर, संपा. प्रतिमा का लेख खजवाना
प्रतिष्ठा लेख संग्रह, लेखांक ४३० १५१० - ___ननसूरि
धर्मनाथ की . मुनिसुव्रत जिनालय, वही, लेखांक ४७०
प्रतिमा का लेख मालपुरा १५१३ माघ...... यशोदेवसूरि कुन्थुनाथ की शांतिनाथ जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, भाग-२
प्रतिमा का लेख
लेखांक १८८७ १५२८ वैशाख सुदि ५ श्री रत्नसूरि संभवनाथ की धातु कुन्थुनाथ जिनालय, मुनि विशालविजय, संपा.
की पंचतीर्थी प्रतिमा राधनपुर
प्रतिमा लेख संग्रह, का लेख
लेखांक २५८ १५२८ माघ वदि५ यशोदेवसूरि के पद्मप्रभ की घरदेवासर,
मुनि बुद्धिसागर, पूर्वोक्त पट्टधर नत्रसूरि प्रतिमा का लेख - बडोदरा
भाग-२,लेखांक २२८ १५२८ -
मुनिसुव्रत की जैन मंदिर,
नाहर, पूर्वोक्त, भाग-२
धातु की प्रतिमा का लेखखंडप, मारवाड लेखांक २१११ १५३० वैशाख सुदि ९ "
श्रेयांसनाथ की पार्श्वनाथ जिनालय, विनयसागर, संपा. प्रतिमा का लेख सांभर
प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ७२० १५३३ ज्येष्ठ सुदि ५ उद्योतनसूरि धर्मनाथ की पार्श्वनाथ जिनालय, वही, लेखांक ७५९ शुक्रवार
प्रतिमा का लेख १५३६ वैशाख.....९
सुविधिनाथ की शांतिनाथ जिनालय, नाहटा, पूर्वोक्त . गुरुवार प्रतिमा का लेख नापासर
लेखांक २३३३ ३५. १५३६ वैशाख...९ नन्नसूरि के पट्टधर चंद्रप्रभ की महावीर जिनालय, नाहर, पूर्वोक्त, भाग-२
सोमवार उद्योतनसूरि प्रतिमा का लेख वोहारनटोला,लखनऊ लेखांक १५५५ ३६. १५३६ आषाढ़ सुदि६ अजूण (उद्योतन) आदिनाथ की - बालाबसही,
शत्रुजयवैभव, शुक्रवार सूरि प्रतिमा का लेख शत्रुजय
लेखांक २१८ ३७. १५३६ आषाढ़ सुदि९ "
संभवनाथ की धातु स्वामीजी का मंदिर, नाहर, पूर्वोक्त, भाग-२. की पंचतीर्थी प्रतिमा रोशन मुहल्ला, आगरा लेखांक १४६२
का लेख wordswarodrowaroorironironironirbrowonorarGrowdri६७6doiidnirodildoodwidndirardwardrob-ironironitor
बूंदी
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३८.
३९.
४०.
४१.
४२.
४३.
४४.
४५.
४६.
४७.
४८.
४९.
५०.
५१.
१५३७
१५४०
१५५०
१५५१
१५५६
१५५८
१५५९
१५६६
१५७५
१५८३
१५९३
१६२४
१६६७
१६७८
ज्येष्ठ वदि ४
सोमवार
आषाढ वदि १
फाल्गुन सुदि ११
गुरुवार
पौष सुदि १०
पौष सुदि १५
सोमवार
चैत्र वदि १३
सोमवार
आषाढ़ सुदि १०
बुधवार
माघ वदि २
रविवार
आषाढ़ वदि ७
रविवार
फाल्गुन वदि १
शुक्रवार
आषाढ़ सुदि ३
रविवार
आषाढ वदि ८
भाद्रपद सुदि ९
शुक्रवार
नन्नसूर के
11
महेश्वरसूरि
"
उद्योतनसूर
• यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - इतिहास
द्वितीय आषाढ सुदि २ यशोदेवसूरि रविवार
