Book Title: Padma Vardhaman Sanskrit Dhatu Shabda Rupavali Part 02
Author(s): Rajpadmasagar, Kalyanpadmasagar
Publisher: Padmasagarsuri Charitable Trust
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________________ धर्म तीर्थ महावीरालय : हृदय में अलौकिक धर्मोल्लास जगाने वाला जिनेश्वर श्री महावीरस्वामी का अतिभव्य प्रासाद महावीरालय दर्शनीय हैं। प्रथम तल पर गर्भगृह में मूलनायक श्री महावीरस्वामी आदि 13 प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं तथा भूमि तल पर आदीश्वर भगवान की भव्य प्रतिभा, मणिभद्रवीर तथा भगवती पद्मावती सहित पांच प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं। सभी प्रतिमाएँ इतनी मोहक एवं चुम्बकीय आकर्षण रखती हैं कि लगता है, सामने ही बैठे रहें। जिन मंदिर को परंपरागत शैली में शिल्पांकनो द्वारा रोचक पद्धति से अलंकृत किया गया है, जिससे सीढ़ियों से लेकर शिखर के गुंबज तक तथा रंगमंडप से गर्भगृह का हर कोना जैन शिल्प कला को आधुनिक युग में पुनः जागृत करता दष्टिगोचर होता है। 24 यक्ष, 24 यक्षणिओं, 16 महाविद्याओं, विविध स्वरूपों में अप्सरा, देव, किन्नर, पशु-पक्षी आदि सहित वेल-वल्लरी एवं परमात्मा श्री महावीर पभु, श्री आदिनाथ प्रभु व श्री पार्श्वनाथ प्रभु की जीवन झांकियों आदि से युक्त कलात्मक काष्ठ द्वार आदि इस मंदिर को जैन शिल्प एवं स्थापत्य के क्षेत्र में एक अप्रतिम उदाहरण के रूप में सफळतापूर्वक प्रस्तुत करते हैं। इस मंदिर की विशेषता है का आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी के अन्तिम संस्कार के समय प्रतिवर्ष 22 मई को दुपहर, 2 बजकर 7 मिनट पर महावीरालय के शिखर में से होकर सूर्य किरणें श्री महावीरस्वामी के तिलक को देदीप्यमान करें, ऐसी अनुपम एवं अद्वितीय व्यवस्था की गई हैं। उस दिन इस आह्लादक घटना का दर्शन बड़ी संख्या में श्रद्धालुजन भावविभोर होकर करते हैं। गुरूमंदिरः- पूज्य गच्छाधिपति आचार्यदेव श्रीमत् कैलाससागर सूरीश्वरजी के पुल्य देह के अन्तिम संस्कार स्थल पर पूज्यश्री की स्मृति में संगमरमर का कलात्मक गुरू मंदिर निर्मित किया गया हैं / गर्भगृह में स्फटिक रत्न से निर्मित अनन्तलब्धि निधान श्री गौतमस्वामीजी की मनोहर मूर्ति तथा रंगमंडप के मध्य में स्फटिक से ही निर्मित गुरू चरण-पादुका वास्तव में दर्शनीय हैं। इस गुरू मंदिर में दीवारों पर संगमरमर की आठ जालियों में श्री गुरू चरणपादुका तथा गुरू श्री गौतमस्वामी के जीवन की विविध घटनाओं को बडे ही कलात्मक ढंग से प्रस्तुत की गई हैं। इस स्थान पर फर्श एवं गर्भगृह की चौकी आदि पर कीमती पत्थरों द्वारा बेल-बूटों की सुंदर पच्चीकारी का कार्य किया गया हैं। यहाँ पर आचार्यश्री के जीवन-प्रसंगों का स्वर्णाक्षरों से अंकित किया जा रहा हैं।