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________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - इतिहासमहेश्वरसूरि प्रथम (वि.सं. 1345-1361) प्रतिमा लेख जहां तक दूसरी पट्टावली की प्रामाणिकता की बात है. कालकाचार्यकथा के रचनाकार इसमें यशोदेव-- नत्रसूरि-- उद्योतनसूरि-- महेश्वरसूरि-- अभयदेवसूरि-- आमसूरि-- शांतिसूरि-- इन पट्टधर आचार्योके अभयदेवसूरि (वि.सं. 1383-1409) प्रतिमा लेख नामों की पुनरावृत्ति दर्शाई गई है। जैसा कि हम पीछे देख चुके (कालकाचार्य कथा की वि.सं. 1365/ई. स. 1309 में लिखी गई प्रति वि.सं. 1378/ई. स. 1322 हैं, साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों से इसका समर्थन होता में इन्हें समर्पित की गई) है। इस प्रकार इस पट्टावली में दिए गए पट्टधर आचार्यों के नाम और उनके पट्टक्रम की प्रामाणिकता प्रायः सिद्ध हो जाती है, आमसूरि (वि.सं. 1435) प्रतिमालेख किन्तु इसमें ५७वें पट्टधर आमसूरि, ५८वें पट्टधर शांतिसूरि और ५९वें पट्टधर यशोदेवसूरि से संबद्ध तिथियों को छोड़कर प्रायः शांतिसूरि (वि.सं. 1453-1458) प्रतिमालेख सभी तिथियां मात्र अनुमान के आधार पर कल्पित होने के कारण अभिलेखीय या अन्य साहित्यिक साक्ष्यों से उनका समर्थन यशोदेवसूरि (वि.सं. 1476-1513) प्रतिमालेख नहीं होता तथापि पल्लीवाल गच्छ से संबद्ध आचार्यों का नन्नसूरि (वि.सं. 1528-1530) प्रतिमालेख प्रामाणिक पट्टक्रम प्रस्तुत करने के कारण इसकी महत्ता निर्विवाद । (वि.सं. 1544 में सीमंधर जिनस्तवन के रचनाकार) है। इस पट्टावली में ४१वें पट्टधर महेश्वरसूरि का निधन वि.सं. ११५० में बतलाया गया है। प्रथम पट्टावली में भी वि.सं. ११४५ उद्योतनसूरि (वि.सं. 1533-1556) प्रतिमालेख में महेश्वरसूरि के निधन की बात कही गई है और उन्हें पल्लीवालगच्छ का प्रवर्तक बताया गया है। दोनों पट्टावलियों महेश्वरसूरि (वि.सं. 1575-1593) प्रतिमालेख द्वारा महेश्वरसूरि को समसामयिक सिद्ध करने से यह अनुमान । (वि.सं. 1573 में विचारसारप्रकरण के रचनाकार) ठीक लगता है कि महेश्वरसूरि इस गच्छ के प्रतिष्ठापक रहे होंगे। अजितदेवसूरि (पिंडविशुद्धिदीपिका, अभयदेवसूरि (साक्ष्य अनुपलब्ध) - मुनि कांतिसागर के अनुसार प्रद्योतनसूरि के शिष्य इन्द्रदेव कल्पसिद्धान्तदीपिका । आदि के कर्ता) से विक्रम संवत् की १२वीं शती में यह गच्छ अस्तित्व में आया, हीराचंद (चौवालीचौपाई के कर्ता) आमसूरि (वि.सं. 1624) प्रतिमालेख किन्तु उनके इस कथन का आधार क्या है, ज्ञात नहीं होता। शांतिसूरि (साक्ष्य अनुपलब्ध) ... उपकेशगच्छ से निष्पन्न कोरंटगच्छ में हर तीसरे आचार्य का नाम ननसूरि मिलता है, इससे यह संभावना व्यक्त की जा यशोदेवसूरि (वि.सं. 1667-1681) प्रतिमालेख सकती है कि पल्लीवालगच्छ भी उक्त गच्छों में से किसी एक जहाँ तक पल्लीवाल गच्छ की उक्त दोनों पावलियों के गच्छ से उद्भूत हुआ होगा। इस गच्छ से संबद्ध १६वीं शती की विवरणों की प्रामाणिकता का प्रश्न है, उसमें प्रथम पावली का ग्रन्थ-प्रशस्तियों में इसे कोटिकगण और चंद्रकुल से निष्पन्न यह कथन कि महेश्वरसूरि की शिष्यसंतति पल्लीवालगच्छीय बताया गया है, परंतु इस गच्छ में पट्टधर आचार्यों के नामों की कहलाई, सत्य के निकट प्रतीत होता है। चूँकि इस पावली के पुनरावृत्ति को देखते हुए इसे चैत्यवासी गच्छ मानना उचित प्रतीत अनुसार वि.सं. ११४५ में उनका निधन हुआ, अत: यह निश्चित होता है। वस्तुतः यह गच्छ सुविहितमर्गीय था या चैत्यवासी, इसके है कि उक्त तिथि के पूर्व ही यह गच्छ अस्तित्व में आ चुका था। आदिम आचार्य कौन थे, यह कब और क्यों अस्तित्व में आया यद्यपि इस पट्टावली में उल्लिखित अनेक बातों का किन्हीं भी साक्ष्यों के अभाव में ये सभी प्रश्न अभी अनुत्तरित ही रह जाते हैं। अन्य साक्ष्यों से समर्थन नहीं होता, अतः उन्हें स्वीकार कर पाना सन्दर्भ कठिन है, फिर भी इसमें पल्लीवालगच्छ के उत्पत्ति संबंधी १. मुनि जिनविजय, संपा. विविधगच्छीयपट्टावली संग्रह , सिंधी साक्ष्य उपलब्ध होने के कारण इसे महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है। जैन ग्रंथमाला, ग्रन्थाक ५३, मुंबई १९६१ ई.स., पृष्ठ ७२-७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211333
Book TitlePallival Gaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherZ_Yatindrasuri_Diksha_Shatabdi_Smarak_Granth_012036.pdf
Publication Year1999
Total Pages10
LanguageHindi
ClassificationArticle & Jain Sangh
File Size746 KB
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