पार्श्वनाथ की सपरिकर आदिनाथ की छत्री के प्रतिमा का लेख बाहर आले में सपरिकर
मूर्ति, नाकोड़ा तीर्थ
आमदेवसूरि
यशोदेवसूरि के समय, सुमतिशेखर (शिलालेख के रचनाकार)
आदिनाथ की
प्रतिमा का लेख
धर्मनाथ की
पंचतीर्थी प्रतिमा
का लेख
नमिनाथ की प्रतिमा का लेख
शीतलनाथ की
प्रतिमा का लेख
शीतलनाथ की
प्रतिमा का लेख
अजितनाथ की
प्रतिमा का लेख
वासुपूज्य की
प्रतिमा का लेख
कुन्थुनाथ की प्रतिमा का लेख
पार्श्वनाथ की
प्रतिमा का लेख
पद्मप्रभ की
प्रतिमा का लेख
श्रेयांसनाथ की
प्रतिमा का लेख
शिलापट्टप्रशस्ति
शिलापट्ट प्रशस्ति के समय उपा. कनकशेखर (चौकी मंडप में)
মটbad ६८ Jaanans
पार्श्वनाथ देरासर,
सरधना
शांतिनाथ जिनालय,
कोड़ा
विमलनाथ जिना.,
सवाईमाधोपु
महावीर जिनालय,
डांगों में, बीकानेर
जिनदत्तसूरि की
दादावाड़ी, शत्रुञ्चय
महावीर जिनालय,
सांगानेर
वीर जिनालय,
बडोदरा
महावीर जिनालय,
मेड़तासिटी
विमलनाथ जिनालय,
सवाई माधोपुर
वासुपूज्य जिनालय,
बीकानेर
पार्श्वनाथ जिनालय, कोरों में, बीकानेर
पार्श्वनाथ जिनालय, नाकोड़ा
श्री नाकोडा तीर्थ लेखांक ५७
विनयसागर, प्रतिष्ठा लेख संग्रह लेखांक ८२३
श्री नाकोड़ा तीर्थ,
लेखांक ५९
प्रतिष्ठा लेख संग्रह लेखांक ८६३
नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १५३७
शत्रुञ्जय वैभव लेखांक २५८
विनयसागर, प्रतिष्ठा लेख संग्रह . लेखांक ९०१
मुनि बुद्धिसागर, पूर्वोक्त,
भाग-२, लेखांक ४४
विनयसागर, पूर्वोक्त लेखांक ९५६
वही, लेखांक ९७३
नाहटा, पूर्वोक्त, लेखांक १३९५
वही, लेखांक १६२७
श्री नाकोड़ा तीर्थ, लेखांक ९०
वही, लेखांक ९१
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८२.
५३.
५४.
१६७९
१६८१
१६८१
१६८१
माघ सुदि ४
शनिवार
चैत्र वदि ५ मंगलवार
आषाढ वदि ६
सोमवार
फाल्गुन सुदि १०
बुधवार
के शिष्य सुमति शेखर एवं देवशेखर
(शिलालेख के रचनाकार)
श्री ...शेखरसूरि
यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - इतिहास.
यशोदेवसूरि के समय हरशेखर के शिष्य
कनकशेखर के शिष्य
देवशेखर एवं सुमतिशेखर (शिलालेख के रचनाकार)
1
शांतिसूरि (वि.सं. १४५३ - १४५८)
1
यशोदेवसूरि (वि.सं. १४७६ - १५१३ )
1
सूरि (वि.सं. १५२८-१५३०)
1
उद्योतनसूर (वि.सं. १५३३ - १५६६ )
I
महेश्वरसूरि (द्वितीय) (वि.सं. १५७५-१५९३)
I
अभयदेवसूरि (कोई लेख उपलब्ध नहीं )
I
मसूर (वि.सं. १६२४)
शांतिनाथ की
प्रतिमा का लेख
उक्त अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के आचार्यों का जो पट्टक्रम निश्चित होता है, वह इस प्रकार है-
?
