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८२.
५३.
५४.
१६७९
१६८१
१६८१
१६८१
माघ सुदि ४
शनिवार
चैत्र वदि ५ मंगलवार
आषाढ वदि ६
सोमवार
फाल्गुन सुदि १०
बुधवार
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के शिष्य सुमति शेखर एवं देवशेखर
(शिलालेख के रचनाकार)
श्री ...शेखरसूरि
यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - इतिहास.
यशोदेवसूरि के समय हरशेखर के शिष्य
कनकशेखर के शिष्य
देवशेखर एवं सुमतिशेखर (शिलालेख के रचनाकार)
1
शांतिसूरि (वि.सं. १४५३ - १४५८)
1
यशोदेवसूरि (वि.सं. १४७६ - १५१३ )
1
सूरि (वि.सं. १५२८-१५३०)
1
उद्योतनसूर (वि.सं. १५३३ - १५६६ )
I
महेश्वरसूरि (द्वितीय) (वि.सं. १५७५-१५९३)
I
अभयदेवसूरि (कोई लेख उपलब्ध नहीं )
I
मसूर (वि.सं. १६२४)
शांतिनाथ की
प्रतिमा का लेख
उक्त अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के आचार्यों का जो पट्टक्रम निश्चित होता है, वह इस प्रकार है-
?
महेश्वरसूरि (प्रथम) (वि.सं. १३४५-१३६१)
1
अभयदेवसूरि (वि.सं. १३८३-१४०९)
।
आमसूरि (वि.सं. १४३५)
शिलालेख
नाकोड़ा
शिलालेख
वासुपूज्य की
प्रतिमा का लेख
भंडारस्थ प्रतिमा, शांतिनाथ जिनालय, नाकोडा
६९
रंगमंडप,
पार्श्वनाथ जिनालय नाकोड़ा
नाभिमंडप,
पार्श्वनाथ जिनालय, नाकोड़ा तीर्थ
पंचतीर्थी मंदिर,
नाकोडा
वही, लेखांक ९२
वही, लेखांक ९५
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वही, लेखांक ९७
वही, लेखांक ९६
1
शांतिसूर ( कोई लेख उपलब्ध नहीं )
1
यशोदेवसूरि (वि.सं. १६६७ - १६८१ )
अभिलेखीय साक्ष्यों में उल्लिखित महेश्वरसूरि 'प्रथम' (वि.सं. १३४५-१३६१ ) और कालकाचार्य कथा (वि.सं. १३६५ / ई. स. १३०९ की उपलब्ध प्रति) के रचनाकार महेश्वरसूरि को समसामयिकता, नामसाम्य आदि को दृष्टिगत रखते हुए एक ही व्यक्ति माना जा सकता है। ठीक यही बात अभिलेखीय साक्ष्यों से ज्ञात नसूरि (वि.सं. १५२८ - १५३० ) और सीमंधर जिनस्तवन (रचनाकाल वि.सं. १५४४/ई. सन् १४८८ ) के कर्ता नन्नसूरि के बारे में भी कही जा सकती है। इसी प्रकार वि.सं. १५७३/ई.स. १५२४ में विचारसारप्रकरण के रचनाकार महेश्वरसूरि और वि.सं. १५७५-१५९३ के मध्य विभिन्न जिनप्रतिमाओं के प्रतिष्ठापक महेश्वरसूरि द्वितीय भी एक ही व्यक्ति मालूम पड़ते हैं। जैसा कि पीछे हम देख चुके हैं, अजितदेवसूरि ने भी अपनी कृतियों में स्वयं को महेश्वरसूरि का शिष्य बताया है, जिन्हें महेश्वरसूरि द्वितीय से अभिन्न माना जा सकता है।
उक्त साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर पल्लीवालगच्छीय मुनिजनों की गुरु-परंपरा की जो तालिका बनती है, वह इस प्रकार है-
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