Book Title: Padma Vardhaman Sanskrit Dhatu Shabda Rupavali Part 01
Author(s): Rajpadmasagar, Kalyanpadmasagar
Publisher: Padmasagarsuri Charitable Trust
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________________ CEOS +प्रस्तावना + दि. : 13-11-2004 शनिवार (तखतगढ) प्राणधारियों में मनुष्य श्रेष्ठ प्राणी हैं! ऊसमें अनन्त शक्तियाँ विद्यमान हैं!अभिव्यक्ति उसकी स्वयंभू शक्ति हैं! जब बाह्य विश्वको वह सूनता-समझता और शिखता हैं तब दूसरों तक पहुंचानेकी उसमें तीव्र उत्कण्ठा उत्पन्न होती हैं! यही उत्कण्ठा वस्तुतः उसकी अभिव्यक्तिका मूल हेतु बनती हैं!अभिव्यक्तिका आदिम रूप मौखिक रहा हैं और जब लिपि विज्ञान व्यवहार में आया तब उसे लिपि बद्ध किया जाने लगा! अभिव्यक्तिकी इस प्रक्रियामें 'कहना' और 'सूनना' नामक दो प्रधान क्रियाएँ मुख्य भूमिका का निर्वाह करती हैं! मुनि श्री राजपद्मसागरजी म. एवं मुनि श्री कल्याणपद्मसागरजी म.ने श्री पद्म-वर्धमान संस्कृत धातु-शब्द रूपावली नामक पुस्तक का संकलन किया हैं!विद्या अर्जनके साथ संस्कृत शिखनेवाले विद्यार्थीओंके लिए उपयोगी एवं प्रशंसनीय कार्य किया हैं! अन्न दानं महादानं,विद्यादानं अतः परम्! अन्नेन क्षणिका तृप्तिः,विद्या यावच्च जीवनम्!! अर्थः अन्न दान सबसे बड़ा दान हैं!उससे भी बढकर विद्यादान हैं! अन्नसे क्षणिक तृप्ति मिलती हैं!विद्या जीवन पर्यंत तृप्ति देती रहती हैं! AAMRINAMARPORAur - PART पं. विनयसागर नूतन वर्ष दिन