महेश्वरसूरि (प्रथम) (वि.सं. १३४५-१३६१)
1
अभयदेवसूरि (वि.सं. १३८३-१४०९)
।
आमसूरि (वि.सं. १४३५)
शिलालेख
नाकोड़ा
शिलालेख
वासुपूज्य की
प्रतिमा का लेख
भंडारस्थ प्रतिमा, शांतिनाथ जिनालय, नाकोडा
६९
रंगमंडप,
पार्श्वनाथ जिनालय नाकोड़ा
नाभिमंडप,
पार्श्वनाथ जिनालय, नाकोड़ा तीर्थ
पंचतीर्थी मंदिर,
नाकोडा
वही, लेखांक ९२
वही, लेखांक ९५
For Private Personal Use Only
वही, लेखांक ९७
वही, लेखांक ९६
1
शांतिसूर ( कोई लेख उपलब्ध नहीं )
1
यशोदेवसूरि (वि.सं. १६६७ - १६८१ )
अभिलेखीय साक्ष्यों में उल्लिखित महेश्वरसूरि 'प्रथम' (वि.सं. १३४५-१३६१ ) और कालकाचार्य कथा (वि.सं. १३६५ / ई. स. १३०९ की उपलब्ध प्रति) के रचनाकार महेश्वरसूरि को समसामयिकता, नामसाम्य आदि को दृष्टिगत रखते हुए एक ही व्यक्ति माना जा सकता है। ठीक यही बात अभिलेखीय साक्ष्यों से ज्ञात नसूरि (वि.सं. १५२८ - १५३० ) और सीमंधर जिनस्तवन (रचनाकाल वि.सं. १५४४/ई. सन् १४८८ ) के कर्ता नन्नसूरि के बारे में भी कही जा सकती है। इसी प्रकार वि.सं. १५७३/ई.स. १५२४ में विचारसारप्रकरण के रचनाकार महेश्वरसूरि और वि.सं. १५७५-१५९३ के मध्य विभिन्न जिनप्रतिमाओं के प्रतिष्ठापक महेश्वरसूरि द्वितीय भी एक ही व्यक्ति मालूम पड़ते हैं। जैसा कि पीछे हम देख चुके हैं, अजितदेवसूरि ने भी अपनी कृतियों में स्वयं को महेश्वरसूरि का शिष्य बताया है, जिन्हें महेश्वरसूरि द्वितीय से अभिन्न माना जा सकता है।
उक्त साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर पल्लीवालगच्छीय मुनिजनों की गुरु-परंपरा की जो तालिका बनती है, वह इस प्रकार है-
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- यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - इतिहासमहेश्वरसूरि प्रथम (वि.सं. 1345-1361) प्रतिमा लेख
जहां तक दूसरी पट्टावली की प्रामाणिकता की बात है. कालकाचार्यकथा के रचनाकार
इसमें यशोदेव-- नत्रसूरि-- उद्योतनसूरि-- महेश्वरसूरि--
अभयदेवसूरि-- आमसूरि-- शांतिसूरि-- इन पट्टधर आचार्योके अभयदेवसूरि (वि.सं. 1383-1409) प्रतिमा लेख
नामों की पुनरावृत्ति दर्शाई गई है। जैसा कि हम पीछे देख चुके (कालकाचार्य कथा की वि.सं. 1365/ई. स. 1309 में लिखी गई प्रति वि.सं. 1378/ई. स. 1322
हैं, साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों से इसका समर्थन होता में इन्हें समर्पित की गई)
है। इस प्रकार इस पट्टावली में दिए गए पट्टधर आचार्यों के नाम
और उनके पट्टक्रम की प्रामाणिकता प्रायः सिद्ध हो जाती है, आमसूरि (वि.सं. 1435) प्रतिमालेख
किन्तु इसमें ५७वें पट्टधर आमसूरि, ५८वें पट्टधर शांतिसूरि और
५९वें पट्टधर यशोदेवसूरि से संबद्ध तिथियों को छोड़कर प्रायः शांतिसूरि (वि.सं. 1453-1458) प्रतिमालेख
सभी तिथियां मात्र अनुमान के आधार पर कल्पित होने के
कारण अभिलेखीय या अन्य साहित्यिक साक्ष्यों से उनका समर्थन यशोदेवसूरि (वि.सं. 1476-1513) प्रतिमालेख
नहीं होता तथापि पल्लीवाल गच्छ से संबद्ध आचार्यों का नन्नसूरि (वि.सं. 1528-1530) प्रतिमालेख
प्रामाणिक पट्टक्रम प्रस्तुत करने के कारण इसकी महत्ता निर्विवाद । (वि.सं. 1544 में सीमंधर जिनस्तवन के रचनाकार) है। इस पट्टावली में ४१वें पट्टधर महेश्वरसूरि का निधन वि.सं.
११५० में बतलाया गया है। प्रथम पट्टावली में भी वि.सं. ११४५ उद्योतनसूरि (वि.सं. 1533-1556) प्रतिमालेख
में महेश्वरसूरि के निधन की बात कही गई है और उन्हें
पल्लीवालगच्छ का प्रवर्तक बताया गया है। दोनों पट्टावलियों महेश्वरसूरि (वि.सं. 1575-1593) प्रतिमालेख
द्वारा महेश्वरसूरि को समसामयिक सिद्ध करने से यह अनुमान । (वि.सं. 1573 में विचारसारप्रकरण के रचनाकार)
ठीक लगता है कि महेश्वरसूरि इस गच्छ के प्रतिष्ठापक रहे होंगे। अजितदेवसूरि (पिंडविशुद्धिदीपिका, अभयदेवसूरि (साक्ष्य अनुपलब्ध) - मुनि कांतिसागर के अनुसार प्रद्योतनसूरि के शिष्य इन्द्रदेव
कल्पसिद्धान्तदीपिका । आदि के कर्ता)
से विक्रम संवत् की १२वीं शती में यह गच्छ अस्तित्व में आया, हीराचंद (चौवालीचौपाई के कर्ता) आमसूरि (वि.सं. 1624) प्रतिमालेख
किन्तु उनके इस कथन का आधार क्या है, ज्ञात नहीं होता। शांतिसूरि (साक्ष्य अनुपलब्ध)
... उपकेशगच्छ से निष्पन्न कोरंटगच्छ में हर तीसरे आचार्य
का नाम ननसूरि मिलता है, इससे यह संभावना व्यक्त की जा यशोदेवसूरि (वि.सं. 1667-1681) प्रतिमालेख सकती है कि पल्लीवालगच्छ भी उक्त गच्छों में से किसी एक जहाँ तक पल्लीवाल गच्छ की उक्त दोनों पावलियों के गच्छ से उद्भूत हुआ होगा। इस गच्छ से संबद्ध १६वीं शती की विवरणों की प्रामाणिकता का प्रश्न है, उसमें प्रथम पावली का ग्रन्थ-प्रशस्तियों में इसे कोटिकगण और चंद्रकुल से निष्पन्न यह कथन कि महेश्वरसूरि की शिष्यसंतति पल्लीवालगच्छीय बताया गया है, परंतु इस गच्छ में पट्टधर आचार्यों के नामों की कहलाई, सत्य के निकट प्रतीत होता है। चूँकि इस पावली के पुनरावृत्ति को देखते हुए इसे चैत्यवासी गच्छ मानना उचित प्रतीत अनुसार वि.सं. ११४५ में उनका निधन हुआ, अत: यह निश्चित होता है। वस्तुतः यह गच्छ सुविहितमर्गीय था या चैत्यवासी, इसके है कि उक्त तिथि के पूर्व ही यह गच्छ अस्तित्व में आ चुका था। आदिम आचार्य कौन थे, यह कब और क्यों अस्तित्व में आया यद्यपि इस पट्टावली में उल्लिखित अनेक बातों का किन्हीं भी साक्ष्यों के अभाव में ये सभी प्रश्न अभी अनुत्तरित ही रह जाते हैं। अन्य साक्ष्यों से समर्थन नहीं होता, अतः उन्हें स्वीकार कर पाना
सन्दर्भ कठिन है, फिर भी इसमें पल्लीवालगच्छ के उत्पत्ति संबंधी
१. मुनि जिनविजय, संपा. विविधगच्छीयपट्टावली संग्रह , सिंधी साक्ष्य उपलब्ध होने के कारण इसे महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है।
जैन ग्रंथमाला, ग्रन्थाक ५३, मुंबई १९६१ ई.स., पृष्ठ ७२-७६
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________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - इतिहास२. श्री अगरचंद्र नाहटा, पल्लीवालगच्छपट्टावली 6. A.P.Shah, Ed. Catalague of Sanskrit & Prakrit Mss. Munu Shree punya Vijayji's callectin,vol.1, I.d. seश्री मोहनलाल दलीचंद देसाई, संपा. श्री आत्मारामजी ries No. 5, Ahmadabad, 1965, A.D.P-189, NO. शताब्दी ग्रंथ , मुंबई 1936 ई. स. हिन्दी खण्ड पृष्ठ 182 3343. 196. 7. श्री आत्माराम शताब्दी ग्रंथ, पृष्ठ 191-192 उक्त दोनों पट्टावलियां श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई ने / 8. वही, पृष्ठ 192 स्वसंपादित जैनगुर्जरकविओं भाग-३,खंड-२, पृष्ठ 22442254 में भी प्रकाशित की है। 9. वही, पृष्ठ 194-195 3. Muni Punyavijaya, Ed.catalogue of Palm Leaf Mss 10.-11. वही, पृष्ठ 192 in the Shate Natha jaina Bhandara, Cambay, Vd, 12. मनि कांतिसागर, शत्रंजय वैभव, कुशल पुष्प 4, कुशल G.O.S, No. 135, Baroda, 1961, A.D., PP. 81-82 __ संस्थान, जयपुर 1990 ई., पृष्ठ 372. 4-5. श्री अगरचंद नाहटा, पल्लीवालगच्छपट्टावली, श्री १३.शिवप्रसाद कोरंटगच्छ का इतिहास, श्रमण, वर्ष 40, अंक आत्मारामजी शताब्दी ग्रंथ, पृष्ठ 191 5, पृष्ठ 15 और आगे। iandoriandednewindiaadimirroranianitarirdaridrorल 71 Adminidiriridwareinindiansardariwaridaritaram